दुनिया लगभग एक दशक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए जलवायु परिवर्तन के समझौते की सीमा को तोड़ देगी। प्रदूषण में भारी कटौती के बावजूद भी मध्य शताब्दी के आसपास बढ़ते तापमान की सीमा को तोड़ना असंभव होगा।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से एक नए अध्ययन में पूर्वानुमान लगाया गया है जो पिछले मॉडलिंग की तुलना में सबसे ज्यादा खराब है।
अध्ययन इस बहस को फिर से शुरू करता है कि क्या बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना अभी भी संभव है, जैसा कि 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में जलवायु परिवर्तन के सबसे हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए कहा गया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि पूर्व-औद्योगिक समय या 19वीं शताब्दी के मध्य से दुनिया पहले ही 1.1 या 1.2 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है।
मशीन लर्निंग का उपयोग करने वाले दो जलवायु वैज्ञानिकों ने गणना की, कि पृथ्वी 2033 से 2035 के बीच 1.5 डिग्री सेल्सियस के निशान को पार कर जाएगी। उनके परिणाम यह अनुमान लगाने के अन्य पारंपरिक तरीकों के साथ फिट होते हैं कि पृथ्वी कब निशान को तोड़ देगी।
ब्राउन यूनिवर्सिटी पर्यावरण संस्थान के निदेशक किम कॉब, ने कहा, ऐसा समय आएगा जब हम बढ़ते तापमान के 1.5 डिग्री के लक्ष्य को पार कर जाएंगे।
सह-अध्ययनकर्ता और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के नोआह डिफेनबॉघ ने कहा कि दुनिया किसी भी यथार्थवादी उत्सर्जन में कमी के परिदृश्य में 1.5 डिग्री सेल्सियस के निशान के कगार पर है। उन्होंने कहा दो डिग्री की वृद्धि से बचने के लिए, यह इस सदी के मध्य तक शून्य-उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने वाले देशों पर निर्भर करता है।
डिफेनबॉघ ने बताया कि, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित अध्ययन में पाया गया कि उत्सर्जन पर सख्त लगाम लगाने पर ही तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जा सकता है। यही वह जगह है जहां एआई वास्तव में उन वैज्ञानिकों से अलग है जो पिछले अवलोकनों पर आधारित कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके पूर्वानुमान लगा रहे थे।
एआई की गणना के मुताबिक, अधिक प्रदूषण वाले परिदृश्य में, दुनिया 2050 के आसपास दो डिग्री सेल्सियस के निशान तक पहुंच जाएगी। प्रदूषण में कमी 2054 तक इसे रोक सकती है।
इसके विपरीत, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने 2021 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि समान या कम प्रदूषण परिदृश्य 2090 के दशक में कभी-कभी दुनिया को दो डिग्री से ऊपर धकेलता हुआ दिखेगा।
कॉर्नेल विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक तथा आईपीसीसी का हिस्सा रहे नताली महोवाल्ड ने कहा कि अध्ययन जो वैज्ञानिकों को पता है, उसके साथ फिट बैठता है, लेकिन थोड़ा अधिक निराशावादी लगता है।
महोवाल्ड ने कहा भविष्य में एआई का उपयोग करना अधिक अहम है जो बेहतर पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हो सकता है, लेकिन यह निष्कर्ष निकालने से पहले अधिक और ठोस सबूतों की आवश्यकता है।
डिफेनबॉघ ने कहा, आम तौर पर, जलवायु वैज्ञानिक कंप्यूटर मॉडल सिमुलेशन के एक समूह का उपयोग करते हैं, कुछ गर्म और कुछ ठंडे होते हैं और फिर यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि कौन सा सबसे अच्छा काम कर रहा है। यह अक्सर इस बात पर निर्भर होता है कि उन्होंने अतीत के अनुकरण में कैसा प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि एआई जो करता है वह अब जलवायु प्रणाली के लिए अधिक महत्वपूर्ण है।
हर साल, संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में सरकार के जलवायु वार्ताकार घोषणा करते हैं कि वे 1.5 को जीवित रखने में कामयाब रहे हैं। लेकिन नवीनतम अध्ययन से वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर मतभेद है कि यह वास्तव में कितना सच है।
डिफेनबॉघ ने कहा कि पहले से ही इतनी अधिक गर्मी है कि यह वास्तव में कोई फर्क नहीं पड़ता कि अगले कई वर्षों में प्रदूषण में कटौती कैसे की जाती है, एआई के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया 1.5 तक पहुंच जाएगी।
अन्य वैज्ञानिक जो इस अध्ययन में शामिल नहीं हैं, जैसे पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के माइकल मान और क्लाइमेट एनालिटिक्स के बिल हेयर और कार्ल-फ्रेडरिक श्लेउस्नर ने कहा 1.5 को बनाए रखने का लक्ष्य अभी भी जीवित है। वे कहते हैं कि एक तेजी से डीकार्बोनाइजेशन परिदृश्य जिसकी डिफेनबॉघ ने जांच नहीं की, यह दर्शाता है कि दुनिया बढ़ते तापमान को दहलीज के नीचे रख सकती है।
हरे ने कहा कि अगर दुनिया 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में आधे से अधिक की कटौती कर सकती है तो बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित किया जा सकता है और फिर निशान के नीचे कटौती की जा सकती है।
मान ने कहा, यह मानते हुए कि दुनिया अब बढ़ते तापमान को 1.5 से नीचे नहीं रख सकती है। अंत में तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस जैसी सटीक सीमा के महत्व की अधिक व्याख्या करना आसान है। चुनौती यह है कि बढ़ते तापमान को यथासंभव सीमित किया जाए। यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।