बर्फ की विशाल चादरों में छोटा सा बदलाव भी दुनिया भर में समुद्र के औसत स्तर को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है। जिसका इंसान के साथ-साथ प्रकृति पर खतरनाक असर पड़ सकता है। एक नए अध्ययन में अध्ययनकर्ताओं ने बर्फ की चादर के द्रव्यमान का अनुमान लगाने में गुरुत्वाकर्षण और गर्मी से पड़ने वाले दबाव की भूमिका के बारे में पता लगाया है।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के इस शोध से पता चलता है कि ग्लेशियर थोड़े कम कठोर या नाजुक होते हैं। अंटार्कटिका या ग्रीनलैंड जैसी बर्फ की चादर के विशाल इलाके इस बर्फ की चादर को और अधिक घना बनाते हैं। इस तरह यह सतह की बर्फ को दसियों फीट तक कम कर देता है।
पृथ्वी और अंतरिक्ष विज्ञान के यूडब्ल्यू सहायक प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता ब्रैड लिपोव्स्की ने कहा यह छिपी हुई बर्फ को खोजने जैसा है। एक मायने में, हमने गायब बर्फ के एक बड़े टुकड़े की खोज की जिसका सही से हिसाब नहीं लगाया जा सका।
बर्फ का सिकुड़ना अंटार्कटिक के बर्फ की चादर पर सतह को 37 फीट तक और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पर 19 फीट तक कम कर देता है। पूरे अंटार्कटिक बर्फ की चादर में औसतन, सतह 2.3 फीट कम है, जो 30,200 गीगाटन अतिरिक्त बर्फ का हिस्सा है। ग्रीनलैंड की, बर्फ की चादर की सतह औसतन 2.6 फीट कम है, जो 3,000 गीगाटन बर्फ का भाग है।
बर्फ की चादर का द्रव्यमान केवल आंशिक रूप से प्रभावित करता है: चूंकि एक ग्लेशियर का तापमान गहराई के साथ बढ़ता है, गर्मी से पड़ने वाला दबाव बर्फ की चादर की सतह के पास तापमान को ठंडा करता है। इससे ठोस बर्फ उतनी ही दब जाती है जितना कि उसका वजन होता हैं।
साथ में गुरुत्वाकर्षण और गर्मी से पड़ने वाले दबाव के कारण बर्फ की चादर के कुल द्रव्यमान में लगभग 0.2 फीसदी की वृद्धि होती है। हालांकि यह बहुत कम लगता है, इस तरह के प्रभावों सहित समय के साथ ग्लेशियर में आने वाले बदलावों की गणना में सुधार करने में मदद मिलेगी। विशेष रूप से नवीनतम उपग्रह जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं की निगरानी के लिए ग्लेशियरों की ऊंचाई का सटीक माप की जा सकती है।
लिपोव्स्की ने कहा बर्फ में लंबे समय तक होने वाले बदलाव यह है कि यह पानी के रूप में बहती है और थोड़ा सा फिसल भी जाती है। लेकिन साथ ही, यदि आप बर्फ को हथौड़े से मारते हैं, तो इस पर भारी असर दीखता है। एक छोटी अवधि के दौरान ग्लेशियर ठोस होता है और लंबे समय के पैमाने पर यह एक तरल की तरह होता है।
वर्तमान में लंबे समय के जलवायु मॉडल भी ग्लेशियरों के सिकुड़न के बारे में पता नहीं लगा सकते हैं। जो अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसी बड़ी बर्फ की चादरों के लिए एक बड़ा प्रभाव बन जाता है।
लिपोव्स्की ने कहा लंबी अवधि के प्रवाह मॉडल से पता चलता है कि बर्फ हमेशा सिकुड़ती नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अगर आपने वास्तव में इसे दबाया था और ग्लेशियर में भूकंपीय दबाव तरंगें हैं, तो वे संकुचित होनी चाहिए।
लिपोव्स्की ने कहा कि अतिरिक्त पानी की मात्रा शायद भविष्य में समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिए कोई मायने नहीं रखती है। नए परिणाम बताते हैं कि दुनिया भर के सभी ग्लेशियरों की बहुत ही असंभावित घटना के तहत पिघलने से अनुमानित 260 फीट समुद्र के स्तर में 8 इंच और बढ़ोतरी कर सकते हैं।
लेकिन संकुचन सर्दियों के बीच ग्लेशियर की ऊंचाई के माप को प्रभावित करती है, यह तब होता है जब उनके ऊपर ताजा बर्फ गिरती है। गर्मियों में, जब उस बर्फ का अधिकांश भाग पिघल जाता है। इन मौसमी मापों का उपयोग यह ग्लेशियरों की निगरानी करने के लिए किया जाता है। इससे पता चलता है कि समय के साथ ग्लेशियर कैसे बदल रहे हैं।
नए अध्ययन का अनुमान है कि बर्फ की संकुचन को जोड़ने से इन अनुमानों के आसपास की त्रुटि का लगभग दसवां हिस्सा समाप्त हो सकता है, जिससे बड़ी बर्फ की चादरों की निगरानी में सुधार होता है क्योंकि वे जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करते हैं। यह अध्ययन जर्नल ग्लेशियोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।