हिमालय हो या मैदानी हिस्से हर जगह धरती गरम हो रही है। सतह का तापमान बढ़ रहा है और सर्दी की अवधि और असर में कमी आ रही है। अगले 20 से 30 बरस यानी 2050 के आस-पास यह जलवायु स्थितियां और ज्यादा गंभीर हो सकती हैं। न सिर्फ चरम तापमान और वर्षा वाली बाढ़ की आफत बढ़ सकती है बल्कि सर्दी और कोहरे में बड़ी कमी आ सकती है।
इतना ही नहीं समुद्रों के भीतर वनस्पतियों से मिलने वाला ऑक्सीजन भी कम होता जा रहा है क्योंकि वहां अम्लीयता बढ़ रही है। वातावरणीय कॉर्बन डाई ऑक्साइड के सतह पर बढ़ने की प्रबल परिस्थितियां बन रही हैं।
यह अनुमान जलवायु परिवर्तन के अंतरसरकारी समूह (आईपीसीसी) के वैज्ञानिकों ने अपनी छठवे आकलन रिपोर्ट में लगाया है।
आईपीसीसी संयुक्त राष्ट्र के जलवायु वैज्ञानिकों का एक अंग है। जलवायु वैज्ञानिक समूह ने चेताया है कि दुनिया में इस वक्त कार्बन डाई ऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों का जैसा उत्सर्जन जारी है। यदि इस परिस्थिति के हिसाब से या अगले 20 से 30 बरस के बीच वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस सीमा को पार कर जाता है तब ऐसी परिस्थितियां रह सकती हैं।
वैज्ञानिकों ने पहले ही यह अनुमान लगाया था कि 21वीं सदी में वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर सकता है। मौजूदा उत्सर्जन स्थितियों के आधार पर ऐसा होने का आसार 2040 तक है।
जलवायु परिवर्तन की वैश्विक अवधारणा अब क्षेत्रीय स्तर पर पहुंच चुकी है। पहली बार वैज्ञानिकों ने क्षेत्रीय जलवायु को भी अपनी रिपोर्ट में शामिल किया है। क्षेत्रीय स्तर पर महसूस किए जाने वाले जलवायु दुष्प्रभाव भी सच्चे हैं।
ऊपर चित्र में आप देख सकते हैं कि 2050 तक वैज्ञानिकों ने सात प्रमुख व्यापक जलवायु चालकों (सीआईडी) के तहत यह उच्च संभावना, मध्यम संभावना के साथ बढ़त और कमी का अनुमान पेश किया है। इनके रंगों के आधार पर इनकी संभावनाएं व्यक्त की गई हैं।
इस आधार पर देखें तो हीट एंड कोल्ड श्रेणी में सतह की गर्मी और चरम तापमान के बढ़ने का अनुमान सबसे ज्यादा लगाया गया है। जबकि ठंड और कोहरे में बड़ी कमी का आसार जताया गया है। इसी तरह वेट एंड ड्राई श्रेणी में भारी वर्षा और वर्षा वाली बाढ़ की प्रबल संभावना है जबकि मौसमी आग लगने की घटना का भी मध्यम अनुमान है।
अन्य श्रेणी में सतह पर वातावरणीय सीओटू के बढ़ने का सबसे ज्यादा अनुमान जताया गया है। इसके अलावा तटीय इलाकों में समुद्रों के गर्म होने, बाढ़ आने की घटनाओंं में वृद्धि को भी आंका गया है।
आईपीसीसी की यह रिपोर्ट 1990 के बाद से छठवी है और 2013 के बाद से पहली।
वैज्ञानिक समूह ने सीधा और सरल संदेश दिया है कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन चरम घटनाओं, लू और भारी वर्षा व सूखे का कारक है। यदि चीजें नहीं संभली तो यह और तेज व गंभीर होने जा रहा है।