संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के सहायक निकाय 58 (एसबी 58) सम्मेलन की शुरूआत विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जर्मनी के बॉन में हो चुकी है। हालांकि इसकी शुरूआत सुस्त रही। कई मुद्दों पर असहमति के कारण देश सम्मेलन के एजेंडे पर सहमत नहीं हो सके हैं।
चीनी प्रतिनिधि द्वारा दिए बयान के मुताबिक, कार्यक्रम के एजेंडे को अपनाने में विफलता एक दुर्लभ घटना है। उन्होंने आगे कहा कि कार्यसूची के मुद्दों को लेकर देशों के बीच भारी असहमति थी। ऐसे में जब तक इन मुद्दों पर आम सहमति नहीं बन जाती, तब तक किसी भी महत्वपूर्ण एजेंडे के विषयों पर कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए।
इसमें पहला मुद्दा जिसने कुछ समूहों को परेशान किया, वह राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (एनएपी) से जुड़े मुद्दों को एजेंडा से हटाना था। हालांकि इसे जी77 और चीन समूह की ओर से क्यूबा द्वारा ड्राफ्ट एजेंडे में परिशिष्ट बनाए जाने के बाद, शामिल कर लिया गया था।
इस बारे में बैठक के प्रारंभिक सत्र में दिए अपने बयान में अफ्रीकी समूह के वार्ताकारों (एजीएन) के अध्यक्ष और जाम्बिया के वार्ताकार एप्रैम मवेप्या शितिमा ने कहा कि हम कार्यान्वयन के लिए सहायक निकाय (एसबीआई) के एजेंडे के एक स्थाई विषय के रूप में राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (एनएपी) को रखने के महत्व पर जोर देते हैं।" उनका कहना है कि हम काफी हैरान हैं कि यह आइटम जो पहले एजेंडे में शामिल था, उसे हटा दिया गया।
इसके साथ ही कई महत्वपूर्ण लेकिन अनसुलझे मामले भी हैं, जिन पर देशों को सहमत होना चाहिए। इनमें शर्म अल शेख जलवायु शमन महत्वाकांक्षा और कार्यान्वयन कार्यक्रम शामिल है। यह कार्यक्रम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के शमन सम्बन्धी रणनीतियों को लागू करने के लिए आवश्यक प्रयासों और कार्यों पर केंद्रित है।
दूसरा ग्लोबल स्टॉक टेक (जीएसटी) के परिणाम, जो संयुक्त अरब अमीरात में यूएनएफसीसीसी के पक्षकारों के 28वें सम्मेलन (कॉप 28) में पूरा होने वाला है। गौरतलब है कि कॉप 28 के दौरान देश ग्लोबल स्टॉक टेक के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में हुई प्रगति का आकलन करेंगे। इसका उद्देश्य वैश्विक प्रयासों और जलवायु परिवर्तन को कम करने पर उनके प्रभाव का व्यापक मूल्यांकन प्रदान करना है।
तीसरा जलवायु वित्त के लिए नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी) है। एनसीक्यूजी वित्तीय सहायता के लिए एक उन्नत लक्ष्य है, जो विकसित देश, विकासशील देशों को प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसका उद्देश्य विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों को दूर करने के प्रयासों में वृद्धि करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
चीनी प्रतिनिधि का कहना है कि, "यूरोपियन यूनियन द्वारा प्रस्तावित नया शमन कार्यक्रम, पहले की गई सहमति के अनुरूप नहीं है।"
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के हरजीत सिंह ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया कि, “एक तरफ विकासशील देश अपने बंधे हाथों से जलवायु परिवर्तन का सामना करने को मजबूर हैं वहीं दूसरी तरफ अमीर देश उनकी वित्तीय जरूरतों के लिए आंखें मूंदे हुए हैं।" उनका कहना है कि कमजोर देशों से जलवायु शमन की अनुचित महत्वाकांक्षा की मांग करने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा।
एसबी 58 में, तकनीकी वार्ता की तीसरी और अंतिम बैठक को आयोजित करने की आवश्यकता है, जो ग्लोबल स्टॉक टेक (जीएसटी) प्रक्रिया के राजनीतिक चरण को सूचित करने और शुरू करने के लिए महत्वपूर्ण है।
यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देशों को जलवायु शमन, अनुकूलन, वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की वर्तमान स्थिति को समझने की अनुमति देता है। इस जानकारी के साथ, देश ट्रैक पर बने रहने के साथ 2015 के पेरिस समझौते में तय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक समायोजन कर सकते हैं।
शितिमा का कहना है कि, "यह स्पष्ट है कि पार्टियां जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं। हमारे मामले में, हम सतत विकास और गरीबी उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जहां कुछ पार्टियां अपना काम कर रही हैं, वहीं अन्य ढीली पड़ी हैं।"
उन्होंने आगे इस बात पर जोर दिया कि ग्लोबल स्टॉक टेक (जीएसटी) के परिणाम में निष्पक्षता और सभी के लिए एक न्यायपूर्ण परिवर्तन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, विकसित देशों के लिए जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता बढ़ाना अस्वीकार्य है, जो अफ्रीकी देशों की 1.5 डिग्री सेल्सियस के मार्ग की ओर संक्रमण की क्षमता को और बाधित करेगा। उन्हें उम्मीद है कि जीएसटी का परिणाम एक बातचीत वाला समझौता होगा, जिसे शामिल सभी पक्षों द्वारा स्वीकार और समर्थित किया जाएगा।
गौरतलब है कि उद्घाटन सत्र के दौरान करीब-करीब सभी देशों के समूहों, पार्टियों और पर्यवेक्षक निर्वाचन क्षेत्रों ने ग्लोबल स्टॉक टेक (जीएसटी) को वर्ष के सबसे महत्वपूर्ण परिणाम के रूप में रेखांकित किया था। उनमें से अधिकांश ने इस बात पर जोर दिया कि पेरिस समझौते में निहित इक्विटी और सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों (सीबीडीआर) के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए, बोलीविया ने समान विचारधारा वाले विकासशील देशों की ओर से कहा कि, "इक्विटी और सीबीडीआर को अलग करने के प्रयास किए जा रहे हैं। कई पार्टियां पिछले जनादेशों पर टिकी नहीं हैं और वे नए जनादेशों को लागू करने का प्रयास कर रही हैं। यह यूएनएफसीसीसी के तहत बातचीत के भरोसे की गंभीरता को कम करता है।
वहीं चीन के प्रतिनिधि का कहना है कि, "एनसीक्यूजी भी एजेंडे का हिस्सा नहीं है। यह एजेंडे को अपनाने के साथ एक और मुद्दा हो सकता है। प्रमुख विवाद एनसीक्यूजी के लक्ष्य के आसपास हो सकता है जो विकसित देशों के लिए उत्तरदायी नहीं हो सकता। उनके अनुसार इसका "कारण ज्ञात है लेकिन यहां एक खुले सत्र में इसे घोषित नहीं किया जा सकता है।"
सिंह का कहना था कि, "समय आ गया है जब अमीर देश आवश्यक वित्तीय सहायता और प्रभावी जलवायु कार्रवाई के लिए आवश्यक तकनीक प्रदान किए बिना दूसरों पर दबाव डालना बंद कर दें।" उनके अनुसार जलवायु संकट के बीच सिर्फ वादों की तुलना में वास्तविक कार्रवाई कहीं ज्यादा प्रतिध्वनि पैदा कर सकती है।
वहीं यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के संबंध में रूस और पश्चिमी देशों (यूरोपियन यूनियन, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम) द्वारा दिए बयानों की ओर ध्यान केंद्रित करने के कारण जलवायु परिवर्तन पर चल रही चर्चा में अहम मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया।