मरुस्थलीकरण पर काबू पाने से 2030 तक मिट सकती है दुनिया की गरीबी

टिकाऊ भूमि प्रबंधन प्रौद्योगिकियों में निवेश से कृषि भूमि का क्षरण रोक कर 2030 तक एशिया व अफ्रीका में गरीबी को खत्म करने में मदद मिलेगी
तारिक अजीज / सीएसई
तारिक अजीज / सीएसई
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तेजी से बढ़ती वैश्विक जनसंख्या के कारण भोजन, कपड़े और जैव ईंधन की मांग भी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में भू-क्षरण और मरुस्थलीकरण दुनिया की सबसे बड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों के तौर पर सामने आए हैं। एशियाई और अफ्रीकी देशों में तो इस समस्या ने और भी विकट रूप धारण कर लिया है। एसडीजी 15.3 में तय किए गए “भू-क्षरण तटस्थ विश्व” के लक्ष्य को 2030 तक हासिल कर पाना, न केवल अफ्रीकी और एशियाई देशों की प्रगति पर निर्भर करेगा, बल्कि इस लक्ष्य को प्राप्त कर पाने में इनकी सफलता पर भी महत्वपूर्ण ढंग से निर्भर होगा। 4.3 अरब हेक्टेयर भूक्षेत्र के साथ एशिया दुनिया का विशालतम और सबसे अधिक जनसंख्या वाला महाद्वीप है। दुनिया की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या एशिया में निवास करती है। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भूमि और उससे जुड़ी पारिस्थितिकी-तंत्र की व्यवस्थाओं पर निर्भर हैं। प्रभावित लोगों की संख्या के हिसाब से ये महाद्वीप भू-क्षरण , मरुस्थलीकरण और सूखे से सबसे बुरी तरह त्रस्त है। दुनिया के सबसे बड़े और सबसे ज्यादा आबादी वाले महाद्वीप, एशिया का कुल वैश्विक भूमि के लगभग 30 प्रतिशत हिस्से पर अधिकार है।

अब उन अफ्रीकी देशों की बात करते हैं, जहां स्थिति भयानक हो चुकी है और भू-क्षरण और मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है। अफ्रीका के एजेंडे 2063 [1] की पहली महत्वाकांक्षा, समावेशी प्रगति व सतत विकास (अफ्रीकी संघ आयोग, 2015) के आधार पर एक समृद्ध अफ्रीका का निर्माण करना है। अफ्रीकी देशों के लिए उन सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी)[2] को हासिल करना उनके एजेंडा 2063 की महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप ही है, जिनके लिए दुनिया ने 2030 का लक्ष्य निर्धारित किया है।

अफ्रीका में हर साल लगभग 12 मिलियन हेक्टेयर जमीन (बुल्गेरिआ या बेनिन जितनी बड़ी भूमि) नष्ट हो जाती है और साथ ही नष्ट हो जाती है 20 मिलियन टन अनाज उपजाने की क्षमता। खाद्य असुरक्षा, गरीबी, सामाजिक तनाव, साफ पानी की कमी भू-क्षरण के सामाजिक-आर्थिक परिणाम हैं। वैश्विक भू-क्षरण की समीक्षा इस बात की पुष्टि करती है कि अफ्रीका विशेष रूप से भूमि क्षरण की चपेट में है और सबसे ज्यादा प्रभावित भी। यूएनसीसीडी के अनुसार, अफ्रीका में लगभग दो तिहाई उपजाऊ भूमि भू-क्षरण से प्रभावित है। अनुमान है कि कृषि योग्य भूमि का नुकसान ऐतिहासिक दर से 30 से 35 गुना ज्यादा हो रहा है।

एसडीजी को पाने और अफ्रीका को संपन्न व गरीबी-मुक्त बनाने और एजेंडा 2063 “दि अफ्रीका वी वांट” की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए उसे अपने प्राकृतिक संसाधनों का दीर्घकालिक प्रबन्धन करना होगा। मिट्टी, खासकर कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में इस्तेमाल होने वाली मिट्टी की ऊपरी परत, दुनिया के किसी भी देश में खाद्य, रेशे और जैव ईंधन के उत्पादन के लिए सबसे जरूरी प्राकृतिक संसाधन होते हैं। मिट्टी बहुत धीमे-धीमे तैयार होती है और कृषि भूमि की स्थिति में मिट्टी की ऊपरी 1 इंच की परत को तैयार होने में 200 से 1,000 साल तक लग जाते हैं। चारागाह और वनभूमि होने की स्थिति में तो यह समय और भी ज्यादा हो सकता है।

ईएलडी की पहल और यूएनईपी के द्वारा प्रस्तुत “इकोनॉमिक्स ऑफ लैंड डिग्रडेशन इन अफ्रीका: बेनिफिट ऑफ एक्शन आउटवेट दी कॉस्ट्स” नामक रिपोर्ट इस तथ्य को उजागर करती है। 42 अफ्रीकी देशों में अन्न उपजाने योग्य 105 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि में भू-क्षरण से होने वाली पोषक तत्वों की कमी के चलते प्रति वर्ष 280 मिलियन टन अनाज की फसलों की क्षति हो रही है। इन नुकसानों का अनुमानित आर्थिक मूल्य 127 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष के लगभग है। इसी अध्ययन के अन्य परिणाम दर्शाते हैं कि 42 अफ्रीकी देशों में भू-क्षरण के खिलाफ टिकाऊ भूमि प्रबंधन (एसएलएम) के तहत उठाए गए कदमों के फायदे 15 वर्षों (2015- 2030) में उससे जुड़ी लागत से औसतन 7 गुना ज्यादा हैं।

एशिया के 44 देशों को इस अध्ययन से एक महाद्वीपीय स्तर का आनुभाविक विश्लेषण प्राप्त होता है। इसमें 127 प्रकार की फसलों की पैदावार वाली 487 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य व स्थायी खेतिहर जमीन के 2002 से 2013 तक के आंकड़ों को शामिल किया गया है। यह अगले 13 वर्षों (2018–2030) में इस महाद्वीप के उन सभी 44 देशों और चीन के दोनों प्रांतों की कुल कृषि योग्य व स्थायी खेतिहर जमीन की 87 फीसदी होगी।

लागत लाभ विश्लेषण के परिणामों से पता चलता है कि अगर 13 वर्षों (2018-2030) में सभी एशियाई देश पूरी 487 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि पर टिकाऊ भूमि प्रबंधन प्रौद्योगिकियों के विकास में निवेश करते हैं, तो 2,494 अमेरिकी डॉलर प्रति हेक्टेयर की दर से निवेश की कुल लागत का वर्तमान मूल्य 1,214 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा। स्थायी भूमि प्रबंधन में निवेश करने से कुल लाभ के प्रवाह का वर्तमान मूल्य 4,216 बिलियन अमरीकी डॉलर आंका गया है, जो 8,663 अमेरिकी डॉलर प्रति हेक्टेयर के बराबर है। इसका मतलब है कि एशिया लगभग 3,008 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध वर्तमान मूल्य बना सकता है।

इसके अलावा, अध्ययन से संकेत मिलता है कि टिकाऊ भूमि प्रबंधन प्रौद्योगिकियों में निवेश करने और कृषि भूमि क्षरण को रोकने से इन देशों को 2030 तक गरीबी को खत्म करने में मदद मिलेगी। पूरे एशिया में 2030 तक प्रति व्यक्ति घरेलू खाद्य फसल उत्पादन में 858 किलोग्राम तक वृद्धि होगी और इसके परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में विस्तार के साथ ही आर्थिक विकास भी होगा।

मिट्टी की ऊपरी परत के क्षरण के चलते भूमि में पोषक तत्वों (एनपीके- नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम) की कमी की वजह से फसलों के कुल सालाना उत्पादन में करीब 16.7 मिलियन टन का नुकसान हो रहा है। क्षेत्र में पैदा होने वाली फसलों के भारित औसत मूल्य के मुताबिक, यह नुकसान लगभग 9.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मिट्टी की ऊपरी परत के क्षरण के चलते पोषक तत्वों (एनपीके- नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम) की कमी से अगर बचाव किया जा सके, तो एशिया 0.68 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से उत्पादकता बढ़ा सकता है। मिट्टी की ऊपरी परत के क्षरण के चलते पोषक तत्वों में कमी के कारण क्षेत्र में सालाना उत्पादन में करीब 1.31 बिलियन टन का नुकसान होता है जो कुल सालाना फसल के उत्पादन का लगभग 53 फीसदी है। भारित औसत फसल की कीमतों के मुताबिक, इस वार्षिक नुकसान का संगत मूल्य लगभग 732.7 अमेरिकी डॉलर है।

इसका मतलब यह है कि एशिया की कृषि भूमि की ऊपरी परत के क्षरण के चलते होने वाली पोषक तत्वों (एनपीके- नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम) की कमी से बचाव के जरिए क्षेत्रीय स्तर पर 5.07 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष से लेकर 7.76 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष तक उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा। इसलिए, एशियाई देशों, क्षेत्रीय और वैश्विक हितधारकों को मिट्टी की ऊपरी परत के क्षरण के चलते होने वाली पोषक तत्वों की कमी को रोकने के लिए कदम उठाने जरूरी हैं, जिसकी वजह से क्षेत्र में कृषि भूमि में भी कमी आ रही है। इसके लिए एशिया की खेतिहर जमीन पर टिकाऊ भूमि प्रबंधन प्रौद्यौगिकियों में निवेश करना पड़ सकता है।

वैज्ञानिक आंकड़ों और आर्थिक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि अगले दशक (2018-2030) में कृषि भूमि पर टिकाऊ भूमि प्रबंधन में निवेश से एसडीजी 15.3 को हासिल करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही यह निवेश इस अध्ययन में सम्मिलित अधिकतर एशियाई देशों को बहुत से सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मददगार साबित होगा। इसमें आर्थिक विकास और रोजगार सृजन (एसडीजी 8.1 और 8.5), भीषण गरीबी को खत्म करने और गरीबी स्तर में कमी लाने (एसडीजी 1.1 और 1.2), कृषि उत्पादन व आय दोगुना करते हुए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और सतत खाद्य सुरक्षा व्यवस्था (एसडीजी 2.3 और 2.4) तय करने जैसे लक्ष्य शामिल हैं।

(लेखक यूएन पर्यावरण में मुख्य पर्यावरणीय अर्थशास्त्री हैं)

अफ्रीका और एिशया में टिकाऊ भूमि प्रबंधन जरूरी

टिकाऊ भूमि प्रबंधन को अमल में लाने के लिए इन तथ्यों पर गौर करने की जरूरत है

  • अध्ययन के अनुसार अगले 15 वर्षों में (2016-30) में भूमि क्षरण के चलते पोषक तत्वों की कमी के कारण अनाज की फसलों में होने वाले कुल नुकसान के रूप में, निष्क्रियता की लागत का वर्तमान मूल्य, इन 42 देशों की जीडीपी के करीब 12.3  प्रतिशत के बराबर है
  • हालांकि, टिकाऊ भूमि प्रबंधन को अमल में लाने के लिए निवेश, महाद्वीप के 42 देशों की जीडीपी के 1.15 फीसदी के बराबर ही होगा
  • उप-सहारा अफ्रीका में रह रहे हर तीन में से लगभग एक व्यक्ति कुपोषण का शिकार है और करीब 40 फीसदी अफ्रीकियों को नियमित तौर पर पर्याप्त भोजन भी नहीं मिल पा रहा है   
  • भू-क्षरण को नियंत्रित करने और लैंड डिग्रेडेशन न्यूट्रैलिटी (शून्य भू-क्षरण) के निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने में टिकाऊ भूमि प्रबंधन अत्यधिक महत्वपूर्ण है
  • अफ्रीकी देशों पर किए गए हर अध्ययन में ये बात सामने आई है कि भूक्षरण पर नियंत्रण करने के लिए की जाने वाली कार्रवाई से होने वाले फायदे उसमें लगने वाली लागत से कहीं अधिक है

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