केरल ने पिछले आठ से नौ माह के दौरान मौसम के कई उतार-चढ़ाव देखें हैं । गत वर्ष अगस्त में केरल विनाशकारी बाढ़ का गवाह बना। ऐसी बाढ़ राज्य ने लगभग सौ साल बाद देखी। इसके बाद सूखा, फिर लू और अब वहां पानी संकट गहराया हुआ है। केरल की इन अतिशय मौसमी घटनाओं के कारणों की डाउन टू अर्थ ने विस्तृत पड़ताल की है। उसी पड़ताल के पहले भाग में स्काईमेट के उपाध्यक्ष महेश पालावत से बातचीत-
क्या केरल में पिछले आठ माह पहले आई बाढ़, फिर सूखा और अब हीटवेब (लू) की घटनाओं में कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन का असर दिखता है?
जवाब : जलवायु परिवर्तन का असर तो पूरी दुनिया पर पड़ ही रहा है। जैसे हर मौसम की प्रचंडकारी गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं, कहीं बहुत ज्यादा ठंड तो कहीं बहुत ज्यादा गर्मी। पिछले कई सालों में केरल में इतनी विनाशकारी बाढ़ नहीं आई थी। वहां लगातार मौसम में परिवर्तन हो रहा है। इसके अलावा वहां जो बांध वगैरह खोले गए वह भी एक मानवीय चूक थी। जब बांध लगातार भरते जा रहे थे तो भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया। अगर बांध के पानी को आहिस्ता-आहिस्ता छोड़ते तो इतनी दिक्कत नहीं आती। ज्यादा भरे हुए बांधों को एक साथ खोल दिया गया। इडुकी बांध खोले जाने के बाद जो बाढ़ आई, वह भी अपवाद थी।
जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर किस पर देखने में आ रहा है?
जवाब- घटनाओं की बात करें तो सबसे प्रमुख रूप से जलवायु परिवर्तन का असर मानसून में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। जहां ज्यादा बारिश होती थी, आज के समय में वे इलाके सूखा झेल रहे हैं। यह सिर्फ केरल की बात नहीं है। सिर्फ केरल ही नहीं पूरे उत्तर-पूर्व भारत में ज्यादा बारिश होती थी। यानी कि वहां सामान्य से ज्यादा बारिश होती थी। पिछले कुछ सालों से देख रहे हैं कि वहां भी बारिश धीरे-धीरे कम हो रही है। औसत बारिश नहीं हो पा रही है। चेरापूंजी जैसी जगह जहां दुनिया की सबसे ज्यादा बारिश होती है, वहां भी सूखे जैसे हालात बन रहे हैं। वहां भी पानी की कमी होनी शुरू हो गई है।
जलवायु परिवर्तन का असर बारिश के वितरण पर किस प्रकार से पड़ा है?
जवाब- जलवायु परिवर्तन का ही असर है कि बारिश का वितरण अब असमान हो रहा है। बरसात के दिन कम हो रहे हैं। मतलब यह कि पहले मानसून में जो बारिश के दिन होते थे, उनकी बारिश की मात्रा समान है, थोड़ा-बहुत फर्क आता है। लेकिन जो वितरण होता था, जैसे अगर 700 मिलीमीटर बारिश हुई तो वह 20 दिनों में होती थी। लेकिन अब उतनी ही बारिश 5-6 दिनों में हो जाती है। यानी प्रचंड बारिश ज्यादा होती है। यह भी तो जलवायु परिवर्तन ही है।
प्रचंड बारिश के कारण सबसे अधिक नुकसान किस क्षेत्र को उठाना पड़ रहा है?
जवाब- प्रचंड बारिश के कारण वाटर हार्वेस्टिंग यानी जल संरक्षण नहीं हो पाता है। प्रचंड बारिश का पानी बर्बाद हो जाता है और खेती के लिए इस्तेमाल नहीं हो पाता है। यानी, जो बारिश धीरे-धीरे होगी उसे संभाला जा सकता है, संरक्षित किया जा सकता है। लेकिन अचानक आई तेज बारिश बाढ़ की तरह होती है। मात्रा उतनी ही होने के बावजूद खेती और अन्य कामों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
वर्तमान में केरल में बारिश की क्या स्थिति है?
जवाब- इस समय भी देखें तो केरल में 1 मार्च से लेकर 8 अप्रैल तक 65 फीसद बारिश की कमी दर्ज की गई है। 2018 के मानसून में 23 फीसद ज्यादा बारिश हुई थी। 2017 में 9 फीसद कम बारिश हुई थी। अभी इस क्षेत्र में मानसून पूर्व की गतिविधियां काफी कम हो रही हैं। ऊपर से गर्मी बढ़ती जा रही है। लू के कारण इस समय तापमान औसत से ज्यादा है। वहीं उत्तर-पश्चिमी भारत में मानसून पूर्व की गतिविधियां शुरू हो गई हैं। राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में तो लू है तो कहीं सामान्य से ज्यादा तापमान है।