लॉकडाउन में भारत के कार्बन उत्सर्जन में दर्ज की गई 15.4 फीसदी की गिरावट

लॉकडाउन की वजह से दुनिया में कार्बन डाइऑक्साइट के स्तर में आई गिरावट ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े
लॉकडाउन के समय दिल्ली में सूनी पड़ी सड़कें, फोटो: विकास चौधरी
लॉकडाउन के समय दिल्ली में सूनी पड़ी सड़कें, फोटो: विकास चौधरी
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2020 की पहली छमाही में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भारी गिरावट देखने को मिली थी। पता चला है कि 2019 की तुलना में 2020 के पहले छह महीनों में कार्बन उत्सर्जन में 8.8 फीसदी की गिरावट आई थी। यदि जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से देखें तो यह बहुत अच्छी खबर है। शोध के अनुसार कोरोनावायरस और उससे जुड़े प्रतिबंधों के कारण ऐसा हुआ था। इन प्रतिबंधों ने अप्रैल 2020 तक करीब 390 करोड़ लोगों को घरों में रहने के लिए मजबूर कर दिया था। जिससे ऊर्जा उपयोग, परिवहन, उद्योगों और व्यापर पर व्यापक असर पड़ा था।

यदि भारत की बात करें तो 2019 की तुलना में 2020 में जनवरी से जून के बीच कार्बन उत्सर्जन में 15.4 फीसदी की गिरावट देखी गई थी। जिसका मतलब है कि इस अवधि के दौरान कार्बन उत्सर्जन में 205.2 मीट्रिक टन की गिरावट आई थी। लॉकडाउन की अवधि में कार्बन उत्सर्जन में सबसे बड़ी कमी अप्रैल में दर्ज की गई थी, जब उत्सर्जन में 44.2 फीसदी की गिरावट आ गई थी। इससे पहले फरवरी में इसमें 6.4 फीसदी की वृद्धि रिकॉर्ड की गई थी। बाद में मार्च के महीने में 16.9 फीसदी, अप्रैल मैं 44.2 फीसदी, मई में 27.6 फीसदी और जून में 15 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।

वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में दर्ज की गई 1550.5 मीट्रिक टन की कमी     

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस अवधि के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड में करीब 1550.5 मीट्रिक टन की कमी आई थी। यह कमी कितनी बड़ी है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि इतिहास में पहली बार  सीओ2 के उत्सर्जन में इतनी कमी देखी है। इससे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध, 1979 में तेल संकट और 2008 में आई आर्थिक मंदी के समय भी उत्सर्जन में इतनी ज्यादा कमी नहीं आई थी।

हालांकि जुलाई के बाद चीन और यूरोप में प्रतिबंधों पर ढील दे दी गई थी। इसके बावजूद दुनिया के कई अन्य देशों में लॉकडाउन और अन्य प्रतिबन्ध जारी रखे गए थे। शोधकर्ताओं ने उत्सर्जन में आई इस गिरावट के लिए औद्योगिक गतिविधियों, परिवहन और ऊर्जा उपयोग में आई कमी को जिम्मेवार माना है।

यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है। जिसे चीन, फ्रांस, जापान और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया है। वैज्ञानिकों ने इसके लिए कार्बन उत्सर्जन के रियल टाइम डाटा का उपयोग किया है। जिसमें कोविड-19 महामारी के समय लगाए गए प्रतिबंधों के पहले और बाद में इकट्ठे किए गए आंकड़ों से प्राप्त दैनिक, साप्ताहिक और मौसमी रुझानों का विश्लेषण किया है।

इससे पहले इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी द्वारा जनवरी से अप्रैल 2020 की अवधि के दौरान 2019 की तुलना में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 5 फीसदी की कमी का अनुमान लगाया था। यदि वैश्विक रूप से दैनिक कार्बन उत्सर्जन से जुड़े आंकड़ों के देखे तो अप्रैल 2020 में सबसे ज्यादा 16.9 फीसदी की गिरावट देखी गई थी।  

रिपोर्ट के अनुसार कार्बन उत्सर्जन में आई इस गिरावट के लिए मुख्य रूप से सड़क परिवहन जिम्मेदार था जिसकी वजह से उत्सर्जन में 613.3 मीट्रिक टन (40 फीसदी) की गिरावट आई थी। जबकि ऊर्जा क्षेत्र से 341.4 मीट्रिक टन (22 फीसदी), इंडस्ट्री से 263.5 मीट्रिक टन (17 फीसदी), विमान सेवाओं (घरेलु और अंतराष्ट्रीय) से 200.8 मीट्रिक टन (13 फीसदी), अंतराष्ट्रीय शिपिंग से 89.1 मीट्रिक टन (6 फीसदी) और आवासीय क्षेत्र से 42.5 मीट्रिक टन (3 फीसदी) की गिरावट आई थी।

हमारे आज पर निर्भर है आने वाला कल

हालांकि कार्बन उत्सर्जन में आई यह गिरावट लम्बे समय तक कायम नहीं रहेगी पर इसने एक बात तो स्पष्ट कर दी है कि यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं तो 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल तो है पर नामुमकिन नहीं है। अनुमान है कि यदि 2020 से 2030 तक हर साल कार्बन उत्सर्जन में 7.6 फीसदी की कटौती की जाए तो 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। इस महामारी ने हमें एक बार फिर से यह सोचने का मौका दिया है कि हमारा आनेवाला कल कैसा होगा यह हमारे आज किए गए प्रयासों पर निर्भर होगा। आज भी रिन्यूएबल एनर्जी, ग्रीन ट्रांसपोर्ट, जीवाश्म ईंधन में कटौती, उद्योगों के लिए कड़े नियम और अपनी दिनचर्या में बदलाव करके इन लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं। हमारे बच्चों का भविष्य हम पर निर्भर है और हमें तय करना है कि कल हम उन्हें कैसी धरती विरासत में देंगे।

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