क्या क्लाइमेट इक्विटी के नजरिए से उचित है लग्जरी चीजों पर ज्यादा कार्बन टैक्स

रिसर्च से पता चला है कि वस्तुओं और सेवाओं पर उद्देश्य के आधार पर लगाया अलग-अलग कार्बन टैक्स, वैश्विक उत्सर्जन को छह फीसदी तक कम कर सकता है
फोटो: आईस्टॉक
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क्या लग्जरी चीजों पर ज्यादा कार्बन टैक्स लगाया जाना चाहिए। एक ऐसा सवाल है जो बढ़ते उत्सर्जन और क्लाइमेट इक्विटी के नजरिए से मायने रखता है। इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के पारिस्थितिक अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि वस्तुओं और सेवाओं के उपयोग के उद्देश्य को ध्यान में रखकर लगाया कार्बन टैक्स कहीं ज्यादा न्यायसंगत होगा।

साथ ही यह क्लाइमेट इक्विटी को भी बढ़ावा देगा। देखा जाए तो इस तरह के कार्बन टैक्स का मतलब है कि कारों, गहनों आदि की तुलना में घरों को गर्म रखने और खाना पकाने के लिए ईंधन जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाले उत्पादों पर कम कार्बन टैक्स लगाया जाना।

जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक इस तरह की कार्बन टैक्स प्रणाली बढ़ते कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकती है। इस अध्ययन में कार्बन टैक्स से जुड़े कई परिदृश्यों का विश्लेषण किया गया है। निष्कर्ष दर्शाते हैं कि इस तरह उद्देश्य के आधार पर लगाया अलग-अलग कार्बन टैक्स वैश्विक उत्सर्जन को छह फीसदी तक कम कर सकता है। 

यदि मौजूदा समय में देखें तो कार्बन टैक्स करीब-करीब सभी आर्थिक क्षेत्रों के लिए एक समान है, जो अन्य लोगों की तुलना में कमजोर तबके पर कहीं ज्यादा बोझ डाल रहे हैं। इतना ही नहीं यह समान कार्बन टैक्स, बढ़ते उत्सर्जन को कम करने के लिए भी पर्याप्त नहीं हैं।

ऐसे में शोधकर्ताओं का सुझाव है कि उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वस्तुओं पर लगाया अलग-अलग कार्बन टैक्स कहीं ज्यादा न्यायसंगत होगा। इसका मतलब है कि बुनियादी जरूरतों से जुड़ी चीजों की तुलना में लग्जरी वस्तुओं और सेवाओं पर ज्यादा कार्बन टैक्स लगाया जाना।

देखा जाए तो इन वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग मुख्य रूप से समृद्ध वर्ग द्वारा किया जाता है। इस अध्ययन में जो सैद्धांतिक मॉडल प्रस्तुत किया गया है उसके तहत इस कार्बन टैक्स से उत्पन्न राजस्व का उपयोग कमजोर तबके से जुड़े लोगों के घरों को गर्म या ठंडा रखने के लिए किया जा सकता है जो उनके घरों में होने वाली बिजली की खपत को भी कम करने में मददगार होगा।

इस बारे में लीड्स विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर यानिक ओसवाल्ड ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "कार्बन टैक्स, कार्बन डाइऑक्साइड के होते उत्सर्जन को कम करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।"

उत्सर्जन के करीब 45 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेवार है केवल 10 फीसदी आबादी

उनका आगे कहना है कि, “इसके बावजूद बहुत सारी कार्बन कराधान योजनाओं में या तो उपभोग के सभी उद्देश्यों के लिए करों की समान दर होती है या तो इन्हें केवल कुछ गिने चुने क्षेत्रों जैसे ईंधन उपयोग, उद्योग या आवासीय हीटिंग पर केंद्रित किया जाता है जो बिजली की बहुत ज्यादा खपत करते हैं।“

दुर्भाग्य से, उच्च आय वाले देशों में जो सिस्टम उपयोग किया जाता है उससे अक्सर कमजोर तबके से जुड़े लोग कहीं ज्यादा गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं। उनके अनुसार, "हम जिस योजना को प्रस्तावित कर रहे हैं, उसमें लग्जरी वस्तुओं पर ज्यादा कार्बन टैक्स लगाया जाएगा। इस तरह की वस्तुओं में महंगी कारें और लंबी दूरी की उड़ान जैसी सेवाएं शामिल हैं। वहीं इंसानों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर कम कार्बन टैक्स होगा। जैसे कि आवास, खाना पकाने और स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी चीजों और सेवाओं के लिए कम कार्बन टैक्स लगाया जाना।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 88 देशों के आर्थिक और सामाजिक आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इससे उन्हें दुनिया की करीब 90 फीसदी आबादी के कार्बन उपयोग को समझने में मदद मिली है।

इसके जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक दुनिया की एक फीसदी सबसे ज्यादा अमीर आबादी घरेलू कार्बन उत्सर्जन के करीब 10 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेवार हैं। वहीं दुनिया का दस फीसदी सबसे संपन्न वर्ग, घरेलू कार्बन उत्सर्जन के करीब 45 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेवार हैं। वहीं सबसे निचली 50 फीसदी आबादी ने इस घरेलू उत्सर्जन में 15 फीसदी से भी कम का योगदान दिया है।

अध्ययन दल ने यह भी चेताया है कि यदि लग्जरी चीजों लगाई यह टैक्स योजना उत्सर्जन में प्रभावी रूप से कमी लाने में सफल रहती है और पेरिस समझौते में तय लक्ष्यों के अनुरूप कमी लाती है तो कार्बन उत्सर्जन में पर्याप्त कमी लाने और प्रभावी बनाने के लिए जल्द से जल्द सार्वभौमिक रूप से लागू किए जाने की जरूरत है।

इस अध्ययन में समृद्ध परिवारों द्वारा उपयोग की जाने वाली लग्जरी और बुनियादी खपत के बीच अंतर स्पष्ट किया है जो कमजोर परिवारों के व्यय का बड़ा हिस्सा होती है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि इस अध्ययन का उद्देश्य "भौतिकवादी जीवनशैली" को हतोत्साहित करना नहीं है।

शोधकर्ता स्वीकार करते हैं कि आधुनिक वस्तुओं और सेवाओं ने कई लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि लग्जरी चीजों पर लगाए इन कार्बन करों का उद्देश्य "पाप कर" नहीं है। ये टैक्स पर्यावरण से प्रेरित हैं, और वितरण संबंधी निहितार्थों पर विचार करते हैं। ये कर वैश्विक समस्याओं से निपटने के यथार्थवादी दृष्टिकोण पर आधारित हैं।

शोध के अनुसार लग्जरी चीजों पर केंद्रित एक निष्पक्ष कार्बन कराधान प्रणाली जरूरी हैं, क्योंकि अकेले तकनीकी समाधान कार्बन उत्सर्जन में कमी नहीं लाएंगें, जो बढ़ते वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के लिए आवश्यक है। यदि भविष्य में प्रभावी तकनीकी समाधान सामने आते हैं, तो शोधकर्ताओं का सुझाव है कि कराधान प्रणाली को उसके अनुसार समायोजित किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि, ऐसे में तकनीक में सुधार आने का इन्तजार नहीं कर सकते हैं। न ही इस बीच पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली लग्जरी गतिविधियों को बेरोकटोक जारी रखने की इजाजत दी जा सकती है।

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