जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित होने वाले बच्चों के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र ने नए दिशा निर्देश जारी किए हैं। सोमवार 25 जुलाई 2022 को जारी इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य जलवायु संकट के कारण अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर बच्चों का संरक्षण, समावेश और सशक्तिकरण करना है। देखा जाए तो यह दिशा-निर्देश बच्चों को ध्यान में रखकर इस बढ़ते वैश्विक संकट का सामना करने का अपनी तरह का पहला वैश्विक प्रयास है।
गौरतलब है कि द गाइडिंग प्रिंसिपल्स फॉर चिल्ड्रन ऑन द मूव इन द कॉन्टेक्स्ट ऑफ क्लाइमेट चेंज नामक इन दिशा-निर्देशों में नौ सिद्धांतों को शामिल किया गया है। यह सिद्धांत उन बच्चों-बच्चियों की बारीक कमजोरियों पर ध्यान देंगें जिन्हें जलवायु परिवर्तन के चलते अपने घरों से बेघर होना पड़ा है।
इन दिशा-निर्देशों को इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), ज्यॉर्जटाउन विश्वविद्यालय और यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, टोक्यो जापान द्वारा संयुक्त रूप से जारी किए गया है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा इन मार्गदर्शक सिद्धांतों को जलवायु परिवर्तन से प्रभावित बच्चों के अधिकारों की रक्षा और कल्याण के लिए विकसित किया गया है। इनके दायरे में उन सभी बच्चों को शामिल किया गया है जो चाहे देश की सीमा में या उसके बाहर विस्थापित हुए हैं। यह नौ सिद्धांत इस प्रकार हैं।
सिद्धांत 1: अधिकार आधारित दृष्टिकोण
सिद्धांत 2: बच्चों का सर्वोत्तम हित
सिद्धांत 3: जवाबदेही
सिद्धांत 4: निर्णय लेने में जागरूकता और भागीदारी
सिद्धांत 5: पारिवारिक एकता
सिद्धांत 6: संरक्षण और सुरक्षा
सिद्धांत 7: शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सेवाओं तक पहुंच
सिद्धांत 8: भेदभाव रहित
सिद्धांत 9: राष्ट्रीयता
जलवायु के दृष्टिकोण से जोखिम भरे देशों में रहते हैं 100 करोड़ से ज्यादा बच्चे
देखा जाए तो जलवायु में आता बदलाव मौजूदा पर्यावरण, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों के साथ मिलकर कहीं ज्यादा जटिल हो रहा है जो बड़े पैमाने पर लोगों के विस्थापन और प्रवास की वजह है। आंकड़ों की मानें तो 2020 में ही मौसम संबंधी आपदाओं के चलते एक करोड़ से ज्यादा बच्चों को विस्थापित होना पड़ा था।
वहीं वैश्विक स्तर पर बच्चों की करीब आधी आबादी यानी 100 करोड़ से ज्यादा बच्चे उन 33 देशों में रहते हैं जहां जलवायु परिवर्तन का खतरा कहीं ज्यादा विकट है। ऐसे में एजेंसियों ने आगाह किया है कि आने वाले वर्षों में लाखों और बच्चे भी विस्थापन या प्रवास के लिये विवश हो सकते हैं।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशिक कैथरीन रसैल का इस बारे में कहना है कि, "हर दिन तूफान, समुद्रों का बढ़ता जल स्तर, जंगल में लगने वाली आग और नाकाम होती फसलें पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बच्चों को उनके घर-परिवार से दूर कर रही हैं।"
उनके अनुसार इन विस्थापित बच्चों पर दुराचार, तस्करी, और शोषण का शिकार बनने का जोखिम कहीं ज्यादा है। साथ ही इस बात की बहुत ज्यादा सम्भावना है कि वो शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल से वंचित रह जाएं। इतना ही नहीं अक्सर उन्हें बाल विवाह और बाल मजदूरी के दलदल में धकेल दिया जाता है।
एजेंसियों का कहना है कि इस समय बच्चों से सम्बंधित ज्यादातर प्रवास सम्बन्धी नीतियों में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संबंधी कारक शामिल नहीं हैं। इसी तरह जलवायु से जुड़ी ज्यादातर नीतियों में भी बच्चों की खास जरूरतों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) के महानिदेशक एंटोनियो विटोरिनो का कहना है कि, “जलवायु संबंधी आपदाओं ने इंसानी प्रवास पर गहरा प्रभाव छोड़ा है जो आगे भी जारी रहेगा। खासकर हमारे समाज का एक अहम हिस्सा यानी बच्चों पर इनका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में हम अपनी भविष्य की पीढ़ियों को खतरे में नहीं डाल सकते।“
जब इन बच्चों को जलवायु परिवर्तन के चलते अपना घर छोड़ना पड़ता है तो विशेष रूप से असहाय होते हैं, फिर भी नीतिगत चर्चाओं में इनकी जरूरतों और उमीदों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। उनका कहना है कि इन दिशा-निर्देशों के जरिए हमारा उद्देश्य उन बच्चों की आवश्यकताओं और अधिकारों को नीति सम्बन्धी चर्चाओं और निर्माण दोनों स्तर पर उजागर करना है। उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण में आती गिरावट और आपदाओं के कारण बच्चों के विस्थापन और प्रवास को संबोधित करना एक बहुत बड़ी चुनौती है, जिस पर तत्काल कार्रवाई करने की जरुरत है।