
पंजाब राज्य कृषि विपणन बोर्ड के अध्यक्ष हरचंद सिंह बरसात के मुताबिक पंजाब का नुकसान करीब 20,000 करोड़ रुपये का है। केंद्र की ओर से दी गई मदद को लेकर उन्होंने कहा , “पंजाब को उसकी सरकार और उसके लोगों के भरोसे छोड़ दिया गया है।”
पंजाब में बाढ़ और अतिवृष्टि के कारण कुल नुकसान यदि 20 हजार करोड़ का है तो सिर्फ खरीफ सीजन में धान के नुकसान का यदि आकलन किया जाए तो 37 फीसदी से ज्यादा की क्षति धान (परमल और बासमती) की है।
अगस्त के दौरान हुई अत्यधिक बारिश और बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित खरीफ सीजन में न सिर्फ उपज घटी है बल्कि तीन लाख एकड़ धान के खेतों में फॉल्स स्मट यानी हल्दी रोग भी फैल गया है। डाउन टू अर्थ ने बासमती और परमल किस्म की धान की क्षति का आकलन किया और प्राथमिक तौर पर पाया कि करीब 7,500 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
लुधियाना के तलवंडी कलां में बीक्कर सिंह अपने धान के खेतों में डंडा मारते हैं और खेत में हल्दी या पीला गुलाल जैसे उड़ पड़ता हो। वह दाने को हाथ में लेते हैं और उनके हाथ पीले पड़ जाते हैं। यह स्थिति सिर्फ उनके खेतों तक नहीं है।
डाउन टू अर्थ ने लुधियाना के बाढ़ प्रभावित तलवंडी कला से लेकर होशियारपुर के रारा गांव तक करीब 150 किलोमीटर की यात्रा में धान में हल्दी रोग की मौजूदगी देखी। किसानों ने धान की बालियों में झुलसा और अन्य रोग भी दिखाया।
फाल्स स्मट के बारे में अप्रैल, 1987 में इंटरनेशनल राइस रिसर्च न्यूज लेटर के वॉल्यूम 12 और अंक 2 में एक स्थिति रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। यह रिपोर्ट पूर्वी उत्तर प्रदेश से संबंधित थी।
इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वैज्ञानिकों ने 1975 से फाल्स स्मट का अध्ययन शुरू किया। अध्ययन में मिला कि यह अलग-अलग स्थानों और अलग-अलग वेराइटियों में एक ही समय पाया गया। खासतौर से बारिश के समय जब आद्रता 90 फीसदी से ज्यादा और तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहा और वर्षा का वितरण सतत बना रहा। ऐसी स्थिति में फाल्स स्मट का प्रकोप काफी तेजी से बढ़ा।
रिपोर्ट के मुताबिक 1984 से लेकर 1986 तक फाल्स स्मट ने महामारी का रूप ले लिया। और 1984 में जहां इसका नुकसान 10 फीसदी था वह 1986 में बढ़कर 30 फीसदी तक हो गया। इसने उस वक्त काफी धान के खेतों को प्रभावित किया। इस रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि जिन खेतों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम की अधिकता है यानी उर्वरता ज्यादा है वहां इसका प्रकोप काफी ज्यादा रहा।
इस आधार पर देखें तो पंजाब के भीतर बाढ़ से बच गई धान के खड़ी फसलों में फाल्स स्मट का फैलाव क्षति के आंकड़ों को और बढ़ा सकता है। कई जगह पानी अब भी नहीं निकला है और फसलें नम हैं।
यदि पंजाब में धान (परमल और बासमती) ताजा नुकसान के 7500 करोड़ के गणित को देखा जाए तो यह समूचे देश के लिए केंद्रीय फंड नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फंड (एनडीआरएफ) के सालाना औसत बजट 10 हजार करोड़ के आसपास ही है। एनडीआरएफ हर वर्ष असाधारण और बड़ी आपदाओं के लिए केंद्र का अतिरिक्त बजट होता है।
पंजाब में धान के इतने व्यापक नुकसान को समझने की कोशिश करते हैं।
राज्य में इस वर्ष कुल 32.5 लाख हेक्टेयर में धान बोई गई थी, जिसमें से लगभग 6.81 लाख हेक्टेयर में बासमती की खेती है। किसानों और कृषि विभाग के आकलन के आधार पर करीब 2 लाख हेक्टेयर (पांच लाख एकड़) खेतों में पूरी तरह से फसल नष्ट हो गई है, जबकि बाकी क्षेत्रों में किसानों ने बताया कि औसतन 10 प्रतिशत पैदावार की कमी का अनुमान है।
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर डाउन टू अर्थ के इस अनुमान में मदद की।
सबसे पहले पूरी तरह से डूबे हुए खेतों का हिसाब लगाया गया। परमल किस्म धान (गैर बासमती) का औसत उत्पादन पंजाब में करीब 5.35 टन प्रति हेक्टेयर है। अगर एक लाख हेक्टेयर खेत पूरी तरह बर्बाद मानें तो यह करीब 5.35 लाख टन धान का नुकसान हुआ। सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) इस बार 2,369 रुपए प्रति क्विंटल है, यानी 23,690 रुपए प्रति टन। इस तरह धान में सीधे-सीधे करीब 1,267 करोड़ का नुकसान बैठता है।
वहीं, बासमती का औसत उत्पादन लगभग 4.46 टन प्रति हेक्टेयर है। एक लाख हेक्टेयर पूरी तरह डूबने पर 4.46 लाख टन बासमती बर्बाद हुई। बासमती की बाजार कीमत औसतन 3,200 रुपए प्रति क्विंटल यानी 3.2 लाख रुपए प्रति टन है। इसके हिसाब से बासमती में लगभग 1,427 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। यानी सिर्फ डूबे हुए खेतों में धान और बासमती मिलाकर करीब 2,694 करोड़ रुपए का सीधा नुकसान है।
अब आते हैं उन खेतों पर जो पूरी तरह नहीं डूबे लेकिन जिनमें पैदावार घटी है।
धान की बाकी 31.5 लाख हेक्टेयर जमीन पर अगर 10 फीसदी पैदावार घट गई तो यह करीब 16.85 लाख टन का नुकसान है। एमएसपी पर इसकी कीमत लगभग 3,990 करोड़ बैठती है।
बासमती की बाकी 5.81 लाख हेक्टेयर जमीन पर 10 फीसदी पैदावार घटने से लगभग 2.59 लाख टन का नुकसान हुआ। मौजूदा बाजार भाव पर इसका आर्थिक असर करीब 829 करोड़ रुपए है।
यदि परमल धान (गैर बासमती) में कुल नुकसान का आकलन करें तो पूरी तरह बर्बाद धान की आर्थिक कीमत 1,267 करोड़ और अगर सूबे में 10 फीसदी उपज में कमी माने तो 3,990 करोड़ रुपए की क्षति को आपस में जोड़ने पर 5,257 करोड़ रुपए का घाटा सामने आता है। वहीं, बासमती में कुल नुकसान पूरी तरह बर्बाद 1,427 करोड़ रुपए और 10 फीसदी की कमी यानी 829 करोड़ रुपए को आपस में जोड़े तो 2,256 करोड़ रुपए का घाटा सामने आता है।
इन्हें जोड़कर पंजाब के किसानों को इस सीजन में कुल मिलाकर करीब 7,500 करोड़ रुपए का शुरुआती नुकसान सिर्फ फसलों की क्षति का है।
इस आकलन में गन्ना जो करीब एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र में था और मक्का व कुछ पशु चारे के नुकसान को नहीं शामिल किया गया है। यह मुख्य तौर पर धान (परमल और बासमती) के नुकसान को दर्शाता है।
पंजाब की यह विपदा और बुरी क्यों है? आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर सुखपाल सिंह डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “बाढ़ से हुए नुकसान बहुत बड़े और गंभीर हैं, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो धान की कटाई के लगभग समय पर थे। बासमती की कटाई और कुछ जिलों में सब्जियों के लिए मजदूरी का काम भी प्रभावित हुआ है। इसके अलावा पशुधन और आवासीय नुकसान भी हुए हैं। दुर्भाग्य से, पंजाब के पास अपनी खुद की फसल बीमा योजना नहीं है और न ही पीएम‑एफबीवाई (प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना) का कवरेज, जिससे स्थिति और भी बदतर हो गई है।”
वहीं, ग्राउंड पर किसानों ने बताया कि धान (परमल और बासमती) में प्रति एकड़ खर्च 22 हजार से 30 हजार रुपए तक का है। ऐसे में राज्य सरकार के द्वारा 20 हजार प्रति एकड़ घोषित की गई मुआवजे की राशि बहुत ही कम है। यह भी संदेह है कि 20 हजार रुपए सभी को मिलेंगे। किसानों के मुताबिक जिसकी क्षति 100 फीसदी है उसे ही मुआवजा दिया जाएगा। इसके अलावा 50 फीसदी से कम वालों को मुआवजे पर संदेह है।
होशियारपुर के फूलपुर गांव में ब्यास नदी के किनारे किसान जरनाल सिंह कहते हैं कि धान के दाने काले पड़ गए हैं। इनमें कुछ नहीं बचा है। ऐसे में खेत में फसल दिख भर रही है लेकिन असलियत में उनमें कुछ नहीं है। वह डर रहे हैं कि उन्हें मुआवजा श्रेणी में रखा जाएगा या नहीं, क्योंकि उनकी फसल अतिवृष्टि के कारण खराब हुई है।
अखिल भारतीय किसान सभा ने बाढ़ प्रभावित किसानों के लिए यह मांग की है कि सरकार 70,000 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा दे, जिन किसानों की मौत हुई है उन्हें 20 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति दी जाए, पशुधन के नुकसान के लिए एक लाख रुपए प्रति जानवर मुआवजा हो और खेत मजदूरों को भी उनकी खोई हुई मजदूरी का पूरा मुआवजा मिले।
प्रोफेसर सुखपाल भी इस बात पर जोर देते हैं,“जब किसानों को उनकी फसलों के नुकसान का मुआवजा दिया जाए, तो यह भी जरूरी है कि खेत मजदूरों (जो ज्यादातर जमींदार नहीं हैं) को उनके मजदूरी खोने के लिए पर्याप्त मुआवजा दिया जाए। पशुधन का नुकसान और भी गंभीर है क्योंकि ये उच्च मूल्य वाले जीवित संपत्ति हैं, जिन्हें छोटे किसानों और भूमिहीन लोगों के लिए भी तेजी से पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता। यह भविष्य में पशुधन बीमा की आवश्यकता को भी उजागर करता है, भले ही वे औपचारिक क्षेत्र से लिए गए ऋणों के साथ न खरीदे गए हों।”
पंजाब एग्रीकल्चर डायरेक्टर जसवंत सिंह ने डाउन टू अर्थ को कहा कि तीन लाख एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैली फॉल्स स्मट स्थिति को और गंभीर करेगा। इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि अतिवृष्टि ने किसानों की फसलों की उपज को काफी हद तक कम कर दिया है।
उन्होंन कहा, "हम अगले 15 दिनों बाद जब पंजाब के सभी जिलों से फसल के नमूने ले लेगे तभी उपज की कमी और नुकसान का सही आंकड़े का अंदाजा लगा सकेंगे।"
इसके लिए पंजाब के सभी जिलों में अलग-अलग एग्रो-क्लाइमेटिक एरिया से फसलों के नमूने लिए जाएंगे। हालांकि, अभी तक वह किसी नतीजे पर नहीं हैं।
1988 की बाढ़ के जख्म अभी तक बुजुर्ग किसानों के दिल में मौजूद हैं। घोनेवाला के किसान अतर सिंह कहते हैं कि तब बैलों की खेती थी और न ही इतनी खेती का विस्तार था। यह जरूर था कि हम दो फसलें ले रहे थे। हमारे घर भी पक्के नहीं थे तो उस वक्त आर्थिक नुकसान भी इतना बड़ा नहीं था। अब सरकार की नाकामी के चलते नदियों के किनारों तक खेती हो रही है। मशीनों ने इन्हें बड़ा विस्तार दे दिया है।
वह कहते हैं, "इसलिए 2025 की बाढ़ की क्षति का एक अलग और सभी बातों को ध्यान में रखकर आकलन होना चाहिए क्योंकि यह हमारी खरीफ का नुकसान भर नहीं है यह पहली बार होगा कि रबी सीजन में हम कुछ नहीं उगा पाएंगे।"