शोधकर्ताओं की एक टीम ने पहली बार इस बात का खुलासा किया है कि भूस्खलन का ग्लेशियरों की गतिविधि पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए चिली के पेटागोनिया क्षेत्र में अमालिया ग्लेशियर पर हुए 2019 के भूस्खलन के प्रभावों का अध्ययन किया गया।
इसके लिए उपग्रह इमेजरी का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि भूस्खलन के कारण ग्लेशियर आकार में बढ़ गया और तब से इसकी पिघलने की प्रक्रिया धीमी हो गई है। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा ट्विन सिटीज के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है।
यह जानकारी वैज्ञानिकों को भविष्य में ग्लेशियरों के आकार का सटीक अनुमान लगाने और ग्लेशियरों और भूस्खलन वाले क्षेत्रों में रहने के खतरों को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती है।
ग्लेशियोलॉजिस्ट दशकों से दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों के पीछे हटने की निगरानी कर रहे हैं। 150 वर्ग किलोमीटर का अमालिया ग्लेशियर लगातार घट रहा है या वहां बर्फ का नुकसान हो रहा है और यह अब छोटा होता जा रहा है। यह पिछले 100 वर्षों में 10 किलोमीटर से अधिक सिकुड़ गया है। अब तक इसकी गतिविधि पर भूस्खलन का प्रभाव काफी हद तक अज्ञात था।
मिनेसोटा विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाली शोध टीम ने पाया कि 2019 के भूस्खलन के बाद, अमालिया ग्लेशियर तेज दर से बढ़ने लगा। हालांकि इसके प्रवाह की गति धीमी हो गई है और इसकी पूर्व-भूस्खलन गति आधी हो गई है, लेकिन पिछले तीन वर्षों में ग्लेशियर लगभग 1,000 मीटर बढ़ गया है।
मिनेसोटा विश्वविद्यालय के एनएच विंचेल स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायरनमेंटल साइंसेज के स्नातक और प्रमुख अध्ययनकर्ता मैक्स वान विक डी व्रीस ने बताया कि ये भूस्खलन वास्तव में काफी सामान्य हैं और हाल ही के हैं। यदि वे ग्लेशियरों को स्थिर करने में सक्षम हैं, तो यह अनुमानों को प्रभावित कर सकता है कि भविष्य में कितने बड़े ग्लेशियर होंगे।
यहां ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन दुनिया भर के ग्लेशियरों को अभूतपूर्व दरों पर पीछे हटने का कारण बन रहा है। यह दुनिया भर में सभी को प्रभावित कर रहा है क्योंकि जैसे-जैसे ये ग्लेशियर छोटे होते जाते हैं, वे समुद्र के स्तर को बढ़ाते हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि भूस्खलन ने ग्लेशियर से बर्फ को नीचे की ओर धकेल दिया, जिससे यह तुरंत आगे बढ़ गया और उसका आकार भी बढ़ गया। फिर भूस्खलन से तलछट और चट्टान का निर्माण हुआ जहां ग्लेशियर समुद्र की सीमा में हैं, जो हिमखंडों को समुद्र में टूटने से रोकते हैं और ग्लेशियर को प्रभावी ढंग से स्थिर करते हैं।
इस अध्ययन ने शोधकर्ताओं को इस बात का भी अंदाजा दिया कि कैसे ग्लेशियरों की निकटता दुर्भाग्य से पड़ोसी समुदायों पर भूस्खलन के प्रभाव को बढ़ा सकती है।
मिनेसोटा विश्वविद्यालय के सीएसई और डॉक्टरेट शोध प्रबंध वैन विक डी व्रीस ने कहा कि ग्लेशियर और भूस्खलन का संयोजन बेहद खतरनाक हो सकता है। भूस्खलन के ग्लेशियर को पिघलाने और मूल रूप से बहुत आगे बढ़ा सकते हैं। वे उन लोगों को प्रभावित करते हैं जो इन ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं जहां खड़ी ढलान और ग्लेशियर आपस में मिले होते हैं।
उन्होंने कहा लेकिन हमें अभी भी इन प्रक्रियाओं की सीमित समझ है, इसलिए इस तरह की घटनाओं की जांच करने से हमें इन ग्लेशियरों, उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में रहने से जुड़े खतरों को समझने में बेहतर तरीका मिल सकता है।
उपग्रह इमेजरी का उपयोग करने से शोधकर्ताओं ने वास्तविक समय में बिना शारीरिक रूप से वहां पहुंचे ग्लेशियर के गति की निगरानी की। भविष्य में दूरस्थ स्थानों में ग्लेशियरों की निगरानी के लिए इस पद्धति का अधिक बार उपयोग किया जा सकता है।
मिनेसोटा विश्वविद्यालय की शोध टीम, अन्य वैज्ञानिकों के साथ, वर्तमान में पिछले 20 से 30 वर्षों के उपग्रह के आंकड़ों का अध्ययन कर रही है, ताकि यह देखा जा सके कि क्या वे ग्लेशियरों पर पहले हुए बिना रिकॉर्ड किए गए भूस्खलन को देख सकते हैं। शोधकर्ता ने कहा उनका लक्ष्य अपने आंकड़ों को बढ़ाना है ताकि वे इस घटना को बेहतर ढंग से समझ सकें। यह अध्ययन जियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।