एक तरफ देश में विभन्न तरीके के उत्सर्जन से वातवरण में कार्बन कणों की बढ़ोत्तरी हो रही है वहीं इसकी कटौती को लेकर वानिकी के प्रति संजीदगी नहीं दिखाई दे रही है। धीमी गति से हो रहे वनीकरण के कारण भारत अभीष्ट निर्धारित राष्ट्रीय योगदान (आईएनडीसी) के तहत तय किए गए अतिरिक्त कार्बन कटौती लक्ष्य से चूक सकता है। यह लक्ष्य 2015 में पेरिस समझौते में तय किया गया था। देश में 2030 तक जंगल का दायरा और पेड़ों की संख्या बढ़ाकर वातावरण से 2.5 से 3 अरब टन अतिरिक्त कार्बन कटौती का लक्ष्य रखा गया था।
केंद्र के वन सहायक महानिदेशक सैबाल दासगुप्ता ने कहा कि देश में वनीकरण की मौजूदा दर के हिसाब से सालाना 3.5 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड की कटौती हो रही है। यह दर तय लक्ष्य को हासिल करने के लिए काफी कम है। ऐसे में 2030 तक 2.5 से 3 अरब टन तक कार्बन कटौती का अतिरिक्त लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। विज्ञान और तकनीकी, पर्यावरण और वानिकी की स्थायी संसदीय समिति की ओर से 12 फरवरी, 2019 को वनों की दशा शीर्षक वाली रिपोर्ट जारी की गई थी। इसमें कहा गया था कि देश में कई वानिकी कार्यक्रम जैसे हरित भारत मिशन (जीआईएम) और राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (एनएपी) के पास पर्याप्त फंड नहीं है। इसके अलावा एनएपी के तहत वानिकी की प्रगति में गिरावट भी आई है। आंकड़ों के मुताबिक 2013-14 में 80,583 हेक्टेयर में वानिकी थी जो कि 2015-16 में घटकर 35,986 हेक्टेयर रह गई है। वहीं, इन कार्यक्रमों के तहत क्या वास्तविक प्रगति हो रही है इसका भी कोई अध्ययन हाल-फिलहाल नहीं किया गया है।
स्थायी समिति की वनों की दशा वाली रिपोर्ट में यह सुझाव भी दिया गया है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को राष्ट्रीय वानिकी कार्यक्रम और हरित भारत मिशन के प्रभाव और क्रियान्वयन का अध्ययन करना चाहिए। ताकि यह स्पष्ट तौर पर पता चले कि इन वानिकी कार्यक्रमों के तहत वनों की स्थिति में कितना वास्तविक सुधार हुआ है। इसके बाद ही नई रणनीति तैयार की जा सकती है। केंद्र के सहायक वन महानिदेशक सैबाल दासगुप्ता ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक कार्यशाला के दौरान यह भी कहा कि वानिकी को बढ़ाने के साथ ही जमीन की खराब होती गुणवत्ता पर भी रोक लगाना होगा। खासतौर से खुले जंगल और वन-झाड़ियों को गुणवत्ता पूर्ण बनाना होगा। तभी कार्बन कटौती के बड़े लक्ष्य के बारे में सोचा जा सकता है।