पंजाब बाढ़ के बाद : रेत के टीले बनते खेत
रावी, ब्यास और सतलुज में उफनाईं इस भीषण बाढ़ में खड़ी फसलों के साथ सब्जियों के खेत भी बर्बाद हुए। नदी किनारों पर डूब क्षेत्र और उसके आसपास मौजूद खेतों में बाढ़ का पानी उतर रहा है और नदियों के किनारे रेत में डूबे हुए सैकड़ों ट्यूबवेल के मुंह दिखाई पड़ रहे हैं। यह ट्यूबवेल इस बात की निशानी भी हैं कि पंजाब में इन्हीं नदियों के किनारे पानी इतना कम रहता था कि लोगों को सिंचाई की जरूरत पड़ती थी।
बाढ़ का पानी भले ही उतर रहा हो लेकिन रबी सीजन के लिए नाउम्मीदी पसर चुकी है।
फिरोजपुर के दिनेके गांव में अजीत सिंह की छह एकड़ का खेत सतलुज में समा गया। वह सतलुज दरिया के तट से दो किलोमीटर दूर धूंसी बांध के पास रहते हैं।
उनके खेतों में आठ फुट की रेत भरी हुई है। एक नजर में हजारो एकड़ खेत जैसे रेगिस्तान का एक छोटा सा हिस्सा दिखाई देता है। इसी रेत में उनके धान और गन्ने के खेत पूरी तरह नष्ट हो गए। वह कहते हैं कि 2023 की बाढ़ के बाद 3.5-4 लाख रुपए खर्च करके खेतों को तैयार किया था। अब यह आफत इतनी बड़ी है कि इस बार कोई रास्ता नहीं सूझ रहा।
इस रेत में घर और खेत के बीच रास्ता बनाने के लिए उन्होंने अपने पैसे से पांच हजार रुपए खर्च करके जेसीबी लगाया है। वह कहते हैं, कि इतना बालू कोई किसान कैसे हटा पाएगा। अब यहां फिलहाल कुछ नहीं होगा।
दिनेके गांव के सतपाल सिंह हरिके बैराज पर सवाल खड़ा करते हैं। वह कहते हैं कि तरनतारन की तरफ बैराज बनाने से पहले 1965 में करीब 20 गांवों को मुआवजा देकर हटाया गया था। हमारे यहां किसी किसान को मुआवजा नहीं दिया गया। यदि मुआवजा दिया जाए तो हम नदी के आस-पास खेती ही न करें।
हमें इतना मुआवजा मिल जाना चाहिए था कि हम कहीं और जाकर खेती लायक थोड़ी जमीनें खरीद सकते। अब यहां खेत नहीं सिर्फ रेत दिख रही है। किसान कितना पैसा और कहां से लाएगा?
वह कहते हैं, इन खेतों से रेत को हटाने के लिए करोड़ों रुपए की जरूरत होगी। कौन करेगा हमारी मदद?
फिरोजपुर जिले में ही घुरम गांव की रणजीत कौर करीब 3 एकड़ नष्ट हो चुके खेतों को दिखाती हैं। उनके खेतों में रेत नहीं लेकिन मिट्टी वाली गाद दो से तीन फुट तक भर गई है। बोरवेल इस गाद में समा गए हैं। वह कहती हैं, मक्के की फसल और धान की फसल बर्बाद हो गई। रिश्तेदार और अन्य जगहों से आने वाली मदद के चलते किसान इस आपदा में लड़ पा रहा है। सरकार की मदद सिर्फ घोषणाओं में है।
तरनतारन के हरिके कॉलोनी में गुरप्रीत सिंह 40 एकड़ खेत किराए पर लेकर खेती कर रहे थे। उनकी समूची फसल पीली पड़कर सड़ गई है। वह खेतों को दिखाकर कहते हैं कि कम से कम 20 हजार रुपए मुआवजे की जो घोषणा है वह किसानों को जल्द से जल्द मिल जानी चाहिए।
गुरप्रीत सिंह के छह जानवर इस बाढ़ में बह गए। अब उनके पास एक भी मवेशी नहीं हैं। गौशाला सूनी पड़ी है और एक किनारे चारा रखा हुआ है जो सड़ने लगा है। विंडबना यह है कि कहीं चारा है तो पशु नहीं और कहीं पशु बच गए हैं तो चारा नहीं।
डाउन टू अर्थ ने फाजिल्का के सबसे ज्यादा प्रभावित महात्मनगर गांव और राम सिंह भैनी गांव का भी दौरा किया। गांव का मुख्य मार्ग बाढ़ के कारण कट चुका है। गांवों में दो से तीन फुट तक मिट्टी की गाद भरी हुई है। सतलुज नदी की बाढ़ ने यहां के ग्रामीणों की पूरी फसल छीन ली है। मुख्य रूप से धान (परमल किस्में) का यह क्षेत्र है।
चरणजीत सिंह चेताते हैं कि बाढ़ ने जो किया वह तो दिख रहा है लेकिन सबसे बड़ी चिंता आने वाले सीजन की है। वह कहते हैं कि हम गेहूं नहीं लगा पाएंगे और हमें इस नुकसान का कुछ नहीं मिलेगा।
महात्मनगर गांव के लोगों का कहना है कि उनकी जमीनों पर उनका मालिकाना हक अभी तक नहीं दिया गया है। 2007 में अपने खेतों के लिए लाखों रुपए तक लोगों ने लगान भी भरा है लेकिन अभी जमीनों पर वह अधिकार नहीं दिखा सकते। इस वजह से इस आपदा में भी प्रभावित होने के बावजूद पीड़ितों में उनकी गिनती नहीं है।
राम सिंह भैनी गांव के गुरमीत सिंह दुखभरी आवाज में कहते हैं कि हम न पाकिस्तान के हैं और न हिंदुस्तान के रह गए हैं। वह गेहूं की बिजाई को लेकर कहते हैं कि इस बार उनके क्षेत्र में बहुत ज्यादा तो 30 फीसदी ही गेहूं की बुआई हो पाएगी।
पंजाब का किसान समस्याओं की कई परतों में फंसा हुआ है। जैसे-जैसे बाढ़ का पानी उतर रहा है, वैसे-वैसे दुख की कहानियां बाहर आ रही हैं।
सुखदेव सिंह ट्रैक्टर से अमृतसर के अजनाला तहसील में कोट गुरबख्श गांव के नजदीक घर में रखा हुआ चारा और गेहूं सड़क किनारे फेंकने आए हैं। अनाज के दाने और पशु चारा दोनो बुरी तरह सड़ गए हैं। उनसे गंध उठ रही है।
सुखदेव बताते हैं उन्होंने इस बार 38 एकड़ खेत में बासमती की फसल तैयार की थी। इनमें पूसा 1718, पूसा 110 और पूसा 1692 जैसी किस्में थीं। इसके अलावा 18 एकड़ गन्ने की फसल थी। सब बर्बाद हो गई है। वह बताते हैं 25-26 अगस्त की सुबह 7 बजे पानी आया था और उनके गांव में 10 लाशें बहकर आई थीं। इनमें कुछ फौजी थे और कुछ गांव के लोग थे।
सुखदेव बताते हैं कि घर में जो अनाज भंडारण के लिए रखा था वह भी बाढ़ के पानी में सड़ गया। गांव में गोभी की सैकड़ों एकड़ फसल बर्बाद हो गई।
सुखदेव कहते हैं कि अगले खरीफ सीजन तक यहां खेती के कोई आसार नहीं हैं। हमारे गांव में बाहर के और राज्य के मजदूरों का भी आना-जाना लगा रहता है। लेकिन इस बार वह भी नहीं आ पाएंगे।
गुरुदासपुर में डेरा बाबा नानक तहसील में किसा तेजप्रताप सिंह बताते हैं कि सबसे ज्यादा गोभी की फसल यहीं की पसंद की जाती है। हालांकि, बाढ़ ने इस फसल को बर्बाद कर दिया है।
डेरा नानक बाबा तहसील में भी रावी नदी के उफान और करतारपुर साहिब बॉर्डर पर मौजूद बांध टूटने के कारण पाकिस्तान सीमा तक पानी भरा हुआ है। इन दिनों बांध की मरम्मत का काम जारी है। खेतों में चारो तरफ पानी ही पानी भरा हुआ है। चारे के लिए पशुओं को लेकर इधर से उधर लोग भटक रहे हैं। तेजप्रताप बताते हैं कि मक्की का चारा पैलेट बना बनाकर प्रभावित किसानों की आपस में मदद की जा रही है। पशु चारे की किल्लत काफी बड़ी है।
तेजप्रताप सिंह धान की बालियों को दिखाते हुए कहते हैं यह अनाज के दाने बेकार हो गए हैं। इनका कोई मोल नहीं बचा है।