कई राज्यों में रविवार रात से तेज आंधी व बारिश के कारण मौसम बदल गया है। इससे जहां शहरी लोगों ने बढ़ती गर्मी से राहत की सांस ली है, वहीं किसानों के लिए यह बदला मौसम आफत बन गया है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान के कई जिलों में गेहूं खेतों में खड़ा है, आंधी व बारिश की वजह से गेहूं की फसल गिर गई है। मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि अभी यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले साल मई माह में तेज अंधड़ व तूफान की वजह से कई राज्यों में भारी जान-माल का नुकसान हुआ था।
मौसम विभाग के मुताबिक, रविवार को दिन भर की गर्मी के बाद शाम को राजस्थान के कई इलाकों में अचानक तेज हवाओं के साथ धूल भर आंधी चलनी शुरू हुई। रात लगभग नौ बजे दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अलावा उत्तर प्रदेश के मथुरा, कोसी, आगरा आदि इलाकों में भी तेज आंधी व बारिश शुरू हो गई। कुछ इलाकों में ओले भी पड़े।
सोमवार को उत्तराखंड के कई इलाकों से बारिश और आंधी चलने की खबर है। मौसम विभाग का कहना है कि इस सप्ताह के देश के कई इलाकों में धूल भरी आंधी चलेंगी। विभाग के मुताबिक, इसकी वजह पश्चिम विक्षोभ की वजह से यह स्थिति बनी है।
तेज आंधी, बारिश और ओले की वजह से गेहूं के नुकसान की खबरें आ रही हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा व पंजाब में इन दिनों गेहूं की फसल नहीं कटी है और खेतों में पूरी तरह पक कर तैयार हैं। हरियाणा के बल्लभगढ़ तहसील के गांव सागरपुर निवासी जोगेंद्र डागर ने कहा कि रात लगभग साढे नौ बजे अचानक बिजली कड़कड़ाने के साथ ही तेज आंधी व बारिश शुरू हो गई। साथ ही ओले भी गिरने लगे। लगभग एक घंटे तक बारिश हुई। सुबह जब उन्होंने अपने खेत में देखा तो पाया कि उनकी गेहूं की फसल गिर चुकी है।
उन्होंने कहा कि ओलों की वजह गेहूं की बालियां झड़ गई हैं और जो गेहूं बच गया है, उसे अब मजदूरों के माध्यम से काटना पड़ेगा। खड़ी फसल को थ्रेशर से कटवाने पर खर्च कम आता है। गांव बहादरपुर के किसान प्रहलाद ने कहा कि उनकी फसल पूरी तरह तैयार थी और वह काटने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन अब फसल भीग चुकी है। दो तीन दिन तो काट भी नहीं पाएंगे। और अगर दोबारा बारिश व आंधी आई तो बची-खुची फसल भी बराबर हो जाएगी।
आगरा में आया था भयंकर तूफान
आगरा निवासी समन्वय प्रकाश बताते हैं कि रविवार को अचानक मौसम बदला और तेज आंधी शुरू हो गई। हालांकि बारिश कम हुई , लेकिन इस आंधी ने उनको पिछले साल के तूफान की याद दिला दी। पिछले साल भयंकर तूफान ने आगरा में तांडव मचाया था, जिससे भारी जानमाल का नुकसान हुआ था।
500 लोगों ने गंवाई थी जान
जुलाई 2018 में ‘डाउन टू अर्थ’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में भारत के 16 राज्यों में 50 धूलभरी आंधी की घटनाएं हुई हैं, जिसके कारण 500 से अधिक मौतें हुईं। इसकी तुलना में 2003 से 2017 के बीच 22 आंधी आने की घटनाएं हुईं, जबकि 1980 और 2003 के बीच केवल नौ बार आंधी आई।
क्या है ग्लोबल कनेक्शन
दरअसल, इन दिनों जो मौसम में बदलाव आया है, उसके पीछे ग्लोबल कनेक्शन है। आर्कटिक में होने वाली गर्मी के कारण पश्चिमी विक्षोभों में बदलाव आ रहे हैं। पहले वर्ष दो-तीन बार पश्चिमी विक्षोभ होना सामान्य बात थी, लेकिन अब इनकी संख्या दस और उससे भी अधिक हो गई है। इसके अलावा, उनके आगमन के समय में भी देरी हो रही है। आमतौर पर पश्चिमी विक्षोभ सर्दियों के मौसम में आते थे, जिनके कारण हिमपात होता था लेकिन अब ये अप्रैल से लेकर मई और जून में भी आ रहे हैं। यह पश्चिमी विक्षोभ का बिलकुल नया और बदला हुआ चरित्र है।
क्या है पश्चिमी विक्षोभ?
यह एक तरह का उष्णकटिबंधीय तूफान है जो मेडिटरेनियन रीजन से शुरू होता है और उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में बारिश की वजह बनता है। मूलतः यह तूफान कालासागर और कैस्पियन समुद्र से गुजरता हुआ भारी मात्रा में नमी लेकर भारत पहुंचता है। गर्मियों में हवा का दबाव कम होने के कारण वायुमंडल की निचली परत में तेज हवाएं चलती हैं और यह तूफान हिमालय के ऊपर से निकल जाते हैं। लेकिन सर्दियों में जब हवा का दबाव ज्यादा होता है तो ये तूफान हिमालय के नीचे से गुजरते हैं और भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में बारिश की वजह बनते हैं। इस तरह पश्चिम से आने वाली यह हवाएं जो हमारे देश के मौसम को कुछ समय के लिए बदल देती हैं, पश्चिमी विक्षोभ कहलाती हैं।
पश्चिमी विक्षोभ में क्या हो रहा है बदलाव?
आर्कटिक में होने वाली गर्मी के कारण पश्चिमी विक्षोभों में बदलाव आ रहे हैं। पहले वर्ष दो-तीन बार पश्चिमी विक्षोभ होना सामान्य बात थी, लेकिन अब इनकी संख्या दस और उससे भी अधिक हो गई है। इसके अलावा, उनके आगमन के समय में भी देरी हो रही है। आमतौर पर पश्चिमी विक्षोभ सर्दियों के मौसम में आते थे, जिनके कारण हिमपात होता था लेकिन अब ये अप्रैल से लेकर मई और जून में भी आ रहे हैं। यह पश्चिमी विक्षोभ का बिलकुल नया और बदला हुआ चरित्र है।
पश्चिमी विक्षोभों के बदलते व्यवहार और आर्कटिक में होने वाली वार्मिंग के बीच क्या संबंध है?
आर्कटिक के गर्म होने के कारण, इस ठंडे क्षेत्र और भूमध्य रेखा के बीच के तापमान में अंतर कम हो गया है। जिसके कारण आर्कटिक भूमध्य रेखा के बीच में बहने वाली जेट स्ट्रीम-विंड का प्रवाह कमजोर हो गया है। इसके साथ ही यह अपने पथ पर सीधे आगे को प्रवाहित न होकर इधर-उधर अनिर्धारित पथ पर भटक रही है जिसके कारण पश्चिमी विक्षोभ के मौसम और प्रवाह में परिवर्तन आ रहा है।
एकमात्र कारण नहीं है पश्चिमी विक्षोभ
दरअसल, बंगाल की खाड़ी में तापमान लगातार बढ़ रहा है जहां औसत सामान्य तापमान में 1 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है। जिसका मतलब है, चक्रवातों की गतिविधि के लिए अधिक नमी का उपलब्ध होना। इस चक्रवात प्रणाली के अब शुष्क, ठंडे लेकिन देर से आने पश्चिमी विक्षोभों से टकराने के कारण तीव्र और व्यापक तूफान आ रहे हैं। इस साल पूरे उत्तरी उपमहाद्वीप के तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। अप्रैल के अंत में राजस्थान का औसत तापमान 46 डिग्री सेल्सियस अंकित किया गया, वहीं पाकिस्तान में पारा 50 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया, जो सामान्य से 4-5 डिग्री सेल्सियस अधिक है। सिन्धु-गंगा के मैदानी क्षेत्रों में भी तापमान सामान्य से 8 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है।
मानव निर्मित है यह आपदा
यह मूलतः हम इंसानों द्वारा स्थानीय और वैश्विक स्तर पर किए जा रहे कारकों के संयोजन का परिणाम है जिसमें मिट्टी के कुप्रबंधन और मरुस्थलीकरण से लेकर कार्बन डाईऑक्साइड के वैश्विक उत्सर्जन तक सम्मिलित है। ये गतिविधियां पृथ्वी की सतह को लगातार गर्म कर रही हैं जिसके कारण इस तरह की अनोखी और अनहोनी हो रही है।