विश्व की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाएं उस नए औद्योगिक युग में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की भरसक कोशिश कर रही हैं, जहां कार्बन रहित तकनीकों का बोलबाला होगा। हाल ही में स्ट्रेटेजिक परस्पेक्टिव नामक संगठन ने अपनी नई रिपोर्ट में यह बात कही है।
इस रिपोर्ट में अमेरिका, चीन, यूरोपियन यूनियन, भारत और जापान में कार्बन तटस्थता (न्यूट्रिलिटी) के क्षेत्र में हो रहे कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन किया है। मौजूदा समय में सभी देशों में अक्षय ऊर्जा, इलैक्ट्रिक वाहनों से लेकर ऐसी तकनीकों को अपनाया जा रहा है, जिससे ये देश भविष्य में कार्बन से नाता तोड़ ऊर्जा संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।
स्ट्रेटेजिक परस्पेक्टिव की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर लिंडा कल्चर के मुताबिक जीरो-कार्बन तकनीकों पर आधारित एक नए औद्योगिक युग की शुरूआत हो रही है और चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश इस बढ़ते वैश्विक बाजार पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। आने वाला समय पूरी तरह से ऐसे औद्योगिक क्षेत्रों का होगा, जिसमें जीरो-कार्बन तकनीकों पर ही जोर दिया जाएगा। वहीं जो देश ऐसा नहीं कर पाएंगे, वो इस रेस में पीछे रह जाएंगे। गौरतलब है कि यह पहली बार है जब मुख्य अर्थव्यवस्थाओं से मिले आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है।
स्ट्रेटेजिक परस्पेक्टिव के निदेशक नील मकारॉफ के मुताबिक नेट-जीरो के इस बदलाव में जो देश पीछे रह जाएंगे, वे औद्योगिक विकास में भी पिछड़ जाएंगे, क्योंकि आने वाले समय में गैस, तेल और कोयले की बढ़ती कीमतों के साथ इस रेस में बने रहना मुश्किल होगा।
भारत में ऊर्जा संरक्षण
भारत में ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम हो रहा है और हर औद्योगिक क्षेत्र इस ओर प्रगति कर रहा है। बिजली उत्पादन की बात करें तो, भारत में सौर और पवन ऊर्जा से पैदा होने वाली बिजली का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 2017 से अब तक, यानी सिर्फ छह वर्षों के अंतराल में ही यह उत्पादन करीब दोगुना हो चुका है। इसी तरह भारत में इलैक्ट्रिक वाहनों का बाजार जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, उसको देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि 2030 तक इसमें भी 49 फीसदी तक का इजाफा होगा।
2022 से 2030 तक इस क्षेत्र में करीब पांच करोड़ रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इलैक्ट्रिक टू-व्हीलर के वैश्विक बाजार में भी भारत का बहुत बड़ा योगदान है। 2022 में भारत में करीब 40 लाख इलैक्ट्रिक टू-व्हीलर थे, जिनकी संख्या 2024 तक बढ़कर 60 लाख तक पहुंच सकती है।
आईआईएम से जुड़ी प्रोफेसर रुना सरकार का इस बारे में कहना है कि "अगर हम भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो यह जरूरी है कि भारत निवेश, अनुसंधान व विकास के रास्ते नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करे। इससे भारत के लिए देश में तकनीक और निवेश, दोनों को आकर्षित करने का रास्ता खुलेगा।"
रिपोर्ट के मुताबिक भारत उन गिने-चुने देशों में से है जो अपने ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ यानी एनडीसी के टारगेट को पूरा करने के काफी करीब है। हालांकि 2050 तक नेट जीरो एमिशन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को 12.7 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी लेकिन जिस तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, उसे देखते हुए यह लक्ष्य असंभव नहीं लगता। अगर विकसित राष्ट्र इसमें भारत का साथ दें तो निश्चित तौर पर यह लक्ष्य समय से पहले ही हासिल किया जा सकता है।
रिपोर्ट के बारे में क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशिका आरती खोसला का कहना है, "भारत में जी20 के आयोजन से ठीक पहले आई यह रिपोर्ट सस्टेनेबिलिटी और जीरो कार्बन तकनीक पर किया गया एक विस्तृत अध्ययन है। भारत जैसे देश में जहां इतनी तेजी से औद्योगिक विकास हो रहा है, पर्यावरण सुरक्षा और ऊर्जा संरक्षण की दिशा में उठाए जाने वाले कदम महत्वपूर्ण व प्रशंसनीय हैं। भारत के राज्यों में इसके लिए नई नीतियां लागू की जा रही हैं। इलैक्ट्रिक वाहन के प्रयोग के लिए सरकारें प्रोत्साहित कर रही हैं, अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाया दिया जा रहा है, यह सब इस बात का सबूत है कि भारत इस बारे में बेहद संजीदा है।
भारत जैसे देश में जहां अगले कुछ ही दशकों में औद्योगिक विकास बहुत तेजी से बड़े पैमाने पर पैर पसारेगा, ऐसे में यह जरूरी है कि नई खोज, अनुसंधान व विकास को केंद्र में रखकर काम किया जाए और देश में ऐसा वातावरण तैयार किया जाए जिससे दुनिया के अन्य देश भारत में निवेश के लिए आगे आएं और हमारी चीन पर निर्भरता कम हो।
गौरतलब है कि दिल्ली में आयोजित हो रहे जी-20 सम्मेलन में भारत वैश्विक हरित विकास समझौते पर जोर दे सकता है। इस समझौते में पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवन शैली, सर्कुलर इकोनॉमी, सतत विकास के लक्ष्यों की ओर प्रगति में तेजी, ऊर्जा परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा के साथ ही पर्यावरण के लिए वित्त पोषण जैसे मुद्दों पर जोर दिया जा सकता है। भारत के लिए जी-20 की अध्यक्षता वह अवसर है, जब वो खुद को भविष्य में आर्थिक महाशक्ति के रूप में प्रस्तुत कर सकता है। बता दें कि 2023 भारत, ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी 3.7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है।