92 फीसदी देशों में हर दूसरे साल चरम पर पहुंच सकती है गर्मी: अध्ययन

दुनिया भर के 165 देशों में किए गए अध्ययन में से 92 प्रतिशत देशों में हर दो साल में गर्म वार्षिक तापमान में अत्यधिक बढ़ोतरी होने के आसार हैं
92 फीसदी देशों में हर दूसरे साल चरम पर पहुंच सकती है गर्मी: अध्ययन
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मानवजनित ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन से हमारी धरती गर्म हो रही है। यदि दुनिया भर में उत्सर्जन का दौर इसी तरह जारी रहा तो 2030 तक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की बढ़ोतरी होगी।

दुनिया भर में सबसे बड़े प्रदूषकों के चलते उत्सर्जन में भारी बढ़ोतरी जारी है। एक नए शोध के अनुसार, दुनिया भर का हर देश 2030 तक हर दूसरे वर्ष अत्यधिक गर्म वर्षों का अनुभव कर सकता है।

मॉडलिंग के द्वारा किए गए अध्ययन में 2030 तक बढ़ते तापमान का अनुमान लगाया गया है। जिसमें शीर्ष पांच उत्सर्जक देश - चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ, भारत और रूस शामिल हैं। जिन्होंने उत्सर्जन में कटौती के लिए कॉप 26 जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले किए गए ऐतिहासिक वादों पर उत्सर्जन के संयुक्त आंकड़े प्रदान किए थे।

शोधकर्ताओं ने बताया की दुनिया भर के 165 देशों में किए गए अध्ययन में से 92 प्रतिशत देशों में हर दो साल में गर्म वार्षिक तापमान में अत्यधिक बढ़ोतरी होने के आसार हैं, जिसे पूर्व-औद्योगिक युग में 100 साल में एक बार गर्म वर्ष के रूप में परिभाषित किया गया है।

सह-अध्ययनकर्ता और क्लाइमेट एनालिटिक्स के अलेक्जेंडर नॉएल्स ने कहा कि यह अपने आप में बहुत अनोखा था। उन्होंने बताया कि इस तरह का बदलाव वास्तव में बहुत जल्दी-जल्दी हो रहा है। हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जो हर किसी के लिए बहुत अधिक गर्म होती जा रही है।

इस पूर्वानुमान के मुताबिक दुनिया के पांच सबसे बड़े उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार देशों को उनके उत्सर्जन के पैमाने के आधार पर देखने की जरूरत है। अध्ययनकर्ताओं ने देखा कि 1991 के बाद से उनके उत्सर्जन के बिना दुनिया की तस्वीर कैसी होगी?  अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि अत्यधिक गर्म वर्षों से प्रभावित देशों का अनुपात घटकर लगभग 46 प्रतिशत रह जाएगा।

उत्सर्जन को लेकर जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने पहली बार मानवजनित जलवायु परिवर्तन को लेकर सरकारों को चेतावनी दी थी।  

ईटीएच ज्यूरिख विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर एटमॉस्फेरिक एंड क्लाइमेट साइंस के प्रमुख अध्ययनकर्ता ली बेउश ने कहा कि अध्ययन में क्षेत्रीय स्तर पर शीर्ष उत्सर्जकों के कार्यों की एक स्पष्ट छाप दिखती है।

बेउश ने कहा कि यह मुझे बहुत महत्वपूर्ण लगता है, क्योंकि हम आम तौर पर उत्सर्जन की इस भारी मात्रा या वैश्विक तापमान के बारे में बात करते हैं, जिसके बारे में हम जानते हैं, लेकिन हम वास्तव में इसे महसूस नहीं कर सकते हैं।

उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा जबकि क्षेत्रीय जलवायु में हो रहे बदलाव जिन्हें हम अनुभव करने जा रहे हैं, उसके बहुत करीब है। हम अपने देश में इस अत्यधिक बढ़ते गर्म वर्षों की बढ़ती आवृत्ति का अनुभव करने जा रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में अत्यधिक गर्म वर्षों की आवृत्ति के संदर्भ में सबसे बड़ा प्रभाव पाया।

क्योंकि यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां परंपरागत रूप से साल-दर-साल तापमान में काफी कम बदलाव होता है, यहां तक ​​कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में मध्यम औसत गर्मी का अनुभव करने के लिए इसे निश्चित किया गया है, वास्तव में इसे अपने ज्ञात जलवायु आवरण से बाहर रखा गया है। उन्होंने कहा कि सबसे अधिक तापमान वृद्धि उत्तरी उच्च अक्षांश क्षेत्रों में होती है, जो उष्णकटिबंधीय की तुलना में तेज दर से गर्म हो रही हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि यदि देश प्रदूषण में कटौती के प्रयासों को आगे बढ़ाते हैं तो चरम वर्षों की आवृत्ति के पूर्वानुमानों को बदला जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन निकाय यूएनएफसीसीसी के अनुसार, वर्तमान योजनाओं में 2030 तक उत्सर्जन में 13.7 प्रतिशत की वृद्धि होने के आसार हैं, जबकि पेरिस समझौते के तहत तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के भीतर रखने के लिए उन्हें उत्सर्जन को लगभग आधा करना होगा। यह अध्ययन कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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