2020 में दर्ज किया गया इतिहास का दूसरा सबसे गर्म मार्च

एनओएए द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार गत माह मार्च का तापमान औसत से 1.16 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया है
2020 में दर्ज किया गया इतिहास का दूसरा सबसे गर्म मार्च
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दुनिया भर में तापमान में हो रही बढ़ोतरी बदस्तूर जारी है। पहले जनवरी में रिकॉर्ड तापमान, फिर दूसरी सबसे गर्म फरवरी और अब मार्च को भी सदी के दूसरे सबसे गर्म मार्च के रूप में दर्ज किया गया है। गौरतलब है कि गत माह मार्च का तापमान औसत से 1.16 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया है। जबकि मार्च 2016 अभी भी इतिहास के सबसे गर्म मार्च के रूप में दर्ज है। जबकि नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले 140 सालों में 10 सबसे गर्म मार्च 1990 के बाद ही रिकॉर्ड किये गए हैं। जबकि उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में जनवरी से मार्च की अवधि भी दूसरी बार इतनी गर्म दर्ज की गयी है।

साल दर साल कैसे बढ़ रहा है तापमान

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दक्षिण अमेरिका में दर्ज किया गया सबसे गर्म मार्च

यदि दुनिया भर के ज्यादातर हिस्सों को देखें तो हर जगह तापमान में बढ़ोतरी देखी गयी है। जहां दक्षिण अमेरिका और अर्जेंटीना ने अपने सबसे गर्म मार्च को देखा। वहीं कैरेबियन के लिए, यह दूसरा सबसे गर्म मार्च था। अमेरिका में 10 वां सबसे गर्म, वहीं फ्लोरिडा में सबसे गर्म मार्च था| एशिया का तापमान औसत से 2.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था। जिस वजह से यह इतिहास के चौथे सबसे गर्म मार्च के रूप में रिकॉर्ड किया गया। गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2019 को भी इतिहास के दूसरे सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज किया गया था।

धरती ही नहीं समुद्र भी हो रहे हैं गर्म

धरती ही नहीं समुद्रों में भी तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। अटलांटिक महासागर के कुछ हिस्सों, हिंद महासागर के मध्य क्षेत्र और प्रशांत महासागर के उत्तरी और दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्रों में भी उच्च तापमान दर्ज किया गया है। जहां पानी की सतह का तापमान 20 वीं सदी के औसत से लगभग 1 डिग्री सेल्सियस अधिक था। जबकि इनसे अलग कनाडा, अलास्का, उत्तरी भारत और उत्तरी अटलांटिक महासागर और अंटार्कटिक के कुछ हिस्सों में तापमान औसत से -1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम दर्ज किया गया था।

सिकुड़ रही है आर्कटिक में बर्फ की चादर

नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर ने नासा और एनओएए द्वारा जारी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। जिसके अनुसार, मार्च 2020 में आर्कटिक में मौजूद बर्फ की मात्रा 1981 से 2010 के औसत की तुलना में 251,000 वर्ग मील (4.2 फीसदी) कम थी। जोकि 42 साल के रिकॉर्ड में 11 वीं बार सबसे कम पायी गयी है। वहीं मार्च 2020 के दौरान अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ की मात्रा 15.4 लाख वर्ग मील थी। जोकि 1980 से 2010 के औसत के लगभग बराबर ही है।

भारत में भी बढ़ेगा अप्रैल से जून के बीच तापमान

आईएमडी द्वारा अप्रैल से जून के लिए जारी मौसम की पूर्वानुमान रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान में तापमान औसत से 1 डिग्री सेल्सियस अधिक रहने की सम्भावना है। जबकि हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, पूर्वी और पश्चिमी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कोंकण और गोवा, महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, विदर्भ, उतरी और दक्षिणी कर्नाटक, तटीय कर्नाटक, और केरल में औसत तापमान सामान्य से करीब 0.5 डिग्री से लेकर 1 डिग्री अधिक रहने की सम्भावना है। वहीं देश के बाकि हिस्सों में तापमान सामान्य रहेगा।

सारी दुनिया कोरोनावायरस से लड़ रही है। दुनिया के ज्यादातर लोग लॉकडाउन की वजह से घरों में रहने पर मजबूर हैं। ऐसे में बढ़ता तापमान अपने साथ अन्य चुनौतियों को भी लेकर आएगा। भारत जैसे देशों में जहां एक बड़ा तबका आज भी छोटे-छोटे घरों में रहने को मजबूर हैं। जहां एयरकंडीशन तो दूर, शायद ही पंखे या कूलर की हवा मिल पाती है। ऐसे में लॉकडाउन और बढ़ता तापमान उनकी चुनौतियों को और बढ़ा देगा।

बंद कर दीजिए प्रकृति से खिलवाड़

दिन प्रतिदिन हमारी धरती और गर्म होती जा रही है। क्या यह बढ़ता तापमान अपने साथ नए खतरों को भी लेकर आएगा। दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भले ही इस की सच्चाई को झुठलाता रहे, पर सच यही है| धरती न केवल गर्म हो रही है, बल्कि उसका असर भी सारी दुनिया में साफ दिखाई देने लगा है। जो कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं तूफ़ान और कहीं अन्य मौसमी घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है। हम कितने भी शक्तिशाली हो जाएं पर प्रकृति से नहीं जीत सकते। हमें उसके साथ सामंजस्य बना कर ही चलना होगा। और यही मानव विकास का मूल है। इतिहास गवाह है, जब भी इंसान ने प्रकृति से आगे जाने की होड़ लगायी है, उसमें हार और नुकसान इंसान को ही उठाना पड़ा है। अभी भी समय है चेत जाइये, नहीं तो न जाने कब आने वाली बाढ़, सूखा, और अन्य आपदाओं का कहर हम पर टूटेगा, इसका पता भी नहीं चलेगा और तब शायद इससे बचने का मौका भी नहीं मिलेगा।

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