पृथ्वी की हवा प्रणालियां कैसे और कब अपनी वर्तमान स्थिति में स्थापित हुईं?
जब लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी बनी थी, तो प्रमुख गैसें हाइड्रोजन और हीलियम थीं जो हल्की थीं और आखिरकार अंतरिक्ष में निकल गईं। फिर ग्रह ने कई लाखों वर्षों तक लगातार ज्वालामुखी विस्फोट देखे, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और जल वाष्प जैसी गैसों का अनुपात बढ़ गया। जब पृथ्वी लगभग 3.8 अरब वर्ष पहले काफी ठंडी हो गई तो वायुमंडल में जल वाष्प भी ठंडा हो गया और ग्रह पर पहली बार बारिश हुई होगी। बारिश जारी रही होगी क्योंकि पृथ्वी लाखों वर्षों में और ठंडी हो गई और पानी शुरुआती महासागरों में इकट्ठा हो गया होगा। इससे पृथ्वी का जल चक्र भी बन गया होगा जो आज भी मौजूद है। लगभग उसी समय सायनोबैक्टीरिया के रूप में पहले जीवन रूप भी विकसित हुए, जिन्होंने प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन उत्पन्न किया, जिसका कुछ हिस्सा महासागरों द्वारा ही अवशोषित कर लिया गया और बाकी वायुमंडल में छोड़ दिया गया। इससे नाइट्रोजन और ऑक्सीजन के वायुमंडल में एक संतुलन बढ़ा लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर आज की तुलना में बहुत अधिक था। सीओ2 के अधिक होने का अर्थ था कि ग्रह बहुत अधिक गर्म था। कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को और कम होने में 1.5 अरब साल और लगे। वायुमंडल में हवाएं भूमध्य रेखा और ध्रुवीय क्षेत्रों के बीच ऊर्जा असंतुलन से पैदा होती हैं। सूर्य शॉर्ट वेव रेडिएशन (अल्प तरंग विकिरण) उत्सर्जित करता है जिसे पृथ्वी अवशोषित करती है और बदले में लॉन्ग वेव रेडिएशन (दीर्घ तरंग विकिरण) वायुमंडल में छोड़ता है। ज्यादातर ऊर्जा अवशोषण और उत्सर्जन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होता है। सूर्य की 51 प्रतिशत ऊर्जा ग्रह के आसपास रहती है और भूमध्य रेखा और ध्रुवीय क्षेत्रों के बीच वायु दाब के अंतर ने विभिन्न हवा परिसंचरण जैसे हैडली कोशिकाओं और फेरेल कोशिकाओं को बनाया। समय के साथ ये परिसंचरण अंततः स्थिर वायुमंडल और हवा प्रणालियां बनाते हुए स्थापित हो गए, जिन्हें हम आज अनुभव करते हैं और जो दुनिया भर में मौसम ले जाते हैं। पूरा वायुमंडल ग्रह पर एक कंबल की तरह है जो इसे जीवन के लिए पर्याप्त गर्म रखता है। यह हमारे नियमित मौसम के लिए भी जिम्मेदार है। उदाहरण के लिए, उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध में व्यापारिकिक पवन भूमध्य रेखा पर मिलते हैं जिससे इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस जोन (आईटीसीजेड या अंतरराष्ट्रीय अभिसरण क्षेत्र) बनता है जो ऊपर और नीचे जाता है और भारत समेत दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून और अन्य उष्णकटिबंधीय मौसम प्रणालियां लाता है। आईटीसीजेड की मानसून हवाएं दक्षिण-पश्चिम दिशा से भारत आती हैं और इसलिए हम अपने मानसून को दक्षिण-पश्चिम मानसून कहते हैं। सर्दियों के समय इन हवाओं का उलट होना होता है जो उत्तर पूर्व मानसून लाता है जो दक्षिण भारत के बड़े हिस्से में शीतकालीन वर्षा का कारण बनता है।
वायुमंडल और महासागरों के ग्लोबल वार्मिंग और इससे जलवायु में होने वाले बदलाव स्थिर वायुमंडल और इसकी हवा प्रणालियों में कैसे बाधित कर रहे हैं?
यदि वायुमंडल पृथ्वी पर पहला कंबल है तो ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जन और इसके कारण होने वाला तापमान वृद्धि शीर्ष पर एक दूसरा कंबल बना रहा है। और यह दूसरी परत ज्यादातर जल वाष्प की है जो एक जीएचजी भी है। गर्म वातावरण अधिक नमी रखता है जो एक चक्र की तरह हो जाता है जिसमें हम अब खुद को पाते हैं। इससे पिछले 180 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। दबाव अंतर से उत्पन्न बल के कारण हवाएं बहती हैं। यदि दबाव प्रवणता अधिक है तो हवाएं मजबूत होंगी और अगर दबाव प्रवणता कम है तो हवाएं कमजोर होंगी। हम अतिरिक्त तापमान वृद्धि के साथ देखते हैं कि भूमध्य रेखा और ध्रुवीय क्षेत्रों के बीच दबाव प्रवणता कम हो गई है जो हवाओं को धीमा कर देती है लेकिन स्थानीय रूप से हवाएं मजबूत हो सकती हैं। ऐसा आईटीसीजेड हवाओं के स्थानीय रूप से मजबूत होने के मामले में होता है जिसका नतीजा चरम मौसम घटनाओं के रूप में होता है। यह विशेष रूप से भारत के लिए देखा गया है क्योंकि कुल मानसून वर्षा में ज्यादा बदलाव नहीं हो रहा है लेकिन भारी वर्षा की घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। देश के ज्यादातर मध्य भाग में स्थित मुख्य मानसून क्षेत्र में यह देखा गया है कि हल्की और मध्यम बारिश कम हो रही है जबकि भारी बारिश बढ़ रही है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के साथ भी एक प्रवृत्ति है जहां संख्या में उतना वृद्धि नहीं हो सकती है लेकिन उनकी तीव्रता निश्चित रूप से बढ़ रही है क्योंकि चक्रवात के अंदर हवाएं मुख्य रूप से अतिरिक्त नमी के कारण मजबूत हो रही हैं।
हवाओं को कैसे मापा जाता है? हम उन्हें कैसे बेहतर तरीके से माप सकते हैं और उन्हें बेहतर तरीके से समझ सकते हैं? हम ये कैसे जान सकते हैं कि हवाएं बदलते जलवायु के साथ कैसे बदल रही हैं?
हवाओं को एनीमोमीटर, रेडियोसोन्ड, डॉपलर मौसम रडार और सेटेलाइट जैसे विभिन्न जमीन, हवा और अंतरिक्ष आधारित उपकरणों का इस्तेमाल करके मापा जाता है। हालांकि, ये सभी अभी तक हवाओं के सटीक प्रोफाइल उत्पन्न करने में सक्षम नहीं हुए हैं। यह विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और महासागरों के लिए सच है। इन क्षेत्रों में हवाओं का मापन विशेष रूप से कठिन है क्योंकि तापमान और दबाव के बदलाव धीमे होते हैं। यदि हम अपने ऑब्जर्वेशन इंस्ट्रूमेंट्स के नेटवर्क को जमीन पर बढ़ाते हैं तो हम हवाओं और हो रहे बदलावों के सटीक प्रोफाइल बनाने में सक्षम हो सकते हैं। इससे हमें हवाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। हम समझ पाएंगे कि वे कैसे बदल रहे हैं और बदले में हमें मानसून और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के दौरान चरम मौसम घटनाओं की बेहतर भविष्यवाणी करने में मदद मिलेगी। हवाओं की समझ हमें छोटे से छोटे स्टॉर्म सिस्टम जैसे थंडरस्टॉर्म को ट्रैक करने में मददगार हो सकती है। इससे हम बिजली गिरने की भविष्यवाणी कर सकेंगे, जो अभी ऐसा नहीं है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी और आईएमडी (भारतीय मौसम विज्ञान विभाग) उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और आंधी के बेहतर तरीके से पूर्वानुमान करने पर कड़ी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन हवाओं का डेटा और समझ इसे और बेहतर बना देगा। तब हम अपने पूर्वानुमान में सुधार करने और बेहतर अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बनाने में सक्षम होंगे।