प्रचंड गर्मी और कड़कड़ाती ठंड की लपेट में आने से दुनियाभर के शहर प्रभावित हो रहे हैं और इसके चलते जंगलों में आग लगना, सूखा पड़ना भारत, चीन, यूरोप, उत्तरी अमेरिका के लिए अब सामान्य बात होते जा रही है। लेकिन इस तरह के मौसम के कारण वैश्विक स्तर पर इस गर्मी ने जलवायु परिवर्तन से निपटने की तात्कालिकता को रेखांकित किया है।
जलवायु परिवर्तन के लिए नौ अगस्त यानी सोमवार को इंटर-गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट “क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस” शीर्षक से जारी हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिर्वन के लिए मानवीय गतिविधियां और उनका प्रभाव प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 1750 के बाद से लगातार मिश्रित ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) की सांद्रता (कंस्ट्रेशन) में वृद्धि देखी गई है। और इसके पीछे कारण स्पष्ट रूप से मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट कहती है कि 2011 के बाद से वातावरण में यह वृद्धि लगातार जारी है। ऐसे में कार्बन डाइऑक्साइड की सालाना औसत दर 410 पीपीएम तक पहुंच गई। जबकि दूसरी ओर पिछले छह दश्क के दौरान भूमि और महासागर पर मानवीय गतिविधियों के कारण सालाना 56 प्रतिशत की दर से कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन हुआ है।
बीते चार दशकों से सदी के किसी भी दशक (1850 के बाद के दशक) की तुलना में लगातार वैश्विक तापमान में वृद्धि देखी गई है। 21 वीं सदी के पहले दो दशकों (2001 से 2020) में 1850-1909 के मुकाबले तापमान में 0.99 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि देखी गई। वहीं वैश्विक तापमान में 2011-2020 के बीच 1.09 डिग्री सेल्सियस वृद्धि देखी गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 2003-2012 के बीच वातावरण +0.19 डिग्री सेल्सियस गर्म रहा। इसके अतिरिक्त नए आंकड़ों के अनुमान के अनुसार यह वृद्धि लगभग 0.1 डिग्री सेल्सियस रही। कुल मिलाकर मानवीय गतिविधियों के कारण 1850-1900 से 2010-2019 के बीच वैश्विक तापमान में वृद्धि 0.8 से बढ़कर 1.3 डिग्री सेल्सियस हो गई।
संभावना व्यक्त की गई है कि इसमें मिश्रित ग्रीन हाउस गैस का योगदान 1.0 से 2.0 डिग्री सेल्सियस रहा। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि तापमान में वृद्धि का का एक बड़ा कारण मिश्रित ग्रीन हाउस गैस है और इसके कारण 1979 से 1990 के बीच तापमान में वृद्धि हुई।
वैश्विक तौर पर औसतन भूमि क्षरण में तेजी 1990 में देखी गई और इसमें अधिक तेजी 1980 में थी। बीसवीं सदी के मध्य में इस बात की संभावना अधिक देखी गई कि भूमि पर मानवीय गतिविधियों का प्रभाव एक पैटर्न बन गया। वहीं दूसरी ओर 1990 के दशक के बाद से ग्लैशियरों के कम होने का मुख्य कारण मानवीय प्रभाव था और इसी प्रकार से आर्कटिक में समुद्री बर्फिले इलाकों में कमी 1979-1988 और 2010-2019 के बीच देखी गई।
मानव प्रभाव के कारण ग्लैशियरों की क्षेत्रीय और आंतरिक स्तर की प्रवृत्तियां में प्ररितर्वनशीलता अधिक देखी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1950 के बाद से उत्तरी गोलार्ध में बर्फ कम जमी और इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि इसका कारण मानव प्रभाव रहा। पिछले दो दशक में ग्रीनलैंड में बर्फ की सतह पिघलने में मानव प्रभाव का बहुत अधिक योगदान रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1970 से ऊपरी महासगरीय क्षेत्र मानवी प्रभाव के कारण अधिक गर्म हुए। इसके कारण वैश्विक स्तर पर औसत समुद्री स्तर में 1901 और 2018 के बीच 0.20 मीटर की वृद्धि दर्ज की गई। हालांकि 1970 के बाद से भूमि की प्रवृत्ति में बदलाव वैश्विक तापमान में वृद्धि के अनुरूप है।