ओजोन के नुकसान से हो रही हैं मौसम संबंधी अनियमितताएं: शोध

शोध से पता चला कि वसंत ऋतु में आर्कटिक के ऊपर ओजोन की कमी से पूरे उत्तरी गोलार्ध में मौसम असामान्य हो जाता है, जिससे कई इलाके अधिक गर्म और शुष्क या बहुत नमी वाले हो जाते हैं।
ओजोन के नुकसान से हो रही हैं मौसम संबंधी अनियमितताएं: शोध
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अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद के बारे में अधिकतर लोग जानते हैं, लेकिन कभी-कभी आर्कटिक के ऊपर समताप मंडल में सुरक्षात्मक ओजोन भी नष्ट हो जाती है इसके बारे में जानकारी का अभाव है। इसके कारण ओजोन परत पतली हो जाती है। इस तरह की घटना आखिरी बार 2020 के वसंत के महीनों में और उससे पहले, 2011 के वसंत में देखी गई थी।

ओजोन की परत के पतले होने पर जलवायु शोधकर्ताओं ने पूरे उत्तरी गोलार्ध में मौसम की विसंगतियों को देखा। मध्य और उत्तरी यूरोप, रूस और विशेष रूप से साइबेरिया में, वे वसंत ऋतुएं असाधारण रूप से गर्म और शुष्क थीं। हालांकि अन्य क्षेत्रों में, जैसे ध्रुवीय क्षेत्रों में नमी बनी रही। ये मौसम संबंधी विसंगतियां विशेष रूप से 2020 में स्पष्ट की गई थी।  

शोधकर्ताओं के कहा, क्या समतापमंडलीय ओजोन के नुकसान और देखी गई मौसम की विसंगतियों के बीच संबंध है? यह जलवायु अनुसंधान में बहस का विषय है। समताप मंडल में ध्रुवीय भंवर, जो सर्दियों में बनता है और वसंत में नष्ट होता है, यह भी एक अहम भूमिका निभाता है। जिन वैज्ञानिकों ने अब तक इस घटना का अध्ययन किया है, वे परस्पर विरोधी परिणामों और विभिन्न निष्कर्षों पर पहुंचे हैं।

डॉक्टरेट की छात्रा मरीना फ्रीडेल और स्विस नेशनल साइंस फाउंडेशन एंबिजियोन फेलो गेब्रियल चियोडो नए निष्कर्ष पर अब प्रकाश डाल रहे हैं। 

सिमुलेशन आपस में संबंधों को सामने लाते हैं

एक संबंध को सामने लाने के लिए, शोधकर्ताओं ने ऐसे सिमुलेशन किए जो ओजोन के नुकसान को दो अलग-अलग जलवायु मॉडल में एक साथ जोड़ता है। अधिकांश जलवायु मॉडल केवल भौतिक कारणों पर विचार करते हैं, न कि समताप मंडल के ओजोन स्तरों में भिन्नता पर, क्योंकि इसके लिए बहुत अधिक कंप्यूटिंग शक्ति की आवश्यकता होती है।

लेकिन नई गणनाएं यह स्पष्ट करती है कि 2011 से 2020 के बीच उत्तरी गोलार्ध में देखी गई मौसम संबंधी विसंगतियों का कारण आर्कटिक के ऊपर ओजोन की कमी से है।

शोधकर्ताओं ने दो मॉडलों के साथ जो सिमुलेशन किए, वे मोटे तौर पर उन दो वर्षों के आकड़ों के अवलोकन के साथ-साथ आठ अन्य ऐसी घटनाओं के साथ मेल खाते थे जिनका उपयोग तुलनात्मक उद्देश्यों के लिए किया गया था। हालांकि जब वैज्ञानिकों ने मॉडलों में ओजोन के नुकसान को रोका गया, तो वे उन परिणामों को फिर से नहीं दिखा सके।

इंस्टीट्यूट फॉर एटमॉस्फेरिक और जलवायु विज्ञान में एसएनएसएफ एंबिजियोन फेलो, सह-अध्ययनकर्ता गेब्रियल चियोडो कहते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हमें सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ कि, भले ही हम सिमुलेशन के लिए जिन मॉडलों का उपयोग कर रहे थे, वे बिल्कुल अलग थे लेकिन उनके परिणाम एक जैसे थे।

किस तरह आती हैं मौसम में अनियमितताएं

शोधकर्ताओं ने अब जिस घटना का अध्ययन किया है, वह समताप मंडल में ओजोन की कमी से शुरू होती है। ओजोन के वहां कमी के लिए आर्कटिक में तापमान बहुत कम होना चाहिए। ओजोन का नुकसान तभी होता है जब यह पर्याप्त ठंडा होता है और ध्रुवीय भंवर समताप मंडल में मजबूत होता है, जो जमीन से लगभग 30 से 50 किलोमीटर ऊपर होता है।

चियोडो कहते हैं कि आम तौर पर, ओजोन सूर्य द्वारा उत्सर्जित यूवी विकिरण को अवशोषित करती है, जिससे समताप मंडल गर्म होता है और वसंत में ध्रुवीय भंवर को तोड़ने में मदद करता है। लेकिन ओजोन कम होने पर समताप मंडल ठंडा हो जाता है और भंवर मजबूत हो जाता है। एक मजबूत ध्रुवीय भंवर तब पृथ्वी की सतह पर देखे गए प्रभावों का उत्पादन करता है। इस प्रकार ओजोन उत्तरी ध्रुव के आसपास तापमान और प्रसार के बदलाव में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

लंबी अवधि के पूर्वानुमानों के लिए अधिक सटीकता

चियोडो कहते हैं कि नए निष्कर्ष जलवायु शोधकर्ताओं को भविष्य में अधिक सटीक मौसम और जलवायु पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकते हैं। यह गर्मी और तापमान में बदलाव के बेहतर पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है, जो कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।

फ्राइडेल ने कहा कि ओजोन परत के भविष्य के विकास को देखना और मॉडल करना दिलचस्प होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि ओजोन की कमी लगातार जारी है, भले ही 1989 से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसे ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों पर प्रतिबंध क्यों न लगा दिया गया हो।

क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) बहुत लंबे समय तक बनी रहती हैं, यह 50 से 100 वर्षों तक वातावरण में रहती हैं। इसके कारण ओजोन को भारी नुकसान होता है तथा नुकसान के जारी रहने की आशंका दशकों तक बनी रहती है। प्रचलन से बाहर करने पर सीएफसी की मात्रा में लगातार गिरावट आ रही है और इससे यह सवाल उठता है कि अब ओजोन परत कितनी जल्दी ठीक हो सकती है और यह जलवायु प्रणाली को कैसे प्रभावित करेगी।

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