मलेरिया एक मच्छर के द्वारा होने वाली बीमारी है। यह संक्रमित मादा एनाफिलीज मच्छरों के काटने से फैलने वाले परजीवी के कारण होती है। यदि इसका उपचार न किया जाए, तो मलेरिया के खतरनाक लक्षण, स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं, यहां तक कि मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
क्यों खतरनाक है मलेरिया विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया भर में 2022 में, 85 देशों में मलेरिया के लगभग 24.9 करोड़ मामले सामने आए जिनमें से 60,8,000 लोगों की मौत हो गई।
अफ्रीकी क्षेत्र मलेरिया की बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित है, साल 2022 में, इस क्षेत्र में मलेरिया के 94 प्रतिशत मामले (23.3 करोड़) और मलेरिया से होने वाली 95 प्रतिशा मौतें (5,80,000) हुई थीं। इस क्षेत्र में मलेरिया से होने वाली सभी मौतों में से लगभग 80 प्रतिशत मौतें पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की होती हैं।
उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में जहां मलेरिया प्रचलित है, वैज्ञानिकों ने इस बात की चिंता जताई है कि बढ़ता तापमान कुछ क्षेत्रों में मलेरिया के खतरे को बढ़ा सकता है। हालांकि, तापमान और मच्छर परजीवी लक्षणों के बीच संबंध के बारे में अभी भी बहुत कुछ समझना बाकी है जो मलेरिया के फैलने को बढ़ा सकता हैं।
नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, फ्लोरिडा विश्वविद्यालय, पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी और इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने अफ्रीका में विभिन्न वातावरणों में मलेरिया परजीवी, प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के संचरण पर तापमान के प्रभावों का आकलन किया। शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच पड़ताल की कि तापमान की वजह से खतरे किस तरह बढ़ जाते हैं, इसके लिए उन्होंने नए मॉडलिंग को नए प्रयोगात्मक आंकड़ों को जोड़ा।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, व्यापक रूप से, वैज्ञानिक जानते हैं कि तापमान मच्छर की लंबी उम्र, भोजन करने के बाद मच्छर को संक्रामक बनने में लगने वाला समय और मच्छर की बीमारी को फैलाने की समग्र क्षमता जैसे प्रमुख लक्षणों को प्रभावित करता है।
लेकिन जो बात आश्चर्यजनक लग सकती है वह यह है कि अफ्रीका में मलेरिया के किसी भी शुरुआती वाहक के लिए तापमान निर्भरताओं को ठीक से मापा नहीं गया है।
शोध के निष्कर्ष एनोफेलीज गैम्बिया मच्छरों - जो कि यकीनन अफ्रीका में मलेरिया फैलाने के लिए जाना जाने वाला मच्छर है। प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम, जो कि अफ्रीका में लोगों में मलेरिया फैलाने वाले की सबसे प्रचलित प्रजाति है, इसके मलेरिया फैलाने की क्षमता पर तापमान के प्रभावों के बारे में नई जानकारी प्रदान करते हैं।
शोधकर्ता ने बताया कि अध्ययन में कई विस्तृत प्रयोगशाला प्रयोग शामिल किए गए थे, जिसमें सैकड़ों मच्छरों को प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम से संक्रमित रक्त पिलाया गया और फिर मच्छरों के भीतर संक्रमण और विकास दर की जांच करने के लिए उन्हें अलग-अलग तापमान पर रखा गया, साथ ही मच्छरों के जीवित रहने की दर भी जांची गई।
शोधकर्ता ने शोध में बताया कि इसके बाद नए आंकड़ों का उपयोग केन्या में चार स्थानों पर मलेरिया फैलने की क्षमता पर तापमान के प्रभावों का पता लगाने के लिए किया गया, जो बेसलाइन संचरण की विभिन्न तीव्रताओं के साथ अलग-अलग वर्तमान वातावरण से संबंधित हैं। जिनके जलवायु परिवर्तन के तहत बढ़ते तापमान के विभिन्न पैटर्न का अनुभव करने की भविष्यवाणी की गई है।
शोध के मुताबिक, यह अध्ययन पहले किए गए शोध के परिणामों का समर्थन करता है, जिसमें दर्शाया गया है कि मच्छरों और परजीवियों के विभिन्न लक्षण तापमान में बदलाव के संबंध को प्रदर्शित करते हैं, तथा भविष्य में तापमान बढ़ने पर, कुछ वातावरणों में संचरण क्षमता बढ़ने की आशंका है, जबकि अन्य में कम हो सकती है।
हालांकि, नए आंकड़ों से पता चलता है कि परजीवी ठंडे तापमान पर अधिक तेजी से विकसित हो सकते हैं और परजीवी विकास की दर तापमान में बदलाव के प्रति कम संवेदनशील हो सकती है, जितना कि पहले सोचा गया था।
आंकड़े यह भी संकेत देते हैं कि मच्छर में परजीवियों का सफल विकास, चरम तापमान पर घटता है, जो संचरण के लिए ऊपरी और निचली पर्यावरणीय सीमाओं में योगदान देता है।
इन परिणामों को एक सरल संचरण मॉडल में जोड़ने से पता चलता है कि पहले के पूर्वानुमानों के विपरीत, मलेरिया संचरण में प्रत्याशित वृद्धि, जो बढ़ते तापमान के कारण है, जितना सोचा गया उससे कम गंभीर हो सकती है, विशेष रूप से केन्या के ऊंचे जो ठंडे इलाके हैं।
मच्छर पारिस्थितिकी और मलेरिया संचरण पर कुछ मौजूदा धारणाएं पिछली सदी के शुरुआती हिस्से में किए गए काम से निकली हैं। यह अध्ययन इस पारंपरिक समझ पर फिर से विचार करने की आवश्यकता को उजागर करने में महत्वपूर्ण है।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, जबकि मच्छर के संक्रामक बनने में लगने वाला समय वातावरण के तापमान पर निर्भर करता है, यह मलेरिया, मच्छर की प्रजाति और तनाव पर भी निर्भर करता है।
अध्ययन और इसके निष्कर्ष मलेरिया फैलने की जटिलताओं को समझने में एक महत्वपूर्ण कदम है और वैश्विक स्तर पर मलेरिया को नियंत्रित करने के उद्देश्य से भविष्य के शोध के मार्ग को आगे बढ़ाता है।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से बताया कि अफ्रीकी मलेरिया वेक्टर, एनोफ़ेलीज गैम्बिया में मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम पर आधारित था। हालांकि, प्लास्मोडियम विवैक्स एशिया में अधिकांश मलेरिया के लिए जिम्मेदार एक और बड़ी परजीवी प्रजाति है, साथ ही हाल ही में अमेरिका में दर्ज किए गए मलेरिया के मामलों के लिए भी जिम्मेदार है।
शोध में कहा गया है कि प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम की तरह, प्लास्मोडियम विवैक्स के विकास पर तापमान के प्रभावों का वर्णन करने वाला स्थापित मॉडल अभी भी सही से मान्य नहीं है।
शोधकर्ता ने शोध में कहा, डेंगू या जीका वायरस जैसी अन्य वेक्टर जनित बीमारियों के लिए भी यही बात लागू होती है। वर्तमान शोध में प्रस्तुत किए गए प्रकार के और अधिक काम की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय मच्छर और परजीवी या रोगजनक वेरिएंट का उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि संक्रमण के खतरों पर तापमान और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझा जा सके।