लद्दाख इलाके में पिघलते ग्लेशियरों के भयंकर परिणाम हो सकते है : अध्ययन

शोध दल ने लद्दाख क्षेत्र के ग्लेशियरों से ढकी झीलों का एक व्यापक सर्वेक्षण किया। उन्होंने 50 साल की अवधि में इन झीलों की सीमा और संख्या में हुए बदलाव के बारे में पता लगाया।
लद्दाख इलाके में पिघलते ग्लेशियरों के भयंकर परिणाम हो सकते है : अध्ययन
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लद्दाख दुनिया के ऊंचे इलाकों में से एक है, इसलिए यहां का तापमान बहुत कम रहता है। सर्दियों में यहां का तापमान -15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, इसलिए यहां पानी जमकर बर्फ के रूप में होता है जिसे क्रायोस्फीयर कहा जाता है। क्रायोस्फीयर गतिविधि और क्रायोस्फीयर से संबंधी खतरे लद्दाख के अर्ध-शुष्क ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र में भूमि उपयोग तथा विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। अब बढ़ते तापमान के कारण यहां के ग्लेशियर पिघल रहे हैं साथ ही बर्फ से ढकी झीलें पिघल कर बाढ़ के प्रकोप को बढ़ा रही हैं। इसी को लेकर वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया ताकि भविष्य में होने वाली ऐसी घटाओं के लिए एहतियात बरती जाए।

दक्षिण एशिया संस्थान और हीडलबर्ग सेंटर फॉर द एनवायरनमेंट ऑफ रूपर्टो कैरोला के शोधकर्ताओं ने भारत के लद्दाख क्षेत्र में एक बर्फ की झील के टूटने के कारणों की जांच की, जिसके कारण इस क्षेत्र में बाढ़ आ गई थी। भूगोलविद् प्रो. मार्कस नुसरर की अगुवाई में शोध दल ने लद्दाख के पूरे ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों से भरे झीलों का एक व्यापक सर्वेक्षण करने के लिए उपग्रह चित्रों का उपयोग किया। वे 50 साल की अवधि में बर्फ से ढकी झीलों की सीमा और संख्या में हुए बदलाव के बारे में पता लगा रहे थे, जिनमें पहले भी अचानक आई बाढ़ की घटनाएं भी शामिल थी। इस विश्लेषण की मदद से भविष्य में होने वाली ऐसी घटनाओं से होने वाले खतरे का बेहतर आकलन किया जा सकता है, जिन्हें ग्लेशियल झील के टूटने से होने वाले बाढ़ का प्रकोप (ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड्स, जीएलओएफएस) के रूप में जाना जाता है। यह अध्ययन नेचुरल हैज़ार्डस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

दक्षिण एशिया संस्थान के प्रोफेसर नुसर बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इन सिकुड़ते ग्लेशियरों के मद्देनजर ग्लेशियल झील के प्रकोप से उत्पन्न बाढ़ के कारण होने वाले खतरे को तेजी से बढती़ समस्या के रूप में देखा जा रहा है। इस तरह की घटना से भारी मात्रा में पानी निकलता है। बाढ़ का यह प्रकोप गांवों, कृषि क्षेत्रों और बुनियादी ढांचे पर कहर बरपा सकता है। इस तरह की घटनाओं के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए, हीडलबर्ग शोधकर्ताओं ने लद्दाख में एक बर्फ से ढकी झील के बाढ़ का अध्ययन किया। अगस्त 2014 में आई इस बाढ़ ने गांव में घरों, खेतों और पुलों को नष्ट कर दिया था। अध्ययन से पता चला है कि समुद्र तल से 5,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बर्फ से ढकी झील में जीएलओएफ की घटना से पहले थोडे़ समय के लिए झील के जल स्तर में वृद्धि हुई थी।

यह किस कारण हो रहा है, पहले भी वैज्ञानिकों द्वारा इसे खोजा गया पर इस तंत्र के बारे में बहुत कम जानकारी है। ग्लेशियर के पिघलने के कारण झील का स्तर काफी तेजी से बढ़ा है। नुसर कहते हैं पिछली जमा बर्फ के ओवरफ्लो होने के परिणामस्वरूप हालांकि, पिघलते बर्फ के टुकड़े, यानी ग्लेशियर का मलबा सतह को नुकसान पहुंचाए बिना सतह की सुरंगों में बह गया था। क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के अलावा, वैज्ञानिकों ने स्थानीय लोगों से जीएलओएफ की घटना और उनके भयावह यादों के बारे में भी साक्षात्कार किया। उपग्रह चित्रों के आधार पर, टीम ने 1960 के दशक के बाद से ग्लेशियल झील के विकास का अध्ययन किया ताकि संभावित ग्लेशियल झील का बाढ़ प्रकोप (जीएलओएफएस) की घटनाओं का पुनर्निर्माण किया जा सके।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट में कहा गया था कि यदि तापमन को 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे सीमित नहीं किया गया तो हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे, जिसके कारण बाढ़ और समुद्र के स्तर में वृद्धि होगी। जिसे अकसर कल्पना मात्र समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन यह आज हकीकत बनकर सामने खड़ी है।

हीडलबर्ग भूगोलवेत्ता कहते हैं क्षेत्र के सर्वेक्षणों के दौरान उपग्रहों से लिए गए चित्रों के माध्यम से भविष्य में होने वाली घटनाओं और इनके खतरों का बेहतर आकलन किया जा सकता है। जीएलओएफएस की घटना के पुन: होने के मद्देनजर, नई सूची हमें  खतरों का पुनर्मूल्यांकन करने, संवेदनशील स्थानों की पहचान करने और इनसे निपटने के उपायों को विकसित करने में मदद कर सकती है। उदाहरण के लिए बार-बार आने वाली बाढ़ के उपाय के रूप में कंक्रीट की दीवारों का निर्माण करना ताकि भविष्य में आने वाली बाढ़ से गांवों और खेतों की सुरक्षा की जा सके।

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