जलवायु संकट: कभी स्थिर रहने वाला स्टीनस्ट्रुप ग्लेशियर अब तेजी से हो रहा है गायब: अध्ययन

ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पिघल जाए, तो समुद्र स्तर लगभग 25 फीट तक बढ़ सकता है। अगर अंटार्कटिका में बर्फ की चादर टूट कर गिर जाती है, तो महासागर लगभग 200 फीट ऊपर उठ जाएगा
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स
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एक नए अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, ग्रीनलैंड के पहले सबसे स्थिर ग्लेशियरों में से एक अब अभूतपूर्व दर से पीछे हट रहा है।

ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में, एक टीम ने पाया कि 2018 से 2021 के बीच, ग्रीनलैंड में स्टीनस्ट्रुप ग्लेशियर लगभग पांच मील पीछे हट गया है और 20 फीसदी पतला हो गया है। यह समुद्र में बहने वाली बर्फ की मात्रा में दोगुना हो गया है और गति में चौगुना हो गया है।

अध्ययन के अनुसार, ग्रीनलैंड की बर्फ की संरचनाओं में इतना तेज बदलाव आम नहीं है, अब स्टीनस्ट्रुप ग्लेशियर को शीर्ष 10 फीसदी ग्लेशियरों में रखा गया है जो पूरे क्षेत्र के कुल बर्फ के बहाव में अहम भूमिका निभाता है।

स्टीनस्ट्रुप ग्लेशियर द ग्रीनलैंड बर्फ की चादर का हिस्सा है, जो बर्फ का एक गोला है यह दुनिया के सबसे बड़े द्वीप का लगभग 80 फीसद को कवर करता है। यह क्रायोस्फीयर से दुनिया भर में समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार भी है, यहां बताते चलें कि क्रायोस्फीयर - पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र का वह हिस्सा जिसमें सारा जमा हुआ पानी शामिल है।

जबकि यह क्षेत्र दुनिया भर के जलवायु प्रणाली को संतुलित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अब बर्फ का यह इलाका लगातार सिकुड़ रहा है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर साल इससे सैकड़ों, अरबों टन बर्फ पिघल रही है।

पिछले कुछ दशकों में, इस नुकसान में से अधिकांश को टाइड वॉटर ग्लेशियरों, ग्लेशियरों के पिघलने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है जो समुद्र में समा जाते हैं। कई ग्लेशियोलॉजिस्ट मानते हैं कि बर्फ के पिघलने में इस हालिया उछाल को गर्म पानी के घुसपैठ से समझाया जा सकता है। यह अटलांटिक से ग्रीनलैंडिक जोर्ड्स, भारी मात्रा में महासागरीय प्रवेश में बह रहा है, जो स्थानीय ग्लेशियरों की स्थिरता और ध्रुवीय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

शोध दल का उद्देश्य ग्रीनलैंड के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में के.आई.वी. स्टीनस्ट्रप्स नॉर्ड्रे ब्रो नामक एक ग्लेशियर की जांच करके उस सिद्धांत का परीक्षण करना था, जिसे अधिक बोलचाल की भाषा में स्टीनस्ट्रुप ग्लेशियर के रूप में जाना जाता है।

ग्रीनलैंड में बहुत सारे अन्य ग्लेशियर थे जो 1990 के दशक के बाद से नाटकीय रूप से पीछे हट गए थे इनके कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि हो रही थी, लेकिन यह स्टीनस्ट्रुप ग्लेशियर वास्तव में उनमें से नहीं था।

जहां तक ​​वैज्ञानिकों को पता था, स्टीनस्ट्रुप न केवल दशकों से स्थिर था, बल्कि आम तौर पर बढ़ते तापमान का इस पर असर नहीं पड़ रहा था, जिसने कई अन्य क्षेत्रीय ग्लेशियरों को अस्थिर कर दिया था, हो सकता है उथले पानी के कारण इसकी ऐसी स्थिति हुई हो।

यह तब तक नहीं था जब तक कि चुडली और उनके सहयोगियों ने ग्लेशियर पर पिछले रिमोट सेंसिंग विश्लेषण से अवलोकन और मॉडलिंग के आंकड़े  संकलित नहीं किए थे, टीम ने महसूस किया कि गहरे अटलांटिक पानी में विसंगतियों के कारण स्टीनस्ट्रुप पिघलन रहा था।

चुडले ने कहा कि, हाल के वर्षों में, ग्लेशियोलॉजिस्ट ध्रुवों पर संग्रहीत ग्लेशियल बर्फ की संभावित मात्रा का अनुमान लगाने के लिए उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग करने में सक्षम हुए हैं और यह वर्तमान समुद्र के स्तर को कैसे प्रभावित कर सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पिघल जाए, तो समुद्र स्तर लगभग 25 फीट तक बढ़ सकता है। इसके विपरीत, अगर अंटार्कटिका में बर्फ की चादर टूट कर गिर जाती है, तो हो सकता है कि महासागर लगभग 200 फीट ऊपर उठ जाएं।

जबकि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका को पूरी तरह से ढहने में शताब्दियां लगेंगी, अगर पश्चिम अंटार्कटिका बर्फ की चादर ढह जाती है तो वैश्विक क्रायोस्फीयर में इस सदी में समुद्र के स्तर में लगभग छह फीट की वृद्धि होने की आशंका है।

धरती की लगभग 10 फीसदी आबादी निचले इलाकों में रहती है, समुद्र के स्तर में वृद्धि से तूफानी लहरों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से निचले द्वीपों और तटीय समुदायों के लिए खतरा बढ़ सकता है।

कुल मिलाकर, स्टीनस्ट्रुप के अनूठे व्यवहार से पता चलता है कि लंबे समय तक स्थिर ग्लेशियर भी अचानक और तेजी से पीछे हटने लगते हैं क्योंकि गर्म पानी ने घुसपैठ करना शुरू कर दिया।

जबकि शोध कहता है कि स्टीनस्ट्रुप ग्लेशियर का निरंतर वैज्ञानिक अवलोकन किया जाना चाहिए, अन्य समान ग्लेशियर पर भी गौर किया जाना जरुरी हैं क्योंकि गर्म पानी के कारण ये पिघल रहे हैं।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि, इन अंदर ही अंदर चलने वाली क्रियाओं के बारे में और अधिक जानकारी से दुनिया भर के अन्य ग्लेशियर कैसे पनपते हैं और भविष्य में ये वातावरण को कैसे बदल सकते हैं, इसका एक अहम संकेतक भी बन सकता है।

क्या भारत भी खतरे में है?

दुनिया भर में महासागरों का जल स्तर बढ़ेगा तो भारत के तटीय इलाकों पर भी इसका असर होगा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार, न केवल भारतीय तट के साथ समुद्र का स्तर बढ़ेगा बल्कि, यह औसत वैश्विक वृद्धि की तुलना में बहुत अधिक दर से बढ़ जाएगा। हिंद महासागर क्षेत्र में वृद्धि की दर भी एक समान नहीं है, दक्षिण-पश्चिमी भाग में वृद्धि सबसे तेज है, जो वैश्विक औसत से 2.5 मिमी प्रति वर्ष अधिक है। समुद्र तट सहित अन्य भागों में, वैश्विक औसत की तुलना में 0 से 2.5 मिमी प्रति वर्ष तेजी से वृद्धि हुई है।

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