एक नए अध्ययन ने जलवायु में बदलाव के लिए लोगों के जिम्मवार होने के सबूत दिए हैं, साथ ही यह भी दिखाया है कि मानवजनित गतिविधियों ने पृथ्वी के वायुमंडल की तापमान संरचना को बदल दिया है।
वैज्ञानिकों ने जलवायु पर मानवजनित प्रभावों के सबूत के रूप में क्षोभमंडलीय और निचले समतापमंडलीय तापमान के बीच होने वाले अंतर को उजागर किया है।
अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों ने कहा कि यह सबूत या फिंगरप्रिंट है, हालांकि यह पृथ्वी की सतह से 25 से 50 किलोमीटर ऊपर, मध्य से ऊपरी समताप मंडल तक की जानकारी है, जिससे मानवजनित बदलाव की पहचान करने की क्षमता में सुधार होता है।
अध्ययन में कहा गया है, यह पहचान इसलिए अहम होती है क्योंकि मध्य से ऊपरी समताप मंडल में मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) में वृद्धि, प्राकृतिक आंतरिक परिवर्तनशीलता के कम समय में शोर के स्तर और अलग-अलग सिग्नल तथा शोर पैटर्न के कारण एक बड़ा शीतलन प्रभाव छोड़ती है।
क्षोभमंडल के शोर में दिन-प्रतिदिन के मौसम, अल नीनो और ला नीना से बारिश में होने वाले अंतर और साल भर में होने वाला बदलाव तथा जलवायु में लंबे समय के तक होने वाला प्राकृतिक उतार-चढ़ाव शामिल हो सकते हैं। ऊपरी समताप मंडल में, लगातार बदलाव का शोर कम होता है, मानवजनित जलवायु परिवर्तन का संकेत बड़ा होता है, इसलिए इस संकेत को और अधिक आसानी से पहचाना जा सकता है।
अध्ययन में कहा गया है कि लंबे समय के तापमान रिकॉर्ड और बेहतर जलवायु मॉडल के साथ ऊपरी समताप मंडल में सबूतों की गहनता से जांच करने का मतलब है कि अब प्राकृतिक कारणों से पृथ्वी के वायुमंडल की तापीय संरचना की व्याख्या करना लगभग असंभव है।
मैसाचुसेट्स, यूएस में वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूएचओआई) में भौतिक समुद्र विज्ञान विभाग के एक सहायक वैज्ञानिक तथा प्रमुख अध्ययनकर्ता बेंजामिन सैंटर के अनुसार, यह सीओ2 बढ़ने से जुड़े मानवजनित कारण हैं जो जलवायु परिवर्तन का सबसे स्पष्ट प्रमाण है।
30 से अधिक वर्षों तक जलवायु फिंगरप्रिंटिंग पर काम करने वाले सैंटर ने कहा, यह शोध गलत दावों को खारिज करता है, हो हमें बताते हैं कि, जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह सब प्राकृतिक है।
यह परत, मध्य से ऊपरी समताप मंडल तक, जिसका पहले के अध्ययनों में विस्तार से अध्ययन नहीं किया गया था, अब बेहतर सिमुलेशन और उपग्रह के आंकड़ों के कारण इसका बेहतर अध्ययन किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि, मध्य और ऊपरी समताप मंडल में मानवजनित जलवायु परिवर्तन पैटर्न की खोज करने वाला यह पहला शोध है।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय विज्ञान विभाग के प्रोफेसर, सह-अध्ययनकर्ता कियांग फू ने कहा, ये अनोखे फिंगरप्रिंट 10 से 15 वर्ष में सीओ 2 के कारण जलवायु परिवर्तन पर मानवजनित प्रभाव का पता लगा सकते हैं।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पर्यावरण अध्ययन के मार्टिन प्रोफेसर सुसान सोलोमन ने कहा, दुनिया जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है, इसलिए कार्बन डाइऑक्साइड की भूमिका के बारे में जितना संभव हो उतना आश्वस्त होना जरूरी है।
सोलोमन ने कहा, हमारे अवलोकन न केवल एक गर्म होते क्षोभमंडल को दिखाते हैं, बल्कि ऊपरी समताप मंडल में भीषण ठंड के अनोखे सबूत देते हैं, जो जलवायु परिवर्तन में कार्बन डाइऑक्साइड की प्रमुख भूमिका को भी दर्शाते हैं।
सैंटर ने कहा कि, अध्ययन से पता चलता है कि वास्तविक दुनिया एक तरह से बदल गई है जिसे केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं समझाया जा सकता है। यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।