अमेरिका ने 45 साल में बचाई 2 लाख करोड़ गैलन गैस, ये मानक आए काम

अमेरिका में 1975 से लेकर अब तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में करीब 14 गीगा टन की कमी आई है
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अमेरिका के लिए उसके फ्यूल इकोनॉमी स्टैंडर्ड्स कितने फायदेमंद हैं इसे समझने के लिए प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक व्यापक अध्ययन किया है। इस शोध में अमेरिका के पिछले 40 वर्षों में फ्यूल इकोनॉमी स्टैंडर्ड्स से हुए नफे-नुकसान को आंका गया है। 

जिसके नतीजों के अनुसार इन मानकों ने न केवल अमेरिका की विदेशी तेल उत्पादकों पर बढ़ती निर्भरता को कम किया है। इसके साथ ही उपभोक्ताओं के पैसे भी बचाए हैं। जबकि सबसे महत्वपूर्ण इसके चलते अमेरिका के ग्रीनहाउस गैसों के किए जा रहे उत्सर्जन में भी कमी आई है। जोकि जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को हासिल करने में मददगार हो सकता है। यह शोध जर्नल एनर्जी पालिसी में प्रकाशित हुआ है। 

मानकों की वजह से उत्सर्जन में आई है करीब 14 गीगा टन की कमी 

शोध के अनुसार यह स्टैंडर्ड्स अमेरिका में 1975 से प्रभावी हैं। तब से लेकर अब तक इनसे करीब 2,00,000 करोड़ गैलन गैस की बचत हो चुकी है। यह आंकड़ा कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी मदद से अमेरिका के सभी हलके वाहनों की अगले 15 वर्षों तक ईंधन की मांग को पूरा किया जा सकता है। वहीं इसके क्लाइमेट से जुड़े फायदे को देखें तो इससे ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन में करीब 14 गीगा टन की कमी आई है। गौरतलब है कि चीन के बाद अमेरिका दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जीएचजी उत्सर्जक है जोकि दुनिया के 13 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। 

शोधकर्ताओं ने इन स्टैंडर्ड्स के असर को समझने के लिए अमेरिका में पिछले 40 वर्षों के घरेलु खर्च, तेल का उपयोग और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन सहित अन्य आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उनके अनुसार इन मानकों से ईंधन की लागत में 3,65,72,250 करोड़ रुपए (5 ट्रिलियन डॉलर) की बचत हुई है। 

शोधकर्ताओं के अनुसार इन स्टैंडर्ड्स ने 1975 से अब तक अमेरिकी गैस की खपत में हो रही वार्षिक वृद्धि को 0.2 फीसदी पर बनाए रखने में मदद की है। साथ ही इनसे गैस की कीमतों में आए उतार-चढ़ाव से भी निपटने में मदद मिली है। इसके आलावा इनसे तेल आयात में भी कमी आई है।

वाहन निर्माताओं को फायदा पहुंचाने के लिए ट्रम्प ने किया था मानकों में बड़ा फेर-बदल 

मार्च 2020 में ट्रम्प सरकार ने फ्यूल इकोनॉमी स्टैंडर्ड्स में बड़ा फेरबदल किया था। जिसका मकसद वाहन निर्माताओं को फायदा पहुंचाना था। ओबामा काल में बनाए मानकों के अनुसार वाहन निर्माताओं को हर साल वाहनों की फ्यूल इकॉनमी में 5 फीसदी की वृद्धि करना जरुरी था, जिसे ट्रम्प ने घटाकर डेढ़ फीसदी कर दिया है। इसका असर यह होगा कि जहां वाहनों की फ्यूल इकोनॉमी 2025 तक औसत रूप से 54 मील प्रति गैलन पर पहुंचनी थी वो अब नए नियमों के कारण 2026 तक 40 मील प्रति गैलन तक ही पहुंचेगी। 

साथ ही इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को करीब 32,91,503 करोड़ रुपए (450 बिलियन डॉलर) का नुकसान होगा। वहीं एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार इसके कारण उत्पन्न प्रदूषण 2050 तक 13,000 अमेरिकियों की मौत के लिए जिम्मेदार होगा। इसके साथ ही ओबामा काल के मानकों की तुलना में इन नए नियमों से लगभग 90 करोड़ टन अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होगी। जबकि कम फ्यूल दक्षता के चलते 7,800 करोड़ गैलन अतिरिक्त ईंधन की जरुरत होगी। 

शोधकर्ताओं के अनुसार इस तरह के मानक, ईंधन पर लगने वाले टैक्स की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी होते हैं। क्योंकि इनकी मदद से वाहनों लम्बे समय तक ईंधन की बचत करते हैं। साथ ही इससे ईंधन बचाने के लिए उपभोक्ताओं पर निर्भर नहीं रहना होता। जैसे ही नए नियम आते हैं वाहन निर्माता उसके अनुरूप ही वाहनों का निर्माण करने लगते हैं, जिससे उनकी फ्यूल इकॉनमी में सुधार आता जाता है। इसका निर्माताओं के खर्च पर जो असर पड़ता है, वो लम्बे समय में उपभोक्ताओं द्वारा किये जाने वाले उससे अधिक खर्च को बचा सकता है। 

शोध के अनुसार इन मानकों में समय के साथ बदलाव भी जरुरी है। जैसे-जैसे नए आंकड़ें सामने आते हैं और तकनीकी विकास होता जाता है, शोधकर्ताओं का कहना है कि वैसे-वैसे इन मानकों को और कठोर कर देना चाहिए। जिससे वाहनों में सुधार होता रहे। 

सिर्फ अमेरिका के लिए ही नहीं भारत, चीन जैसे अनेक देशों के लिए यह मानक बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। यह मानक वाहन निर्माताओं पर दबाव बनाए रखते हैं जिससे समय के साथ और अधिक कुशल वाहनों का निर्माण होता रहे। जो ने केवल वायु प्रदूषण और उत्सर्जन में कमी ला सकता है, साथ ही इससे ईंधन और उपभोक्ताओं के पैसों की भी बचत होती है। ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि यह मानक भविष्य के लिए एक टिकाऊ और पर्यावरण के लिए फायदेमंद ट्रांसपोर्ट सिस्टम के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

1 डॉलर = 73.14 रुपए

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