भविष्य में बदल जाएगा बादलों का व्यवहार, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

वैश्विक जलवायु मॉडल के विश्लेषण से लगातार पता चलता है कि बादल अनिश्चितता और अस्थिरता के सबसे बड़े स्रोत हैं।
भविष्य में बदल जाएगा बादलों का व्यवहार, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
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एक नए अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य में बादलों की कमी हो सकती है जिसके कारण बर्फ की चादरें सिकुड़ सकती हैं। या बादल बढ़ भी सकते हैं और अधिक प्रतिबिंबित हो सकते हैं। इन दो परिदृश्यों के परिणामस्वरूप भविष्य में जलवायु के बहुत अलग होने के आसार हैं। ये दोनों परिदृश्य इस बदलती जलवायु समस्या का हिस्सा है।

यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय इरविन (यूसी इरविन) में अर्थ सिस्टम साइंस के प्रोफेसर माइकल प्रिचर्ड की अगुवाई में किया गया है। 

उन्होंने कहा यदि दो अलग-अलग जलवायु मॉडलों की बात करते हैं, जब हम वातावरण में बहुत अधिक कार्बन डाइआक्साइड (सीओ2) छोड़ते हैं तो तब भविष्य कैसा होगा? हमें इसके दो बहुत अलग उत्तर मिलते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि किस तरह से जलवायु मॉडल में बादलों को शामिल किया जाता है।

कोई भी इस बात से इनकार नहीं करता है कि बादल और एरोसोल-कालिख और धूल के कण जो न्यूक्लियेट क्लाउड ड्रॉपलेट्स, जलवायु समीकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। समस्या यह है कि ये घटनाएं इतनी लंबी और समय के आधार पर घटित होती हैं कि आज के मॉडल इनके निर्माण के करीब भी नहीं आ सकते हैं। इसलिए उन्हें विभिन्न अनुमानों के माध्यम से मॉडल में शामिल किया गया है।

वैश्विक जलवायु मॉडल के विश्लेषण से लगातार पता चलता है कि बादल अनिश्चितता और अस्थिरता के सबसे बड़े स्रोत हैं।

प्रिचर्ड ने कहा जबकि अमेरिका के सबसे उन्नत वैश्विक जलवायु मॉडल 4-किलोमीटर तक के इलाके में पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रिचर्ड का अनुमान है कि मॉडल को कम से कम 100 मीटर तक पहुंचने की आवश्यकता होती है ताकि बादलों के सतही प्रणाली को कैप्चर किया जा सके।

मूर के नियम के अनुसार, इस स्तर के विवरण को कैप्चर करने के लिए कंप्यूटिंग शक्ति उपलब्ध होने में 2060 तक का समय लग सकता है।

प्रिचर्ड ने बताया कि वे जलवायु मॉडलिंग समस्या को दो भागों में बांट कर इस अंतर को ठीक करने के लिए काम कर रहे हैं। इसमें एक कम-रिज़ॉल्यूशन (100 किमी) ग्रहीय मॉडल और 100 से 200 मीटर रिज़ॉल्यूशन वाले कई छोटे मॉडल शामिल है।

इस तरह दो सिमुलेशन एक साथ स्वतंत्र रूप से चलते हैं और हर 30 मिनट में आंकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं।

यह जलवायु सिमुलेशन विधि, जिसे "मल्टीस्केल मॉडलिंग फ्रेमवर्क (एमएमएफ)" कहा जाता है, यह 2000 के आसपास रहा है और लंबे समय से सामुदायिक पृथ्वी प्रणाली मॉडल (सीईएसएम) मॉडल के भीतर एक विकल्प रहा है। जिसे नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च में विकसित किया गया है।  

प्रिचर्ड ने बताया कि मॉडल सबसे जटिल स्तरों के तहत पूरे ग्रह की मॉडलिंग कर अंत तक चलता है। इसमें हजारों छोटे माइक्रोमॉडल हैं जो वास्तविक उथले बादलों की गठन जैसी चीजों को पकड़ते हैं जो केवल बहुत उच्च रिज़ॉल्यूशन में सामने आते हैं।

इस तरह से वातावरण का सिमुलेशन करने से प्रिचर्ड को भौतिक प्रक्रियाओं और बादल निर्माण में शामिल अशांत बवंडर को कैप्चर करने के लिए आवश्यक रेसोलुशन हासिल होता है। 

उन्होंने कहा यह जलवायु मॉडल के सभी उपयोग करने वालों को नई सुविधा प्रदान करेगा जो अलग-अलग स्थानों पर अधिक रिज़ॉल्यूशन का उपयोग करना चाहते हैं।

मशीन लर्निंग क्लाउड

प्रिचर्ड ने बताया कि सीईएसएम मॉडल के विभिन्न पैमानों को अलग करना और फिर से जोड़ना एक चुनौती थी जिसे हमारी टीम ने पार कर लिया है। इसमें मॉडल को पुन: प्रोग्राम करना शामिल था ताकि यह आधुनिक सुपरकंप्यूटिंग सिस्टम पर उपलब्ध प्रोसेसर की बढ़ती संख्या का फायदा उठा सके।

प्रिचर्ड ने कहा बादलों के दूर हट जाने से बर्फ की चादरें, गहरे रंग की सतहें उजागर हो जाती हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग और इसके साथ आने वाले सभी खतरों को बढ़ाएगी। इसके विपरीत अगर बादल दूर नहीं हटते है तो बर्फ की चादरें और मोटी हो जाती हैं, तो इस तरह खतरा कम हो जाता है। उन्होंने कहा कुछ लोगों ने इस मॉडल को समाज के लिए बहुमूल्य बताया है। यह शोध जर्नल ऑफ एडवांसेज इन मॉडलिंग अर्थ सिस्टम में प्रकाशित हुआ है।

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