यूएनसीसीडी कॉप-14: नई दिल्ली घोषणा पत्र से गायब हुए दो अहम मुद्दे

नई दिल्ली घोषणा पत्र में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और वनवासियों को अधिकार दिए जाने के प्रस्ताव को शामिल नहीं किया गया
यूएनसीसीडी कॉप 14 के समापन अवसर पर भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने नई दिल्ली घोषणा पत्र जारी किया। Photo: DDIndiaLive
यूएनसीसीडी कॉप 14 के समापन अवसर पर भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने नई दिल्ली घोषणा पत्र जारी किया। Photo: DDIndiaLive
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धरती को बंजर बना रहे मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए बनी संयुक्त राष्ट्र संस्था का सम्मेलन (यूएनसीसीडी कॉप 14) शुक्रवार को समाप्त हो गया। समाप्ति के मौके पर नई दिल्ली घोषणा पत्र जारी किया गया। इस घोषणा पत्र की खासियत यह रही कि मरुस्थलीकरण का सामना करने के लिए पैसा देने वाली अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों का इसमें जिक्र ही नहीं है, जबकि इस सम्मेलन के मुख्य प्रस्तावों में इसे शामिल किया गया था। इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि वनों को बचाने में अहम भूमिका निभाने वाले वनवासियों को भूमि का अधिकार दिए जाने के प्रस्ताव को भी अंतिम घोषणा पत्र में शामिल नहीं किया गया है।

यूएनसीसीडी कॉप 14 का आयोजन ग्रेटर नोएडा में 3 सितंबर से शुरू हुआ था। उस समय सम्मेलन (कॉप 14) के लिए कुछ प्रस्ताव रखे गए थे, जिसका ड्राफ्ट जारी किया गया था। इसमें दो अहम बातें थी। पहला, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) और वैश्विक पर्यावरण सुविधा (जीईएफ) जैसी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को जवाबदेह बनाया जाएगा, ताकि सभी देशों, खासकर विकासशील व गरीब देशों को पैसे की कमी महसूस न हो। सम्मेलन के दौरान जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि धरती को बंजर होने से रोकने के लिए लगभग 46 हजार करोड़ (6.4 बिलियन डॉलर) की जरूरत पड़ेगी।

दूसरा, मरुस्थलीकरण को रोकने में सबसे अहम भागीदारी जंगल निभाते हैं और जंगल की सुरक्षा वहां के स्थानीय व वनवासी करते हैं। इसलिए उनको जमीन से संबंधित ऐसे अधिकार दिए जाएं, ताकि वे खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें और जंगल को बचाने में अहम भूमिका निभा सकें। कॉप 14 के दौरान जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया भर के जंगलों की 70 फीसदी भूमि पर खराब होने का खतरा मंडरा रहा है। जबकि एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि स्थानीय व वनवासी समुदाय दुनिया के 40 फीसदी जंगलों को बचाए हुए हैं। बावजूद इसके उन पर बेदखली का संकट बना हुआ है।  

इस बारे में 9 सितंबर को ही डाउन टू अर्थ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें इन दोनों मुद्दों को सम्मेलन के एजेंडे से निकाले जाने का जिक्र किया था। 13 सितंबर को जारी अंतिम घोषणा पत्र में यह बात साफ हो गई कि इन दोनों मुद्दों को घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बनाया गया है।

घोषणापत्र में कहा गया है कि जमीन को बंजर होने से बचाने के लिए विकसित सदस्यों, निजी क्षेत्र व अन्य वित्तीय संस्थानों को निवेश और तकनीकी सहयोग के लिए आमंत्रित किया जाएगा। जिससे न केवल ग्रीन जॉब्स बढ़ेंगी, जमीन से पैदा होने वाले उत्पादों की मात्रा व गुणवत्ता बढ़ेगी।

यहां यह उल्लेखनीय है कि इससे पहले जलवायु परिवर्तन पर बने अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जंगलों को बचना जरूरी है और यह काम स्थानीय समुदाय व वनवासी बेहतर ढंग से कर सकते हैं। इसी का जिक्र यूएनसीसीडी ने भी किया था, लेकिन अंतिम घोषणा पत्र में इसे जगह नहीं दी गई है।

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