जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि के प्रति इंसानी दृष्टिकोण ने जलवायु संतुलन को कम करने का काम किया है। हालांकि वानिकी लंबे समय से कार्बन सिंक बनाने पर ध्यान दे रही है, लेकिन खाद्य वस्तुओं की खपत, कृषि की आधुनिक प्रणाली और मरुस्थलीकरण ने जलवायु परिवर्तन को बढ़ाया है। आईपीसीसी की यह रिपोर्ट 8 अगस्त 2019 को जारी की गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आबादी बढ़ने, खान पान की आदतों में बदलाव, आय में वृद्धि से 2050 तक खाद्य सिस्टम की वजह से उत्सर्जन में 30 से 40 फीसदी की वृद्धि संभव है।
नई रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1961 के मुकाबले प्रति व्यक्ति कैलोरी में 33 फीसदी की खपत बढ़ी है, बावजूद इसके 82 करोड़ लोग अभी भी कुपोषित हैं। रिपोर्ट में एक और अतिशय की जानकारी देते हुए कहा गया है कि विश्व में लगभग 2 खरब व्यवस्क लोगों का वजह या तो अधिक है या वे मोटे हैं। बावजूद इसके कुल खाद्य उत्पादन का 25 से 30 फीसदी हिस्सा बर्बाद किया जा रहा है। जो सीधे-सीधे जलवायु को नुकसान पहुंचा रहा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि लगभग 4.4 गीगा टन खाने की वस्तुए खराब की गई, जो 2011 में कुल कार्बन उत्सर्जन का आठ फीसदी था। रिपोर्ट में कहा गया है कि खाने पीने की आदत में बदलाव करके 1.8 से 3.4 गीगाटन कार्बन डाईआक्साइड सालाना कम किया जा सकता है।
खानपान पर बहस अक्सर शाकाहारी और मांस की खपत या विभिन्न धर्मों के आधार पर होती है, लेकिन आईपीसीसी ने अपील की है कि इसे आस्था, संस्कृति या धर्म के आधार पर तय नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि मोटे अनाज, फलियां, फल और सब्जियां, नट और बीज तक पहुंच बढ़ाना और मांस की वजह से होने वाले कार्बन फुटप्रिंट को कम करना होगा। साथ ही, खाने को बर्बाद होने से बचाने की सख्त जरूरत है। इसके लिए सप्लाई चेन प्रबंधन को सुदृढ़ कर लाखों डॉलर की बचत की जा सकती है।
आईपीसीसी ने स्पष्ट किया है कि आधुनिक कृषि प्रणाली ने भी जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दिया है। इससे नाइट्रोस ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, यह एक ऐसी ग्रीन हाउस गैस है, जो कार्बन डाईआक्साइड के मुकाबले 300 गुणा अधिक नुकसानदायक है। 1961 के मुकाबले अब जमीन से नाइट्रोस ऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग दोगुना वृद्धि हो चुकी है, जो हर साल लगभग 3 मेगाटन कृषि भूमि की मिट्टी में मिल रहा है। आईपीसीसी ने मिट्टी में खराब नाइट्रोजन के इस्तेमाल की ओर इशारा किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र में सुधार करने के नाम पर जिन तकनीकों का सहारा लिया गया, उससे हालात सुधरने की बजाय बिगड़े हैं, खासकर उससे जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ा है। रिपोर्ट में विकासशील देशों में छोटी जोत को कृषि क्षेत्र के लिए चुनौती बताया गया है।