अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की राय: जलवायु दायित्वों पर स्पष्टता और कानूनी परिणाम
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की राय ने जलवायु दायित्वों पर स्पष्टता प्रदान की है, जिससे राज्यों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत गंभीर नुकसान रोकने की जिम्मेदारी समझने में मदद मिलती है। यह राय जलवायु और पर्यावरण कानून के बीच के बिखराव को खत्म करती है और राज्यों को मौजूदा संधियों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की परामर्शीय राय राज्यों की जलवायु प्रणाली को गंभीर नुकसान से बचाने की जिम्मेदारी पर अंतरराष्ट्रीय कानून की बाध्यता का प्रामाणिक स्पष्टीकरण देती है। यह बताती है कि अगर राज्य इन दायित्वों का उल्लंघन करते हैं तो इसके कानूनी परिणाम क्या होंगे। इस राय ने अंतरराष्ट्रीय जलवायु कानून और पर्यावरण कानून के बीच मौजूद बिखराव को खत्म करते हुए स्पष्ट किया है कि राज्यों को मौजूदा अंतरराष्ट्रीय जलवायु संधियों के साथ-साथ अन्य पर्यावरणीय संधियों का भी पालन करना होगा। न्यायालय ने एक कदम आगे बढ़कर यह भी कहा कि प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत गंभीर नुकसान रोकने की जिम्मेदारी और सहयोग की बाध्यता मौजूद है। यह राज्यों की जिम्मेदारियों को समझने के लिए एक समग्र और एकीकृत कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
परामर्शीय राय राज्यों के विवेक और उसकी सीमाओं पर भी विचार करती है। मिसाल के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर तय योगदानों (एनडीसी) को लागू करने और नए जीवाश्म ईंधन लाइसेंस देने के फैसलों में विचार करने की तरफ प्रेरित करती है। कुछ हद तक यह राय घरेलू जलवायु कानून की दिशा तय करने में मदद करती है ताकि राज्य अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा कर सकें। यह मार्गदर्शन स्पष्ट और विशिष्ट है, जो दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय जलवायु कानून से निकले घरेलू कानूनी प्रावधान कैसे दिख सकते हैं।
इस राय ने राज्यों द्वारा दायित्वों के उल्लंघन के परिणामों को अत्यधिक स्पष्टता के साथ सामने रखा है। इसमें पहली बार यह भी माना गया है कि हर्जाने के दावे एक आवश्यक कानूनी उपाय का हिस्सा हैं जो उन राज्यों के लिए उपलब्ध हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय गलत कामों से नुकसान हुआ है।
इस राय का असर अंतरराष्ट्रीय जलवायु कानून बनाने और लागू करने की प्रक्रिया में अलग -अलग क्षेत्रों में दिखाई देगा। यह जलवायु कूटनीति और वार्ताओं को भी गहरे तौर पर प्रभावित कर सकती है क्योंकि इसमें यह बताया गया है कि शमन के लक्ष्यों को कैसे स्वीकार किया जाए, बाध्यकारी कानूनी दायित्वों की प्रकृति क्या है और अगर देश किसी संधि से बाहर हो जाते हैं तो प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून का सहारा कैसे लिया जा सकता है।
यह राय विशेष रूप से सबसे कम विकसित देशों और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों के लिए एक मजबूत और प्रामाणिक आधार देती है ताकि वे शमन के उच्च लक्ष्यों के लिए जोर दे सकें।
(लेखिका, पर्यावरण कानून और न्याय विषय की शोधकर्ता हैं और अमेरिका के वासर कॉलेज में कार्यरत हैं)