कनाडा के बांफ नेशनल पार्क में स्थित पेटो ग्लेशियर पिछले 50 वर्षों में करीब 70 फीसदी सिकुड़ चुका है। हाल ही में वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विस द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि पिछले कुछ वर्षों में इस ग्लेशियर में बर्फ जमने की गति, पिघलने की रफ्तार से काफी कम है।
इस ग्लेशियर में आता यह बदलाव नासा अर्थ ऑब्जर्वेटरी द्वारा लैंडसेट प्रोग्राम की मदद से ली तस्वीरों में भी साफ नजर आता है। उपग्रह से प्राप्त इन तस्वीरों में 1999 और 2021 के बीच इस ग्लेशियर की स्थिति में क्या बदलाव आए थे, उन्हें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
इन तस्वीरों से पता चला है कि 1999 से 2021 के बीच पेटो ग्लेशियर काफी सिकुड़ चुका है। जिसकी वजह से इसका टर्मिनस लगभग एक किलोमीटर पीछे हट गया है। इस ग्लेशियर से जो बर्फ पिघल रही है उसकी वजह से इस ग्लेशियर के आखिर में टर्मिनस के पास एक झील बन रही है।
गौरतलब है कि पेटो ग्लेशियर दुनिया के उन गिने चुने ग्लेशियरों में से एक है जिसपर वैज्ञानिक लगातार नजर बनाए हुए हैं। इस ग्लेशियर को 1968 में संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय हाइड्रोलॉजिकल दशक पहल के तहत सन्दर्भ ग्लेशियर के रूप में चुना था, तब से अब तक वैज्ञानिक इसकी लगातार निगरानी कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो सदी के अंत तक यह ग्लेशियर 85 फीसदी सिकुड़ जाएगा, जिसका सीधा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो ताजे पानी की जरूरतों के लिए इस ग्लेशियर पर निर्भर हैं। गौरतलब है कि इसके पिघलने से उत्तरी सस्केचेवान नदी को पानी मिलता है, जो अल्बर्टा और सस्केचेवान को पानी की आपूर्ति करती है।
बढ़ते तापमान के साथ बढ़ रही है ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार
वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते बढ़ती गर्मी के कारण इस ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार में तेजी आई है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने आस-पास के जंगलों में लगने वाली आग को भी जिम्मेवार माना है। वैज्ञानिकों की मानें तो हाल के दशकों में पिघलने की रफ्तार में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है, लेकिन बर्फबारी की दर लगभग वही है।
ऐसा नहीं है कि यह पहली मौका है जब ग्लेशियरों में जमा बर्फ तेजी से पिघल रही है। हाल ही में न्यूजीलैंड के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉटर एंड एटमॉस्फेरिक रिसर्च (एनआईडब्ल्यूए) के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी थी कि बढ़ते तापमान के चलते अगले एक दशक में न्यूजीलैंड के कई ग्लेशियर गायब हो सकते हैं। इतना ही नहीं उनका कहना था कि जलवायु में होते बदलावों के चलते ग्लेशियर पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा छोटे और पतले होते जा रहे हैं।
इसी तरह जर्नल द क्रायोस्फीयर में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में जमा बर्फ तापमान बढ़ने के साथ तेजी से पिघलती जा रही है। पता चला है कि जहां 1990 में यह 80,000 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही थी, वो दर 2017 में बढ़कर 130,000 करोड़ टन प्रति वर्ष पर पहुंच गई है। मतलब की यह पहले के मुकाबले 65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है।
ऐसी हुई कुछ जानकारी जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित एक अध्ययन में भी सामने आई थी, जिसके मुताबिक हिमालय के ग्लेशियर पहले के मुकाबले असाधारण तौर पर 10 गुना ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके चलते गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के लिए बड़ा संकट पैदा हो सकता है। सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक भी एशिया में जिस तरह गर्मियों के दौरान तापमान बढ़ रहा है, उसका असर ऊंचे पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियरों पर भी पड़ रहा है, और वो पहले के मुकाबले कहीं तेजी से पिघल रहे हैं।