फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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भाग 3 : कॉप 28 में उत्सर्जन को खत्म करने के लिए क्या बनी रणनीति, यहां जानिए

अपने जीवनकाल के पहले 20 वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड से 80 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन इस बार कॉप-28 सम्मेलन का प्रमुख मुद्दा रहा।
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र्म अल-शेख मिटिगेशन एंबिशन वर्क एंड इंप्लीमेंटेशन वर्क प्रोग्राम (एमडब्ल्यूपी) समझौते की बातचीत की शुरुआत 1 दिसंबर को काॅप 28 के सम्मेलन में हुई। इस कार्यक्रम को मूल रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका ने देशों को अपने जलवायु कार्यक्रमों में राहत संबंधी महत्वकांक्षाओं को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से काॅप 26 में प्रस्तावित किया था ताकि 1.5 सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग की सीमारेखा के भीतर रहने के जलवायु योजना का अनुपालन किया जा सके। एमडब्ल्यूपी पर यह सीमारेखा विकसित देशों ने लागू की है जिसने आरंभ में यह सवाल खड़ा किया था कि उनकी भूमिका ग्लोबल स्टॉकटेक से भिन्न कैसे है। यह वस्तुतः महत्वाकांक्षी व्यवस्था है। जून 2023 को बॉन में आयोजित संयुक्त राष्ट्र की अर्द्धवार्षिक जलवायु सम्मेलन एमडब्ल्यूपी पर बातचीत को स्थगित करना पड़ा था क्योंकि और अधिक शमन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए विकासशील देशों ने वित्तीय समर्थन की मांग की थी जिसका ब्यौरा पारस्परिक रूप से सहमत विकासशील देशों के समूह के प्रस्ताव में दिया गया था। बोन और दुबई में हुई बातचीत के बीच एमडब्ल्यूपी के सह-अध्यक्षों ने शमन योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए दो कार्यक्रम आयोजित किए। एक “ग्लोबल डायलाॅग एंड इन्वेस्टमेंट फोकस्ड इवेंट” जून और फिर अक्टूबर 2023 में आयोजित हुआ जिनमें संबद्ध विषयों के विशेषज्ञ और देश के प्रतिनिधियों ने ऊर्जा संक्रमण को बढ़ाने के मसले पर एक साथ विचार विमर्श किया। इस प्रक्रिया के सारांश को दुबई में सह-अध्यक्षों द्वारा एक प्रतिवेदन में प्रस्तुत किया गया। इसमें सभी नवीकरणीय ऊर्जा की निविष्टि, कार्बन अवशोषण और वित्त-संबंधी विषयों का उल्लेख शामिल था। जून में आयोजित सेकंड ग्लोबल डायलॉग परिवहन पर केंद्रित था। प्रतिभागियों ने परिवहन व्यवस्थाओं की ओर ऊर्जा संक्रमण को अग्रसारित करने के अवसरों और चुनौतियों के बारे में विमर्श किया जो मुख्यतः गैर-मोटर चालित परिवहन माध्यमों, ऊर्जा-दक्षता, वाहनों के विद्युतीकरण और निम्न-कार्बन ईंधनों पर केंद्रित था।

लेकिन दुबई में छोटे कार्यविधिक तथ्यों के ठोस बातों की अनदेखी की गई। विकसित देशों ने जरूरी विषयों और पेरिस समझौते में तय 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के प्रति एनडीसी के समर्थन की आवश्यकता पर बातचीत आरंभ करने में अपनी रुचि व्यक्त की। विकसित देशों ने ऊर्जा संक्रमण के लिए वित्त प्राप्त करने के मार्ग में आने वाले अवरोधों के बारे में बाताया। भारत ने इस बात पर जोर दिया कि एमडब्ल्यूपी को गैर अनुदेशात्मक और गैर दंडात्मक होना चाहिए और नए लक्ष्यों को निर्धारित नहीं करना चाहिए। मिस्र सहित अनेक देशों ने ग्लोबल स्टॉकटेक की प्रक्रियाओं की नकल से बचने की आवश्यकता पर बल दिया।

मसौदे पर अंतिम सहमति तब बनी, जब 13 दिसंबर को भूमि पर लगे करों को घटा दिया गया। यह मसौदा ग्लोबल डायलॉग और सह-अध्यक्षों द्वारा प्रस्तुत सारांश प्रतिवेदन पर भी सहमति जताता है और 2024 के ग्लोबल डायलॉग पर विमर्श-योग्य विषयों पर निवेदनों और क्षेत्रीय जलवायु सप्ताहों को समझने के लिए भौगोलिक बाधाओं से संबंधित पूरक विमर्शों को आमंत्रित करता है। दुबई में तथ्य-विमर्श के क्रम में एमडब्ल्यूपी की असफलता के दो संभावित कारण हैं – पहला कारण जीएसटी के पूर्वानुमान और सहमति के बिंदुओं से अधिक प्राप्त करने के प्रति एक अनिच्छा है। दूसरा कारण शमन की जिम्मेदारी के संदर्भ में पार्टियों के बीच अविश्वास का वातावरण है।

एमडब्ल्यूपी को आकार देने वाली राजनीतिक अंतर्धाराएं इस बहस को गहरे रूप में प्रभावित करती हैं। यह कहना कठिन है कि अमेरिका द्वारा काॅप 26 में पेश किया गया मूल प्रस्ताव भूमंडलीय परिप्रेक्ष्य में अच्छे उद्देश्य के साथ लाया गया था या विकसित देशों के वास्तविक प्रदूषक होने के बावजूद उसकी नीयत विकासशील देशों के कंधों पर भी बराबर की जिम्मेदारी डाल देने की थी। विकासशील देशों ने विगत सालों में यह बात लगातार कही है कि जलवायु पर विमर्श उनकी प्राथमिकताओं -मसलन अनुकूलन, तथा हानि और क्षति की जगह शमन पर अत्यधिक केंद्रित है। पेरिस समझौते ने महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व के अनुसार खुद ही विभेदित उत्तरदायित्व-बंटवारे के विचार को कमजोर करने और परिणामस्वरूप सभी देशों के कंधों पर एनडीसी का एक बराबर बोझ रखने का काम किया। यह इस वस्तुस्थिति को दर्शाता है कि क्यों विकासशील देश इसकी पुनरावृति करते हैं कि एमडब्लूपी क्यों गैर अनुदेशात्मक होना चाहिए, और एनडीसी में पहले से निर्धारित लक्ष्यों से पृथक उनपर नए लक्ष्य क्यों नहीं थोपे जाने चाहिए। बल्कि, जब कभी विकासशील देश जीवाश्म ईंधन जैसे मुद्दों पर विभेदित समयरेखा और वित्त की मांग रखते हैं, तब उन्हें “ब्लॉकर्स ऑफ एम्बिशन” कह कर बदनाम किया जाता है, जैसा कि ग्लोबल स्टॉकटेक के क्रियाकलापों में देखा गया है।

विश्वास का यह अभाव विकासशील देशों में एक अनिच्छा उत्पन्न करता है जिसके कारण वे और अधिक शमन की महत्वाकांक्षा में फंस जाते हैं और एमडब्लूपी की प्रगति में रोड़े अटकाते हैं। इस प्रक्रिया के सह-अध्यक्षों को इस मुद्दे को 2024 में निपटाना होगा ताकि एमडब्लूपी को एक रचनात्मक जगह बनाया जा सके जहां ऊर्जा संक्रमण के अवरोधों और अवसरों पर बात-विमर्श हो सके, और सभी देश मिलजुल कर समाधान और समर्थन पर काम कर सकें। अनुकूलन को लेकर इस कॉप में परिणाम यह रहा कि एक प्रक्रियात्मक निर्णय का मसौदा बने जो पार्टियों तथा अन्य समूहों द्वारा उन विषयों पर निवेदन आमंत्रित करता है जिस पर अगले वर्ष के ग्लोबल डायलॉग पर बातचीत हो सके। वहीं, इसमें कमी यह रही कि एनर्जी ट्रांजिशन और वित्तीय तथा तकनीकी आवश्यकताओं के मार्ग के अवरोधों और अवसरों पर ठोस बातचीत हो जिसकी आवश्यकता विकासशील देशों को है।

मीथेन

अपने जीवनकाल के पहले 20 वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड से 80 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन इस बार कॉप-28 सम्मेलन का प्रमुख मुद्दा रहा। इससे पहले ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी) में देशों से 2030 तक मीथेन सहित गैर-कॉर्बनडाई ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी लाने का आह्वान किया गया था। कुछ देश यह चाहते थे कि जीएसटी के मसौदे में मीथेन उत्सर्जन में कमी के लिए आंकड़ों में एक निर्धारित लक्ष्य दिया जाए। हालांकि, ऐसा नहीं हो सका। 

 जीएसटी के तहत अगस्त 2023 में प्रसारित एक अनौपचारिक मसौदे में पार्टियों से 2030 तक वैश्विक स्तर पर मीथेन उत्सर्जन को कम से कम 30 प्रतिशत और 2035 तक 40 प्रतिशत तक कम करने का आह्वान किया गया। वैश्विक जलवायु विज्ञान और नीति संस्थान क्लाइमेट एंड एनर्जी एनालिस्ट एट क्लाइमेट एनालिटिक्स के जलवायु और ऊर्जा विश्लेषक नील ग्रांट डाउन टू अर्थ  को बताते हैं कि “यह अफसोस की बात है कि दुबई में दो सप्ताह तक चली बातचीत में यह हासिल नहीं हो सका। हालांकि इस तथ्य को स्वीकार्यता देना कि जीएसटी के मसौदे में मीथेन का उल्लेख किया गया था, यह इस बात का संकेत प्रदान करता है कि देश मीथेन उत्सर्जन में कटौती को मह्त्वपूर्ण करार दे रहे हैं।”

 मीथेन उत्सर्जन में कटौती की तरफ किया गया इशारा कॉप 27 के निर्णयों से भी एक कदम आगे है, जिसने देशों को 2030 तक मीथेन सहित गैर-कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए आगे की कार्रवाई पर विचार करने के लिए आमंत्रित किया है।

 मीथेन एक तिहाई ताप के लिए जिम्मेदार है और इसका जीवनकाल भी छोटा होता है, जिससे यह ग्लोबल वार्मिंग को धीमा करने की एक आकर्षक रणनीति बन जाती है। दरअसल मीथेन सौ या उससे भी अधिक वर्षों तक वातावरण में बने रहने वाले सीओटू की तुलना में महज 7 से 12 वर्षों तक वातावरण में रहता है। मीथेन उत्सर्जन बढ़ रहा है। चार दशक पहले वैश्विक निगरानी शुरू होने के बाद से 2021 में मीथेन उत्सर्जन में सबसे बड़ी वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है। यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) के अनुसार, 1.5 डिग्री सेल्सियस को पहुंच के भीतर रखने के लिए जीवाश्म ईंधन, अपशिष्ट और कृषि से वैश्विक मीथेन उत्सर्जन को 2020 उत्सर्जन के सापेक्ष 2030 तक लगभग 60 प्रतिशत, 30-35 प्रतिशत और 20-25 प्रतिशत कम किया जाना चाहिए।

 विडंबना यह है कि जीएसटी का एक अन्य पहलू मीथेन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को कमजोर करता है। इसमें कहा गया है कि देशों ने माना है कि  ट्रांजिशन फ्यूल यानी नैचुरल गैस एनर्जी ट्रांजिशन को सुविधाजनक बनाने में भूमिका निभा सकते हैं।

 ट्रांजिशन फ्यूल का मतलब है कि पूरी तरह से नवीकरणीय या गैर जीवाश्म ईंधन पर आने से पहले बीच के स्तर में ऐसे ईंधन का इस्तेमाल करना जो कम उत्सर्जन पैदा करता है। नैचुरल गैस जीवाश्म ईंधन ही है और जिसकी मुख्य घटक मीथेन है लेकिन यह अन्य जीवाश्म ईंधन के मुकाबले कम उत्सर्जन करता है इसलिए इसका इस्तेमाल ट्रांजिशन फ्यूल की तरह होगा। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक 2022 में नैचुरल गैस के जरिए 36.7 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जन हुआ था जो कि ऊर्जा क्षेत्र में कुल मीथेन उत्सर्जन में 27.5 फीसदी की हिस्सेदारी करता है। 

 जीएसटी लागू होने से पहले ही मीथेन पर चर्चा चल रही थी। 4 दिसंबर, 2023 को वार्ता के पहले सप्ताह में कॉप 28 प्रेसीडेंसी ने एक वैश्विक मंत्रिस्तरीय मीथेन प्रतिज्ञा की मेजबानी की, जहां देशों और निगमों ने कई प्रतिज्ञाएं कीं।

 संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2024 से 2038 तक अनुमानित 58 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जन को रोकने के लिए लागत प्रभावी और नवीन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने की अपनी योजना की घोषणा की। यह 1.5 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर का प्रतिनिधित्व करता है जो कि 2021 में बिजली क्षेत्र द्वारा उत्सर्जित कुल कॉर्बन डाईआक्साइड के बराबर है।

 कनाडा ने 2030 तक तेल और गैस के शोषण और उत्पादन से मीथेन उत्सर्जन को 2012 के स्तर से कम से कम 75 प्रतिशत कम करने के लिए अपने मसौदा नियमों की घोषणा की। कॉप 28 प्रेसीडेंसी ने 50 तेल और गैस कंपनियों द्वारा हस्ताक्षरित तेल और गैस डीकार्बोनाइजेशन योजना लॉन्च की। इसके तहत वे 2050 तक या उससे पहले शुद्ध शून्य संचालन और 2030 तक लगभग शून्य मीथेन उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध हैं।  कृषि क्षेत्र में काम करने वाली छह वैश्विक खाद्य कंपनियों - बेल ग्रुप, डैनोन, जनरल मिल्स, क्राफ्ट हेंज, लैक्टालिस यूएसए और नेस्ले ने कॉप-28 में डेयरी मीथेन एक्शन एलायंस लॉन्च किया।

 इस समूह ने 2024 के अंत तक एक व्यापक मीथेन कार्य योजना लागू करते हुए अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं से मीथेन उत्सर्जन का ब्यौरा देने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में लोअरिंग ऑर्गेनिक वेस्ट मीथेन (एलओडब्ल्यू-मीथेन) पहल का भी शुभारंभ हुआ, जिसका उद्देश्य है 2030 से पहले कम से कम 1 मिलियन टन वार्षिक अपशिष्ट क्षेत्र से पैदा होने वाली मीथेन कटौती करें।

संशय

हालिया प्रतिज्ञाएं और घोषणाएं संशयपूर्ण हैं क्योंकि पुरानी प्रतिज्ञाओं ने अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं दिखाया है। सरकारी जलवायु कार्रवाई पर नजर रखने वाले एक स्वतंत्र वैज्ञानिक मूल्यांकन क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर द्वारा कॉप 28 प्रतिज्ञाओं के प्रभाव पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉप 28 से पहले घोषित ऐसी लगभग 500 पहलों में से केवल 20 प्रतिशत ने सार्थक परिणाम दिए हैं। यह आगे अनुमान लगाता है कि तेल और गैस डीकार्बोनाइजेशन से उत्सर्जन में कटौती नगण्य होने की संभावना है। यदि यह सौदा सभी सरकारों द्वारा अपनाया जाता है, तो यह 2030 में उत्सर्जन को 2 गीगाटन कॉर्बन डाईऑक्साइड तक कम कर सकता है, जिसमें से 1.7 गीगाटन कॉर्बनडाई ऑक्साइड का हिस्सा   मीथेन का होगा।

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