भारत सरकार के राष्ट्रीय तटीय मिशन को विश्व बैंक ने पैसा देने से इंकार कर दिया तो सरकार ने इसके बजट में भारी कटौती कर दी और मिशन को 'अधर' में छोड़ दिया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन पर बनी विभाग संबंधित संसदीय समिति ने इस पर एतराज जताया है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मांग अनुदान (2023-24) को लेकर सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में संसदीय समिति ने कहा है, " संसदीय समिति मंत्रालय की कमियों को उजागर करने के लिए विवश है, जैसे कि मंत्रालय एक बाहरी एजेंसी से राष्ट्रीय तटीय मिशन के तहत वित्तीय संसाधनों पर निर्भर था। लेकिन एजेंसी द्वारा इनकार करने से मंत्रालय की एक बड़ी पहल के कार्यान्वयन को अधर में छोड़ दिया गया है। यदि वित्तीय संसाधन समय पर उपलब्ध नहीं कराए गए तो देश की विशाल तटरेखा, इस तट पर निर्भर आबादी और नाजुक तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को खामियाजा भुगतना पड़ेगा।"
संसदीय समिति ने मंत्रालय से सिफारिश की है कि वह या तो वित्त मंत्रालय के माध्यम से या अन्य एजेंसियों से संपर्क कर तटीय मिशन के लिए कोष का इंतजाम करे।
रिपोर्ट के मुताबिक संसदीय समिति ने नोट किया कि राष्ट्रीय तटीय प्रबंधन कार्यक्रम के तहत बजट में बहुत भारी कटौती की गई है। वित्त वर्ष 2022-23 के अनुमानित बजट (बीई) में तटीय प्रबंधन कार्यक्रम के लिए 723 करोड़ रुपए का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन बाद में संशोधित अनुमान (आरई) में इसे मात्र 4 करोड़ रुपए कर दिया गया और अब नए बजट में 2023-24 के लिए केवल 12.50 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
जब इस बारे में संसदीय समिति ने मंत्रालय से धन में इतनी भारी कमी के कारणों के बारे में भी पूछा तो मंत्रालय ने बताया कि विश्व बैंक ने ईएपी-ईएनसीओआरई के अपने प्रोजेक्ट के तहत 723.60 करोड़ रुपए देने का वादा किया था, लेकिन बाद में विश्व बैंक ने अपने प्रशासनिक कारणों का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव को वापस ले लिया।
19 प्रतिशत घटाया बजट
संसदीय समिति ने 2022-23 के अनुमानित और संशोधित बजट में 19 प्रतिशत की कमी करने पर भी नाराजगी जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2022-23 के अनुमानित बजट में मंत्रालय को 3,030 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, लेकिन संशोधित अनुमानित बजट में इसे घटाकर 2,478 करोड़ रुपए कर दिया गया। हालांकि 2023-24 के अनुमानित बजट में 3,079.40 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया, जो 2022-23 के संशोधित अनुमान से अधिक है, लेकिन अनुमानित अनुमान के समान ही है।
तटीय क्षेत्रों में बढ़ रहा है खतरा
यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत के तटीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा असर देखने को मिल रहा है। भारत के पूर्वी और पश्चिमी तट का लगभग 2,318 किलोमीटर क्षेत्र कटाव का सामना कर रहा है।
अप्रैल 2022 में संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह ने बताया था कि सबसे अधिक कटाव का सामना पश्चिम बंगाल कर रहा है। यहां कुल 534.34 किमीमीटर के तटीय क्षेत्र में से 323.07 किलोमीटर का क्षेत्र कटाव से प्रभावित है। इसके बाद पुद्दुचेरी में 56.2 प्रतिशत तटीय क्षेत्र प्रभावित है। केरल में 46.4 (275.33 किलोमीटर) और तमिलनाडु में 42.7 प्रतिशत (422.94 किलोमीटर) क्षेत्र कटावग्रस्त है। ऐसे समय में तटीय मिशन जैसे कार्यक्रमों को बेहद अहम माना जा रहा है।