जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2021 में भारत एक पायदान फिसला

क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स में भारत को इस बार अक्षय ऊर्जा श्रेणी के तहत 57 में से (7.89 अंकों के साथ) 27 वें स्थान पर रखा गया है, पिछले साल देश 26 वें स्थान पर था
Solar Power Plant Telangana. Photo: Wikimedia Commons
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नवीनतम वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स) में भारत लगातार दूसरे वर्ष शीर्ष 10 में बना हुआ है, देश ने 100 में से 63.98 अंक प्राप्त किए। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अक्षय ऊर्जा पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, ताकि जलवायु परिवर्तन को कम करने तथा इससे निपटने की रणनीति के रूप में इसका उपयोग किया जा सकें।

शीर्ष दस में पहला, दूसरा और तीसरा स्थान पाने में कोई भी देश कामयाब नहीं रहा। चौथे पर स्वीडन, पांचवें पर यूके, छठे पर डेनमार्क, सातवें पर मोरक्को, आठवें पर नॉर्वे, नौवे पर चिली रहा। हालांकि भारत 2019-20 में नौवें स्थान से इस साल एक स्थान नीचे खिसक गया है, लेकिन देश ने जलवायु संरक्षण की दिशा में 2014 में 31वें स्थान से अपनी रैंकिंग में लगातार सुधार किया है।

सूचकांक के अनुसार  किसी भी देश ने ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने के 2015 पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बहुत कम प्रयास किए। छठवें जी20 देशों का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं है, इसलिए इन्हें सूचकांक में कम प्रदर्शन करने वालों में स्थान दिया गया। ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का सबसे बड़ा वर्तमान उत्सर्जक चीन 33 वें स्थान पर है, जबकि सबसे बड़ा ऐतिहासिक प्रदूषक अमेरिका सूची में 61वें स्थान के साथ सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश है।

57 देशों और यूरोपीय संघ के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए चार श्रेणियों में सूची तैयार की गई है, जिनमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (40 फीसदी), अक्षय ऊर्जा (20 फीसदी), ऊर्जा उपयोग (20 फीसदी) और जलवायु नीति (20 फीसदी) शामिल हैं। ये 57 देश और यूरोपीय संघ सामूहिक रूप से लगभग 90 फीसदी वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।

क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स (सीसीपीआई) को क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क (सीएएन इंटरनेशनल) के साथ स्वयंसेवी संस्था जर्मनवॉच और न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट, जर्मनी द्वारा विकसित किया गया है। यह अंतर्राष्ट्रीय जलवायु राजनीति में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है और यह जलवायु संरक्षण प्रयासों और हर एक देश द्वारा की गई प्रगति की तुलना करने में मदद करता है।

चूंकि ऊर्जा क्षेत्र किसी देश के कार्बन उत्सर्जन में बहुत अहम भूमिका निभाता है, इसलिए 'अक्षय ऊर्जा' रेटिंग के परिणाम बताते हैं कि अक्षय ऊर्जा के उपयोग के माध्यम से उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। भारत को इस बार अक्षय ऊर्जा श्रेणी के तहत 57 में से (7.89 अंकों) 27 वें स्थान पर रखा गया है। पिछले साल देश 26 वें स्थान पर था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के लिए पार्टियों के 26 वें सम्मेलन के स्थगित होने के बावजूद जलवायु नीति पर राजनीति ने जोर पकड़ा है, क्योंकि कई देशों ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को बढ़ाया है।

जलवायु एक्शन नेटवर्क की वैश्विक ऊर्जा नीतियों के वरिष्ठ सलाहकार स्टीफ़न सिंगर ने अमेरिका, रूस, सऊदी अरब और ऑस्ट्रेलिया जैसे सबसे बड़े जीवाश्म ईंधन के निर्यात और उत्पादक देशों का हवाला देते हुए कहा वे सबसे अधिक कार्बन प्रदूषक और ऊर्जा का उपयोग करने वालों में से हैं। उनमें से किसी के पास कार्बन प्रदूषण को कम करने के लिए कोई उपयोगी जलवायु नीति नहीं है।  

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