29 फीसदी की वृद्धि के साथ 0.8 टन पर पहुंचा भारत में प्रति व्यक्ति कोयले से होने वाला उत्सर्जन

जी-20 देशों में कोयला के कारण होते प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के मामले में ऑस्ट्रेलिया सबसे ऊपर हैं। जो भारत से करीब छह गुणा ज्यादा उत्सर्जन कर रहा है
थर्मल पावर प्लांट से होता उत्सर्जन; फोटो: आईस्टॉक
थर्मल पावर प्लांट से होता उत्सर्जन; फोटो: आईस्टॉक
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सौर और पवन ऊर्जा में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद अभी भी ऑस्ट्रेलिया दूसरे अन्य जी20 देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति कोयले के चलते कहीं ज्यादा उत्सर्जन कर रहा है। यदि वर्तमान आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2022 में ऑस्ट्रेलिया ने कोयला आधारित बिजली की वजह से प्रति व्यक्ति 4.4 टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित की थी, जो भारत द्वारा प्रति व्यक्ति किए जा रहे उत्सर्जन से करीब छह गुना ज्यादा है।

वहीं भारत की बात करें तो देश में कोयले से होने वाला प्रति व्यक्ति उत्सर्जन पिछले सात वर्षों में 29 फीसदी की वृद्धि के साथ 0.8 टन पर पहुंच गया है। इंडोनेशिया में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति 0.61 टन दर्ज किया गया।

यह जानकारी एनर्जी थिंक टैंक एम्बर द्वारा किए नए विश्लेषण में सामने आई है। वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत और चीन अपने नए थर्मल पावर प्लांट्स को लेकर लम्बे समय से चर्चा का विषय रहें हैं। हालांकि प्रति व्यक्ति के आधार पर कोयले से होते उत्सर्जन के मामले में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया भारत, चीन सहित अन्य प्रमुख जी20 देशों से कहीं ज्यादा आगे हैं।

विश्लेषण के मुताबिक जहां दक्षिण कोरिया ने 2022 में कोयले आधारित बिजली के चलते प्रति व्यक्ति 3.27 टन सीओ2 उत्सर्जित की थी। वहीं चीन में यह आंकड़ा 3.1 टन दर्ज किया गया। इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में 2.5 टन, जापान में 2.29 टन, अमेरिका में 2.02 टन और जर्मनी में प्रति व्यक्ति 1.77 सीओ2 उत्सर्जन टन रिकॉर्ड किया गया।

वैश्विक स्तर पर कोयले की वजह से होते प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को देखें तो वो 1.06 टन दर्ज किया गया  है। मतलब की भारत प्रति व्यक्ति वैश्विक औसत से भी कम उत्सर्जन कर रहा है। वहीं जी20 देशों के प्रति व्यक्ति औसत उत्सर्जन को देखें तो वो वैश्विक औसत से कुछ ज्यादा 1.63 टन दर्ज किया गया।

एम्बर का कहना है कि वैश्विक रूप से बिजली क्षेत्र से जितना भी उत्सर्जन हो रहा है उसके 80 फीसदी के लिए केवल जी20 देश ही जिम्मेवार हैं। बता दें कि एम्बर द्वारा किया गया यह विश्लेषण ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यु 2023, इलेक्ट्रिसिटी डाटा एक्स्प्लोरर और संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या से जुड़े आंकड़ों पर आधारित है।

यदि 2015 के आंकड़ों से तुलना करें तो जी20 देशों में प्रति व्यक्ति होते उत्सर्जन में नौ फीसदी की वृद्धि हुई है। इसी तरह वैश्विक रूप से भी इन सात वर्षों में प्रति व्यक्ति कोयले के कारण होते उत्सर्जन में चार फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। मतलब की कहीं न कहीं हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों से भटक रहे हैं।

आधी से ज्यादा जी20 अर्थव्यवस्थाओं ने प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में की है गिरावट, लेकिन अभी भी लक्ष्यों से है दूर

हालांकि इस दौरान ऑस्ट्रेलिया ने अपने प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में एक चौथाई की कमी की है लेकिन इसके बावजूद भी ऑस्ट्रेलिया का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक औसत से तीन गुणा ज्यादा है।

यदि 2015 से 2022 के बीच पिछले सात वर्षों में देखें तो यूके ने प्रति व्यक्ति अपने कोयला बिजली उत्सर्जन में सबसे ज्यादा 93 फीसदी की कमी की है। इसी तरह फ्रांस ने 63 फीसदी, इटली ने 50 फीसदी और ब्राजील ने 42 फीसदी की महत्वपूर्ण कटौती की है। फ्रांस और ब्राजील में इस कटौती की वजह जीवाश्म ईंधन के बजाय स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का बढ़ता उपयोग है।

वहीं दूसरी तरफ इन सात वर्षों में इंडोनेशिया के प्रति व्यक्ति कोयला उपयोग के कारण होते उत्सर्जन में 56 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं इस दौरान टर्की में भी 41 फीसदी की दर्ज की गई है। ऐसा ही कुछ चीन में भी देखने को मिला है जहां प्रति व्यक्ति कोयला उत्सर्जन में 30 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

हालांकि चीन ने अपने कोयला संयंत्रों को कम करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन इसके बावजूद उसने बिजली संयंत्रों का निर्माण बंद नहीं किया है। एक अध्ययन से पता चला है कि चीन में करीब 243 गीगावॉट कोयला आधारित बिजली क्षमता या तो निर्माणाधीन है या उसे स्वीकृति मिल चुकी है जो पूरे जर्मनी को बिजली देने के लिए काफी है।

इससे पता चलता है कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव तेजी से नहीं हो रहा है। चीन-भारत सहित कई देश अभी भी कोयले पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं और यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि इसकी वजह से दिन-प्रतिदिन जलवायु लक्ष्यों से दूर होते जा रहे हैं।

हालांकि पिछले सात वर्षों में दुनिया की 20 में से 12 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देकर अपने प्रति व्यक्ति कोयला उत्सर्जन को कम किया है। लेकिन इसके बावजूद अभी भी वो कमी काफी नहीं है। वहीं भारत-इंडोनेशिया-चीन जैसे कुछ विकासशील देशों में, ये उत्सर्जन अभी भी बढ़ रहा है। जो आने वाले समय में खतरे की ओर इशारा करता है।

देखा जाए तो जीवाश्म ईंधन उपयोग को प्रभावी ढंग से कम करने और बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में होता बदलाव अभी भी बहुत धीमा है। भले ही जी-20 से जुड़े कुछ देशों ने इसमें कटौती की है लेकिन अभी भी वो बहुत ज्यादा उत्सर्जन कर रहे हैं।

इससे पता चलता है कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव तेजी से नहीं हो रहा है। चीन-भारत सहित कई देश अभी भी कोयले पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं और यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि इसकी वजह से दिन-प्रतिदिन जलवायु लक्ष्यों से दूर होते जा रहे हैं।

गौरतलब है कि जी20 देशों के दिग्गज नेता नौ और दस सितम्बर को होने वाले जी20 शिखर सम्मलेन में हिस्सा लेंने के लिए दिल्ली में जुट रहे हैं। ऐसे में भारत के पास मौका है कि वो जलवायु मुद्दों को हल करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है। यह जी20 अर्थव्यवस्थाएं, बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

एम्बर में एशिया के प्रोग्राम लीड आदित्य लोल्ला का कहना है कि, "जी20 शिखर सम्मेलन के मेजबान के रूप में भारत, समूह के भीतर जलवायु मुद्दों के समाधान में अग्रणी भूमिका निभा सकता है। अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता कॉप-28 अध्यक्ष द्वारा 2030 तक अक्षय ऊर्जा को तीन गुणा करने के लक्ष्य के अनुरूप है।“

“यदि भारत इस लक्ष्य का जल्द से जल्द समर्थन करता है, तो वो अन्य जी20 देशों को भी कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है और साथ ही विकसित देशों को भी अपने प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को कम करने के लिए भी प्रेरित कर सकता है।"

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