हमारे बच्चे, हमारा भविष्य, हमारे मार्गदर्शक

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ 16 साल की ग्रेटा अर्नमैन थन्बर्ग की लड़ाई आगे बढ़ रही है। इससे हम सबक ले सकते हैं।
हमारे बच्चे, हमारा भविष्य, हमारे मार्गदर्शक
Published on

ग्रेटा अर्नमैन थन्बर्ग एक सोलह वर्षीय स्वीडिश स्कूली छात्रा है जिसने जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज किए जाने के विरोध की इस इबारत लिखी कि आज दुनिया उनका लोहा मानने लगी है। पिछले सप्ताह शुक्रवार को उन्हें प्रतिष्ठित एमनेस्टी इंटरनेशनल अवार्ड दिया गया है।  

अगस्त 2018 में जब स्वीडन में राष्ट्रीय चुनाव होने वाले थे तब ग्रेटा ने तय किया कि वह स्कूल नहीं जाएगी बल्कि बाहर बैठकर जानलेवा जलवायु परिवर्तन के खिलाफ झंडा बुलंद करेगी। कहते हैं कि पहले वह अकेली ही थी लेकिन उसने बिना हिम्मत हारे अपना विरोध जारी रखा। धीरे-धीरे उसकी आवाज बुलंद होती गई। अब वह हर शुक्रवार को अपने स्कूल के सामने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने की मांग लेकर बैठती है और उसकी यह मांग पूरी दुनिया से है। मार्च मध्य तक दुनिया के 100 से अधिक देशों में 1,650 से अधिक धरने ग्रेटा के समर्थन में चालू थे।

ग्रेटा और उसके युवा साथी जो सवाल पूछ रहे हैं वह सरल और सीधा है कि अगर जलवायु परिवर्तन होता है, जैसा कि भविष्यवाणी की गई है और अब कमोबेश निश्चित है, तो हमारा भविष्य क्या है? यह एक तथ्य है। हमारे उत्तराधिकारी हमसे पूछ रहे हैं, आप हमारे लिए कैसी दुनिया छोड़ रहे हैं? आखिर आप कर क्या रहे हैं?

मुझे नहीं पता कि ग्रेटा का आंदोलन और कितना आगे बढ़ेगा। क्या यह समाप्त हो जाएगा, अप्रासंगिक हो जाएगा या फिर बच्चों के बड़े होने के साथ एक दिन बस गायब हो जाएगा क्योंकि उनके पास जीवन में और भी जिम्मेदारियां होंगी? लेकिन मैं आशा करती हूं कि यह खत्म न हो। मुझे उम्मीद है कि यह कोशिश इसी निर्भीकता और गर्मजोशी के साथ पूरी दुनिया में फैले। मुझे उम्मीद है कि यह इन बच्चों के मानसपटल पर छा जाए, उनकी हताशा को एकजुट करे और यह हताशा अपने पूरे वेग के साथ इन बच्चों के मां-बाप को भी प्रभावित करे। उनके बोर्ड रूम मीटिंगों से लेकर मंत्रालयों तक में असर हो। मैं उम्मीद करती हूं कि वह थके नहीं। मुझे आशा है कि ये बच्चे अपने पूर्वजों जैसे यानि हमारे जैसे नहीं होंगे।

हमारे पास एक मौका और है। यह तथ्य है कि अगर हम विकास के अपने प्रतिमानों को बदलें और अपने बच्चों की भलाई को इन प्रतिमानों के मूल में रखें तो यह धरती शायद बच जाए। आज हम जानते हैं कि बच्चे भविष्य की गर्म दुनिया के केवल उत्तराधिकारी भर नहीं हैं। हम यह भी जानते हैं कि पर्यावरणीय विनाश और विषाक्तता का उनके जीवन पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए, उन्हें विकास की दुनिया का केंद्र बनाएं। उनकी भलाई के माध्यम से विकास को मापें।

हम जानते हैं कि सुरक्षित सेनिटेशन न मिलने का बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। इससे न केवल उनकी खुशहाली पर ग्रहण लगता है बल्कि उन्हें कुपोषण, बौनापन, बीमारियों का खतरा, यहां तक कि मौत का भी सामना करना पड़ सकता है। हम अपने बच्चों के स्वास्थ्य को स्वच्छता का प्रतिमान बनाएं, न कि शौचालयों की संख्या को। हम जानते हैं कि शौचालय की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होने की सूरत में मानव मल को वापस लेना होगा और पुन: उपयोग के लिए सुरक्षित बनाना होगा। यदि नहीं, तो यह पानी को प्रदूषित करेगा और वेक्टर जनित बीमारियों को फैलाएगा। तो, चलिए मलेरिया या डायरिया के डेटा के माध्यम से प्रदूषण को मापना शुरू करते हैं।

इसी तरह घरों में स्वच्छ ऊर्जा की कमी एक और जटिल समस्या है। बायोमास ईंधन पर खाना पकाने वाली महिलाएं जानलेवा श्वसन संबंधी बीमारियों का शिकार होती हैं। श्वसन तंत्र के निचले हिस्से में संक्रमण दुनिया में बच्चों और किशोर मृत्यु दर के शीर्ष कारण बने हुए हैं। हमें जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अपनी ऊर्जा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन लाना होगा। दुनिया के सबसे गरीब लोगों को ऊर्जा प्रदान करने के लिए और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। फिर शहरों में हवा की वजह से विषाक्तता फैलने की चुनौती है जो खासकर बच्चों की बढ़ती हुई बीमारियों के माध्यम से सामने आ रही है। तो आइए हम स्वच्छ ऊर्जा एवं हवा की दिशा में अपने विकास को अपने बच्चों के स्वास्थ्य के माध्यम से नापें।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि सार्थक शिक्षा जीवन बदल देती है। इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण हैं कि बालिकाओं को शिक्षित करना किसी देश की प्रजनन और जनसंख्या की स्थिति में बदलाव की शुरुआत है। उनका सशक्तिकरण ही वास्तविक शक्ति है क्योंकि एक शिक्षित युवती अपने आपको शारीरिक और मानसिक तौर पर अच्छे से संभाल सकती है। यह भी स्पष्ट है कि शिक्षा अधिक जागरूक उपभोक्ताओं का निर्माण करेगी। हमारे उत्तराधिकारी बिना जीवनशैली बदले धरती को बचाने की सोच भी नहीं सकते।

यह भी स्पष्ट है कि आजीविका का सवाल महत्वपूर्ण है। युवाओं की असुरक्षा इस तेजी से स्वचालित होती दुनिया में नौकरियों की कमी के कारण है। वे क्या करेंगे? वे कौन से कौशल हैं जो नई दुनिया का निर्माण करेंगे, वह भी बिना जलवायु परिवर्तन के संकट को और बढाए? क्या हमने ऐसी नौकरियों का निर्माण किया है जो हरित अर्थव्यवस्था में हैं? यही सवाल है जो काम करेगा, न केवल भविष्य के निर्माण में बल्कि वर्तमान के सुधार में भी।

इस तरह हम अपने युवाओं के स्वास्थ्य और भलाई के माध्यम से धरती के स्वास्थ्य को मापेंगे। हम एक उम्मीद बनाएंगे कि हम एक नए भविष्य के लिए काम कर रहे हैं, वह भविष्य जिसकी मांग ग्रेटा और उसके जैसे अन्य करोड़ों लोग कर रहे हैं। और हम यह काम आज से शुरू करेंगे, कल से नहीं!

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in