
भारत में पर्यावरण की जो दशा है उसकी स्थिति हाल ही में जारी एनवायरनमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स 2020 से साफ हो जाती है| इस इंडेक्स को येल और कोलंबिया यूनिवर्सिटी द्वारा जारी किया गया है| जिसमें 180 देशों को पर्यावरण के अलग-अलग संकेतकों के आधार पर रैंक किया गया है| इस इंडेक्स में भारत को 168वें स्थान पर रखा गया है| जोकि स्पष्ट तौर पर भारत में पर्यावरण की ख़राब दशा को प्रदर्शित करता है| इस इंडेक्स में भारत को उसकी पर्यावरण सम्बन्धी परफॉरमेंस के लिए 100 में से 27.6 अंक दिए गए हैं| जबकि इस इंडेक्स में 82.5 अंकों के साथ डेनमार्क पहले स्थान पर है| वहीं 2018 में भारत को 177वां स्थान मिला था| जब 30.57 अंक अर्जित किये थे| यह इंडेक्स पर्यावरण के 32 संकेतकों पर आधारित है जिसे 11 श्रेणियों में बांटा गया है| इन्हीं के आधार पर 180 देशों को उनकी परफॉरमेंस के लिए अंक दिए गए हैं|
इंडेक्स में भारत के साथ-साथ अन्य दक्षिण एशियाई देशों का प्रदर्शन भी कोई ख़ास अच्छा नहीं रहा| यदि भारत को देखें तो वो सिर्फ 11 देशों से आगे है| जिसमें बुरुंडी, हैती, चाड, सोलोमन आइलैंड, मेडागास्कर, गिनी, आइवरी कोस्ट, सिएरा लियोन, अफगानिस्तान, म्यांमार और लाइबेरिया शामिल हैं| जबकि दक्षिण एशिया में भारत अफगानिस्तान को छोड़कर अपने सभी पड़ोसियों से पीछे है| स्पष्ट तौर पर भारत को यदि पर्यावरण के क्षेत्र में अपने प्रदर्शन को सुधारना है तो उसे सभी मोर्चों पर दोगुनी मेहनत करने की जरुरत है| जिसके लिए हवा और पानी की गुणवत्ता, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है|
गौरतलब है कि इससे पहले दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गयी थी| स्टेट ऑफ इंडियास एनवायरनमेंट 2020 नामक इस रिपोर्ट में भी भारत के सतत विकास के लक्ष्यों में पिछड़ने पर चिंता जताई थी| इस रिपोर्ट के अनुसार अन्य दक्षिण एशियाई देशों की स्थिति को ख़राब बताया गया था|
भारत को पर्यावरण से जुड़े सभी प्रमुख पांच मापदंडों पर क्षेत्रीय औसत से भी कम अंक मिले हैं| जिसमें वायु गुणवत्ता, स्वच्छता और पेयजल, हैवी मेटल्स और अपशिष्ट प्रबंधन शामिल हैं। इससे पहले डाउन टू अर्थ द्वारा जारी रिपोर्ट में भी इन मुद्दों पर भारत के गिरते स्तर पर चिंता जताई थी| यही वजह है कि देश में इन मुद्दों पर गंभीरता से काम करने की जरुरत है|
इनके अलावा जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित मापदंडों पर भी भारत का प्रदर्शन कोई ख़ास अच्छा नहीं रहा था| यदि क्लाइमेट चेंज को देखें तो दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के बाद भारत का दूसरा स्थान था| इस इंडेक्स में पाकिस्तान ने क्लाइमेट चेंज में 50.6 आंक प्राप्त किये थे| साथ ही इस इंडेक्स में क्लाइमेट चेंज पर दस साल की तुलनात्मक प्रगति रिपोर्ट भी दिखाती है कि भारत जलवायु संबंधी मापदंडों पर पिछड़ रहा है।
इस इंडेक्स में जलवायु परिवर्तन का प्रदर्शन आठ संकेतकों पर आधारित है| जिसमें उत्सर्जन में हो रही वृद्धि दर; चार ग्रीनहाउस गैसों और एक प्रदूषक की वृद्धि दर; भूमि आच्छादन से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि दर; ग्रीनहाउस गैस की तीव्रता और वृद्धि दर; एवं प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन शामिल हैं| रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 10 सालों में ब्लैक कार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड और प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। जिसके कारण जलवायु परिवर्तन में इसका कुल स्कोर 2.9 अंक नीचे चला गया है।
जेच वेंडलिंग जोकि इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर भी हैं उन्होंने अपने इंटरव्यू में बताया कि “जिन देशों ने सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किये हैं उसमें उन देशों के सुशासन की भूमिका महत्वपूर्ण रही है| नीतियों के निर्माण में आम जान की भागीदारी, सावधानीपूर्वक बनाई गई रणनीति, लक्ष्यों और कार्यक्रमों पर खुली बहस, मीडिया और गैर-लाभकारी संस्थाओं की उपस्थिति और कानून का पालन ऐसे कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जिनके सहयोग से लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है।“
सीएसइ द्वारा जारी रिपोर्ट में भी सुशासन के महत्व पर बल दिया गया है| सीएसइ की महानिदेशक सुनीता नारायण के अनुसार, "यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि हमें विकास के लिए नए वायदे और नई दिशाओं की जरुरत पड़ेगी| लेकिन यदि हमारी शासन प्रणाली और प्रथाएं विफल हो रही हों और हमारे प्राकृतिक संसाधन खतरे में हो तो यह कभी नहीं हो पायेगा। सतत विकास के लिए पर्यावरण को साथ लेकर चलना जरुरी है| साथ ही संसाधनों का संरक्षण और उनका विवेकपूर्ण उपभोग भी जरुरी है|”