
अगस्त 2025 में लेह में 80.2 मिमी बारिश हुई, जो पिछले 52 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 1973 के बाद सबसे अधिक है
इस असामान्य बारिश ने लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी को प्रभावित किया, जिससे अचानक बाढ़ और मिट्टी का कटाव हुआ।
विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों पर चेतावनी दी और बेहतर संचार और योजना की आवश्यकता पर जोर दिया।
विशेषज्ञों ने लद्दाख में जलवायु-अनुकूल आवास और बेहतर योजना की आवश्यकता पर बल दिया।
लद्दाख के लेह में पिछले 52 वर्षों में अगस्त माह में सबसे अधिक मासिक वर्षा दर्ज की गई, मौसम विज्ञान केंद्र, लेह के मुताबिक अगस्त 2025 में 80.2 मिलीमीटर बारिश हुई, जो साल 1973 से लेकर अब तक के आंकड़ों को पार कर गया। इससे पता चलता है कि शुष्क जलवायु वाले ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र में बारिश में असाधारण वृद्धि हो रही है।
केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह स्थित मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक सोनम लोटस ने कहा," उनके पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अगस्त, 2025 में 80.2 मि.मी बारिश दर्ज की गई। हालांकि 24 घंटे में सबसे अधिक बारिश की बात करें तो 1933 के अगस्त माह में 24 घंटों में 51.3 मिमी रिकॉर्ड की गई थी, लेकिन इस साल अगस्त में 24 घंटे में सबसे अधिक बारिश लेह में 37 रिकॉर्ड की गई, जबकि कारगिल में 24 घंटे में 33 मिमी रिकॉर्ड की गई। इसका आशय है कि लद्दाख में 24 घंटे की सर्वाधिक वर्षा का आंकड़ा अभी भी लगभग एक सदी पुराना है।"
उन्होंने आगे कहा "बारिश का समय और अवधि बहुत मायने रखती है। अगस्त में हुई यह बारिश लद्दाख के लिए शुभ नहीं थी, क्योंकि किसान अपनी फसलों की कटाई में व्यस्त थे, जिससे पकी पकाई फसल तबाह हो गई। इस तरह की बारिश के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव होते हैं। सकारात्मक पक्ष यह है कि इससे भूजल का स्तर बढ़ने मे सहायता मिलती है, लेकिन नकारात्मक पक्ष यह है कि इससे मिट्टी के घर ढह गए हैं। पेड़ उखड़ गए हैं और अन्य प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं, खासकर आर्थिक दृष्टि से।"
मौसम केंद्र, लेह के आंकड़ों के अनुसार इससे पहले सर्वाधिक वर्षा का आंकड़ा 1995 में 46.4 मिमी और 2006 में 45.2 मिमी था। हाल ही में सर्वाधिक वर्षा का रिकॉर्ड 2017 में 28.6 मिमी और 2015 में 26.6 मिमी रहा। हालांकि इस वर्ष की वर्षा पिछले उच्चतम स्तर से लगभग दोगुनी हो गई, जिसने एक अभूतपूर्व मानक स्थापित किया है।
असामान्य बारिश के कारण लद्दाख में अचानक बाढ़ आ गई, मिट्टी का कटाव हुआ और आवासीय सरंचना को नुकसान पहुंचा, क्योंकि इस क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी और पारंपरिक आवासीय संरचनाएं भारी बारिश के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
सोनम लोटस ने प्राकृतिक जोखिमों को कम करने में बेहतर संचार प्रणालियों की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "आज संचार मजबूत हुआ है, जिससे हमें लोगों को पहले से चेतावनी देने और तैयार करने में मदद मिलती है।"
उन्होंने बताया कि यह क्षेत्र वर्तमान में मानसून के मौसम मे चरम पर है व जुलाई और अगस्त लद्दाख के सबसे अधिक वर्षा वाले महीने हैं। उन्होंने कहा "मैं कई बार कह चुका हूं कि जब मानसूनी धाराएं मजबूत होती हैं, तो मानसूनी बादल और बारिश लद्दाख तक पहुंचते हैं और इस क्षेत्र को प्रभावित करते हैं।"
हाल ही में आई बारिश पर लोटस ने कहा कि लेह जिले में मध्यम से अधिक बारिश दर्ज की जा रही है और कुछ क्षेत्रों में अचानक बाढ़ आ रही है। उन्होंने समझाया, "बारिश होने के लिए पर्याप्त नमी होनी चाहिए। फिलहाल, नमी बंगाल की खाड़ी से आ रही है और पश्चिमी विक्षोभ से भी इसमें सहयोग मिल रहा है। ये अरब सागर, काला सागर, कैस्पियन सागर और यहां तक कि लाल सागर से पश्चिमी दिशा से आने वाली नमी लाते हैं। आज जो आप देख रहे हैं, वह मानसून और पश्चिमी विक्षोभ का मिला-जुला प्रभाव है।"
उन्होंने आगे बताया कि जुलाई और अगस्त न केवल मानसून के महीने हैं, बल्कि कश्मीर और लद्दाख दोनों के लिए वर्ष के सबसे गर्म अवधि के महीने भी है। लोटस ने कहा, "अनुकूल परिस्थितियों के दौरान, लद्दाख में वास्तव में बारिश होती है। लेकिन तीव्र दौर के दौरान, इससे अक्सर भूस्खलन या अचानक बाढ़ आ जाती है, खासकर क्योंकि मिट्टी कमजोर है, स्थलाकृति नाजुक है और पारिस्थितिकी अत्यधिक संवेदनशील है।"
गर्म होते जलवायु में और अधिक जोखिम भरी चेतावनी देते हुए लोटस ने कहा, "आने वाले वर्षों में हम और अधिक आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) का सामना कर सकते हैं, क्योंकि हम एक गर्म वातावरण में रह रहे हैं और जब तक कि हम अपने कार्बन फुटप्रिंट को और कम नहीं करते। यह सिर्फ आपकी या मेरी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि एक सामूहिक जिम्मेदारी है।’’
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन समाज के सबसे कमजोर वर्गों को प्रभावित कर रहा है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दूरगामी है और समाज के निचले हिस्से पर रहने वाले लोग अधिक असुरक्षित हैं। मौसम और जलवायु की कोई सीमाएं नहीं होती। यदि हम सामूहिक रूप से अपने कार्बन पदचिह्न को कम नहीं करते हैं, तो हम एक शांतिपूर्ण और हरे-भरे विश्व में रहने की उम्मीद नहीं कर सकते।
लोटस ने लद्दाख के इस बढ़ते संकट को एक चिंताजनक उदाहरण के रूप में बताया, "यदि आप जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को देखना व महसूस करना चाहते हैं, तो लद्दाख आइए। आप देखेंगे कि कैसे सिर्फ दो वर्ष के भीतर ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हमारी नदियों में बहने वाला पानी ग्लेशियरों और पहाड़ों के नीचे के स्थायी हिमकरण (पर्माफ्रॉस्ट) से आता है। जैसे-जैसे ये स्रोत सिकुड़ते जाएंगे, हमारे भविष्य के लिए इसके परिणाम गंभीर होंगे।"
मौसम विज्ञानी कहते है कि बिना योजना के निर्माण से जोखिम बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, "हमें वैज्ञानिक योजना की आवश्यकता है। जब बाढ़ संभावित क्षेत्रों में घर और स्कूल बनाए जाते हैं तो आप आपदा को निमंत्रण दे रहे हैं। यदि आप आज लेह और कारगिल को देखें तो बाढ़ संभावित स्थानों पर कई सरंचना व इमारतें बन गई हैं।"
जलवायु अनुकूलन पर बात करते हुए लोटस ने स्थानीय समुदायों की सहनशक्ति और अनुकूलन क्षमता पर बात की। लोटस कहते है कि "जहां तक लद्दाखियों का सवाल है, वे बहुत सहनशील हैं। बर्फ सहने योग्य हैंं, क्योंकि यह एक धीमी प्रक्रिया है और हम इसका पूर्वानुमान भी लगा सकते हैं।" लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि अचानक और तीव्र वर्षा एक बड़ा खतरा पैदा करती है।
उनके मुताबिक सबसे खतरनाक स्थिति तब होती है जब गर्म और आर्द्र मौसम हो और अचानक तेज बारिश होने लगे। यह घरों को मिनटों में बहा सकती है। ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल है और अक्सर शीघ्र चेतावनी भी पर्याप्त नहीं होती क्योंकि लोगों के पास प्रतिक्रिया के लिए बहुत कम समय होता है।"
लद्दाख के लोगों के लिए अनुकूलन उपायों पर बात करते हुए, लोटस ने जलवायु-अनुकूल आवास और योजना की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने सलाह दी कि "चूंकि हम भविष्य में अधिक संवहनीय वर्षा (गर्म हवा के ऊपर उठने और ठंडा होने से बनी तेज, अचानक और स्थानीय वर्षा) का सामना करने वाले हैं, इसलिए लोगों को अपने घरों, स्कूलों और अन्य बुनियादी ढांचों का निर्माण उसी अनुसार करना चाहिए। परंपरागत रूप से, लद्दाखी घरों में समतल छतें होती थीं, लेकिन अब मेरा सुझाव है कि घर बनाने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि परंपरा को बनाए रखते हुए उसमें पानी और बर्फ रोधी छत हो। घरों का निर्माण अधिक वैज्ञानिक तरीके से और सुरक्षित स्थानों पर किया जाना जरूरी है।"
लोटस ने तैयारियों के महत्व पर जोर देते हुए कहते है कि "बेहतर प्रतिक्रिया के लिए हमें ठोस व पूर्व-चेतावनी प्रणालियों की आवश्यकता है। साथ ही, सरकार को मजबूत योजना और हरित नीतियों के साथ आगे आना चाहिए। सीमेंट का उपयोग कम से कम किया जाना चाहिए, लेकिन घरों को गर्म और जलवायु-सहनशील बनाए रखना चाहिए।"