उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को बुझाने का प्रयास करते लोग। फाइल फोटो: विकास चौधरी
उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को बुझाने का प्रयास करते लोग। फाइल फोटो: विकास चौधरी

तापमान बढ़ने से हो रहा है जंगलों को नुकसान: शोध

पहले से ही गर्मियों के दौरान, व्यापक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़ की प्रजातियों में गंभीर सूखे से संबंधित तनाव के लक्षण देखे गए थे
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जब से जलवायु के आकड़े रिकॉर्ड होने शुरू हुए है, तब से 2018 के बराबर गर्म और सूखा साल कोई नहीं रहा। दुनिया भर के जंगलों के साथ-साथ मध्य यूरोपीय जंगलों में सूखे के गंभीर संकेत दिखाए दिए। 2018 की इस परिस्थिति के कारण आने वाले कई वर्षों तक पेड़ों को नुकसान होना जारी रहेगा।

इससे पहले, 2003 को जलवायु रिकॉर्डिंग की शुरुआत के बाद से सबसे शुष्क और सबसे गर्म वर्ष माना जाता था। इस रिकॉर्ड को अब दरकिनार किया जा सकता है। जर्मनी के बावरिया में जूलियस-मैक्सिमिलियंस यूनिवर्सिटी (जेएमयू) वुर्ज़बर्ग के प्रोफेसर बर्नहार्ड शल्द कहते हैं जलवायु रिकॉर्ड के अनुसार पिछले पांच साल मध्य यूरोप में सबसे गर्म थे, और 2018 इनमें सबसे चरम था। 

शोध के अनुसार अप्रैल से अक्टूबर 2018 तक का औसत तापमान सामान्य से 3.3 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जबकि यह 2003 की तुलना में 1.2 डिग्री अधिक था। तापमान का जर्मनी, ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड में जंगलों पर नाटकीय प्रभाव पड़ा। शोध जर्नल बेसिक एंड एप्लाइड इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। 

पानी का पेड़ों के भागों में पहुंच पाना

जेएमयू के प्रोफेसर कहते हैं ऐसे तापमान से हमारी मध्य यूरोपीय वनस्पति को काफी नुकसान हुआ। जर्मनी और स्विट्जरलैंड के अन्य शोधकर्ताओं के साथ, पादप पारिस्थितिकीविदों ने पेड़ों के मापों की भी पुष्टि की। जब तापमान बहुत बढ़ जाता है, तो पेड़ इसकी सतह के द्वारा बहुत अधिक पानी को गंवा देते हैं। नतीजतन, लकड़ी के संवाहक ऊतक में नकारात्मक तनाव बहुत अधिक हो जाता है। जिससे अंततः पानी के पेड़ की साखाओं में जाना बाधित हो जाता है।

पहले से ही गर्मियों के दौरान, व्यापक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़ की प्रजातियों में गंभीर सूखे से संबंधित तनाव के लक्षण देखे गए थे। जिसमें व्यापक रूप से पत्तियों ने अपना रंग खो दिया और समय से पहले उनका रंग बदल गया।

स्प्रूस और बीच के पेड़ सबसे अधिक प्रभावित हुए

इसके अलावा, 2019 में अप्रत्याशित रूप से गंभीर सूखे का प्रभाव का पता चला था: कई पेड़ों पर पत्तियां नहीं उगी और ये पेड़ सूख गए थे। अन्य जो 2018 की घटना से बच गए थे वे 2019 में सूखे का सामना करने में सक्षम नहीं थे। ये पेड़ बीटल या कवक के संक्रमण के लिए तेजी से अतिसंवेदनशील हो गए थे।

स्कूलड़ बताते है कि स्प्रूस सबसे गंभीर रूप से प्रभावित था, क्योंकि यह पहाड़ी प्रजाति मध्य यूरोप में अपने प्राकृतिक आवास के बाहर लगाई गई है।

वुर्जबर्ग के प्रोफेसर ने बताया कि वसंत में इस साल की जलवायु स्थिति फिर से बहुत गर्म और बहुत सूखी शुरू हुई। जून 2020 में सौभाग्य से अधिक मात्रा में वर्षा हुई। इसने विपरीत स्थिति को कम कर दिया है, लेकिन अभी भी गहरी मिट्टी की परतों में पानी की कमी पूरी नहीं हुई। इसलिए पिछले प्रभावों के कारण आने वाले वर्षों में प्रभावित पेड़ों का नुकसान होना जारी रहेगा।

सूखा-तनाव प्रतिरोधी पेड़ की प्रजातियों के साथ-साथ मिश्रित जंगलों की जरूरत है

जेएमयू के वैज्ञानिक कहते हैं तो क्या करना चाहिए? मुझे लगता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण निकट भविष्य में अत्यधिक सूखा और गर्मी की घटनाएं बढ़ जाएंगी। कम से कम स्थानीय स्तर पर, जंगलों का पुनर्गठन करना होगा। वृक्षों की प्रजातियों के साथ मिश्रित वन जो हो सके तो सूखा-प्रतिरोधी हो, ऐसे वनों का वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।

उपग्रह से पृथ्वी की निगरानी के आंकड़े से जंगल की निगरानी

इस वन रूपांतरण को अधिक से अधिक प्रबंधित करने के लिए अधिक आंकड़ों की आवश्यकता है। हालांकि हमारे जंगलों का नुकसान होना तय है, अधिक अस्थायी और स्थानिक तरीके से उन्हें निर्धारित करना मुश्किल है।

इसलिए, जमीनी उपायों के लिए रिमोट मॉनिटरिंग सिस्टम की आवश्यकता होती है। उच्च अस्थायी और स्थानीय आधार पर, रिमोट सेंसर के द्वारा या उपग्रह से पृथ्वी की निगरानी के आंकड़े हमें हर एक पेड़ की स्थिति के बारे में पता करने में मदद कर सकते हैं। अमेरिका में, इस तरह के सिस्टम  क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान में मध्य यूरोप में इनकी कमी है। जमीन से बड़े पैमाने पर वनों के स्वास्थ्य की निगरानी करना संभव नहीं है।

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