खतरे में खाद्य उत्पादन, बढ़ते तापमान से भारत में 73 फीसदी तक घट सकती है किसानों की श्रम उत्पादकता

एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया कि बढ़ते तापमान से पहले ही भारतीय किसान अपनी क्षमता से 23 फीसदी कम काम कर पा रहे हैं
बढ़ते तापमान से जूझते भारतीय किसान; फोटो: आईस्टॉक
बढ़ते तापमान से जूझते भारतीय किसान; फोटो: आईस्टॉक
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कहते हैं जब किसान का पसीना धरती पर गिरता है तो दाना उपजता है, जो धरती पर करोड़ों लोगों का पेट भरता है। इसमें शक नहीं की खेती-किसानी बड़ी मेहनत का काम है। इसके लिए किसानो को तपती गर्मी, बारिश और हाड़ गला देने वाली सर्दी की परवाह किए बिना जूझना पड़ता है।

लेकिन बढ़ता तापमान देश के इन मेहनतकश किसानों को भी आजमा रहा है। इसका सीधे तौर पर खामियाजा उनकी घटती श्रम उत्पादकता के रूप में चुकाना पड़ रहा है। जो न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में किसानों और कृषि श्रमिकों के काम करने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है। लेकिन यह किस हद तक उनकी क्षमता को प्रभावित कर रहा है, उसे समझना बेहद जरूरी है।

अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा इस बारे में किए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान के चलते सदी के अंत तक भारतीय किसानों की श्रम उत्पादकता 43 फीसदी तक गिर सकती है। इसका मतलब है की देश का किसान पैदावार के मौसम में जितना काम कर सकता है, उसका केवल 57 फीसदी ही कर पाएगा। वहीं यदि साल के सबसे गर्म 90 दिनों की बात करें तो वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उस दौरान देश के किसानों की श्रम उत्पादकता घटकर महज 27 फीसदी रह जाएगी। मतलब की इस दौरान उनकी श्रम उत्पादकता में 73 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

ऐसे में किसानों को समान काम के लिए कहीं ज्यादा श्रमिकों की आवश्यकता होगी और यदि वो उपलब्ध नहीं हैं तो उन्हें इसकी कीमत अपनी पैदावार के रूप में चुकानी होगी। इसकी वजह से न केवल किसानों की आय पर बल्कि साथ ही खाद्य सुरक्षा और देश के आर्थिक विकास पर भी असर पड़ेगा।

अनुमान है कि इसका सबसे ज्यादा असर सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों पर पड़ेगा, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है। शोध में यह सामने आया है कि बढ़ते तापमान का भारत के पूर्वी तटीय क्षेत्रों के साथ-साथ असम में भी पैदावार सीजन के दौरान काफी गहरा प्रभाव पड़ेगा। जहां सदी के अंत तक इसकी वजह से किसानों की श्रम उत्पादकता घटकर आधी से कम रह जाएगी।

वहीं दूसरी तरफ इसका सबसे कम प्रभाव देश के मध्यवर्ती इलाकों में देखने को मिलेगा। हालांकि वहां भी किसानों की उत्पादकता में कमोबेश 30 फीसदी की गिरावट आने का अंदेशा है। अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। बता दें कि यह जो नतीजे सामने आए हैं उनमें बढ़ते तापमान की गणना एसएसपी5 8.5 परिदृश्य के तहत की गई है।

किसानों की क्षमता को पहले ही प्रभावित कर रहा है बढ़ता तापमान

ऐसा नहीं कि बढ़ता तापमान देश में किसानों की कार्यक्षमता को सदी के अंत तक ही प्रभावित करेगा। बढ़ते तापमान के परिणाम पहले ही सामने आने लगे हैं। नतीजे दर्शाते हैं कि इसकी वजह से भारतीय किसान पहले ही पैदावार सीजन में अपनी क्षमता से 23 फीसदी कम काम कर पा रहे हैं। वहीं साल के सबसे गर्म 90 दिनों को देखें तो उनकी श्रम उत्पादकता में गिरावट का आंकड़ा 46 फीसदी पर पहुंच चुका है।

इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर गेराल्ड नेल्सन का कहना है कि अध्ययन लगातार इस बात को उजागर करते रहे हैं कि जलवायु में आते बदलावों के चलते फसलों की पैदावार कम हो जाएगी, जिससे खाद्य सुरक्षा के लिए चुनौतियां कहीं ज्यादा बढ़ जाएंगी।

हालांकि हमें समझना होगा कि इससे केवल पौधे और मवेशी ही प्रभावित नहीं होंगें। इसका असर उन किसानों और श्रमिकों पर भी पड़ेगा जो खेतों में बुवाई, जुताई और कटाई जैसे कार्यों में लगे हैं। उनकर मुताबिक इस बढ़ते तापमान और गर्मी से समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह से उनके लिए खेतों में काम करना मुश्किल हो जाएगा और उनकी क्षमता कम हो जाएगी।

बता दें कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के चलते किसानों की शारीरिक कार्य क्षमता में आने वाली गिरावट का आंकलन किया है। यहां कार्यक्षमता में आने वाली गिरावट की गणना इस आधार पर की गई है कि यदि जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान का असर न पड़ता तो एक आम किसान या श्रमिक औसतन कितना काम कर सकता था।

कार्यक्षमता में आने वाली इस गिरावट का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटेशनल मॉडल का उपयोग किया है। इस मॉडल में लोगों की कार्यक्षमता पर तापमान, धूप, आद्रता और हवा जैसी मौसमी परिस्थितियों के पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। यहां कार्यक्षमता में गिरावट से तात्पर्य है कि लोग चाह कर भी शारीरिक रूप से उतना काम नहीं कर सकते, जितना वो आम परिस्थितियों में कर सकते थे।

इस अध्ययन में वैश्विक स्तर पर किसानों की कार्यक्षमता पर पड़ने वाले प्रभावों का भी आंकलन किया गया है। निष्कर्ष दर्शाते हैं कि बढ़ता तापमान और गर्मी पहले ही किसानों को प्रभावित कर रहा है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में करीब 86 करोड़ लोग सीधे तौर पर कृषि से जुड़े हैं, जिनमें से 35.3 फीसदी यानी करीब 30 करोड़ को पहले ही बढ़ता तापमान बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। इनकी कार्यक्षमता में पहले ही 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसका सबसे ज्यादा असर भारत, पाकिस्तान और नाइजीरिया जैसे देशों में किसानों पर पड़ रहा है।

ऐसे में किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों पर बढ़ते तापमान के पड़ते प्रभावों को सीमित करने के लिए वैज्ञानिकों ने कई सुझाव दिए हैं जिनमें सुबह और शाम के समय छाया के दौरान काम करने की सिफारिश की गई है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि ऐसा करने से उनकी श्रम उत्पादकता में पांच से दस फीसदी का सुधार किया जा सकता है।

इसी तरह कृषि क्षेत्र में मशीनों के उपयोग को बढ़ावा देने की बात भी अध्ययन में कही गई है। विशेष रूप से उपसहारा अफ्रीका में इसको बढ़ावा देना कहीं ज्यादा जरूरी है क्योंकि वहां कृषि क्षेत्र अभी भी काफी हद तक शारीरिक श्रम पर ही निर्भर है। भारत में हरित क्रांति के बाद से इस दिशा में सुधार जरूर आया है लेकिन अभी भी हम इस मामले में अमेरिका, फ्रांस, ब्राजील और चीन जैसे देशों से काफी पीछे हैं।

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