मध्य एशिया में 1950 के दशक के बाद से सूखे के लिए लोग हैं जिम्मेदार: शोध

शोध में कहा गया है कि दुनिया के अन्य क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैसों और एरोसोल के मानवजनित उत्सर्जन से प्रमुख वायुमंडलीय प्रसार बदल रहा है, जिससे मध्य एशियाई वर्षा और जल संसाधनों पर असर पड़ रहा है
Photo : Wikimedia Commons
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उत्तरी मध्य एशिया की अर्थव्यवस्था कृषि पर बहुत अधिक निर्भर है और यह खासकर स्थानीय जल विज्ञान चक्र में होने वाले बदलाव से प्रभावित होती है। हालांकि, यह क्षेत्र उत्तरी गोलार्ध के सबसे बड़े शुष्क क्षेत्रों में से एक है और हाल के दशकों में यहां जल संसाधनों में भारी कमी आई है, जिसके चलते यहां पानी का संकट गहरा रहा है। इसका एक उदाहरण अराल सागर का तेजी से सूखना और खारा होना है।

जबकि बांधों के निर्माण, जलमार्गों को मोड़ने और पानी की बर्बादी को इस कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। जलवायु परिवर्तन ने क्षेत्रीय जल संसाधनों को किस तरह प्रभावित किया है इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है।

उत्तरी मध्य एशिया के सूखे की प्रवृत्ति को लेकर चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज में इंस्टीट्यूट ऑफ एटमॉस्फेरिक फिजिक्स के जी जियांग और  तियानजुन झोउ, ने हाल ही में एक शोध प्रकाशित किया है। जिसमें मध्य एशियाई पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव गतिविधियों के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। जिसमें प्रमुख वायुमंडलीय प्रसार और स्थानीय हाइड्रोलॉजिकल चक्र के बारे में बताया गया है। यह शोध जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि उत्तरी मध्य एशिया में जल संसाधनों की कमी का संकट 1950 के दशक के बाद से सूखे की प्रवृत्ति (ड्राइइंग ट्रेंड) के कारण हुआ। घटती हुई बारिश की वजह से दक्षिण-पूर्वी भाग में बदलाव और उपोष्णकटिबंधीय पच्छमी हवा (वर्स्टली जेट) के कमजोर पड़ने से जुड़ी है। जियांग ने बताया कि उपोष्णकटिबंधीय वैस्टरली जेट यूरेशिया में महत्वपूर्ण प्रसार प्रणालियों में से एक है और उत्तरी मध्य एशिया (एनसीए) पर गर्मियों में होने वाली वर्षा से निकटता से जुड़ा हुआ है, अर्थात बारिश इसी के योगदान से होती है।

उपोष्णकटिबंधीय धारा (सब्ट्रापिकल वर्टली जेट, एसडब्ल्यूजे) और मध्य एशियाई बारिश में होने वाले परिवर्तन पर ग्रीनहाउस गैसों, मानवजनित एरोसोल और प्राकृतिक प्रभावों जिनमें सौर गतिविधि और ज्वालामुखी एयरोसोल आदि शामिल हैं, की भूमिका की पहचान कर इसे अलग करने के लिए, शोधकर्ताओं ने डिटेक्शन एंड एट्रीब्यूशन मॉडल इंटरकम्पैरिसन प्रोजेक्ट से 10 मॉडलों के मल्टीमॉडल सिमुलेशन को अपनाया।

उन्होंने दिखाया कि ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन उपोष्णकटिबंधीय पच्छमी हवा (वर्टली जेट) भूमध्यरेखीय बदलाव कर सकता है, जबकि एशियाई प्रदूषण में वृद्धि और यूरोपीय एरोसोल उत्सर्जन में कमी के परिणामस्वरूप पच्छमी हवा कमजोर हो सकती है, जो 1950 के दशक से गर्मियों में एशिया के दोनों उत्तरी मध्य में उल्टी गति से चलने के कारण सुखाने की प्रवृत्ति में सहायक होता है।

जियांग ने कहा हमारे परिणाम बताते हैं कि दुनिया के अन्य क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैसों और एरोसोल के मानवजनित उत्सर्जन भी प्रमुख वायुमंडलीय प्रसार को बदल करके मध्य एशियाई वर्षा और जल संसाधनों को प्रभावित कर सकता हैं।

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