जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षावनों में कार्बन को संग्रहित करने की क्षमता घट सकती है। इसका पहला कारण अधिक तापमान के दौरान वर्षावन प्रजातियों की पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण दर के गिरने से है। दूसरा कारण सूखे के दौरान पेड़ों की प्राकृतिक तरीके से ठंडा होने की प्रणाली का विफल होना है। बढ़ती गर्मी विशेष रूप से उन प्रजातियों के लिए खतरा है जो सबसे अधिक कार्बन जमा करती हैं। यह अध्ययन गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय की अगुवाई में किया गया है।
उष्णकटिबंधीय इलाकों में पेड़ों की कुछ प्रजातियां बढ़ती गर्मी से अपने आप को ठंडा रखने के लिए अपनी पत्तियों से बड़ी मात्रा में पानी सोख कर पत्तियों के चौड़े खुले छिद्रों के माध्यम से स्थानांतरित कर सकते हैं। ये मुख्य रूप से तेजी से बढ़ने वाले पेड़ हैं जो वर्षावन के बड़े होने पर खुद को जल्दी स्थापित कर लेते हैं।
पुराने जंगल वाले वर्षावन में ऐसा होगा यह कहा जा सकता है। वे धीमी गति से बढ़ते हैं, लेकिन बड़े और लम्बे हो जाते हैं और उनकी पत्तियों में वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से खुद को ठंडा करने की क्षमता नहीं होती है।
पानी पत्तियों को 'एयर कंडीशनिंग' की शक्ति देता है
मारिया विटमैन कहते हैं कि उष्णकटिबंधीय इलाकों में हिमयुग जैसा वातावरण नहीं रहा और इस प्रकार ऐतिहासिक और मौसमी रूप से अपेक्षाकृत यहां जलवायु स्थिर रही है। जलवायु परिवर्तन के साथ, यह गर्म होना शुरू हो गया, फिर हमने देखा है कि पेड़ों की कुछ प्रजातियों में मृत्यु दर में वृद्धि दिख रही हैं, लेकिन यह हमें वास्तव में पहले पता नहीं था।
उन्होंने पेड़ की कई प्रजातियों का अध्ययन किया जिन्हें मोटे तौर पर शरुआती प्रजातियों में विभाजित किया जा सकता है, जो एक नए वर्षावन में खुद को स्थापित करते हैं। देर से आने वाली प्रजातियां, जो धीमी गति से बढ़ती हैं लेकिन काफी बड़ी हो जाती हैं और इस प्रकार लंबी अवधि में बड़ी मात्रा में कार्बन अवशोषित करती है। एक स्पष्ट अंतर यह है कि दो समूहों के पेड़ गर्मी से कैसे निपटते हैं।
प्रारंभिक क्रमिक प्रजातियां अपनी पत्तियों में छिद्रों को खोलती हैं, जिसके माध्यम से वे बड़ी मात्रा में पानी को पेड़ के अलग-अलग भागों में भेजते हैं, इस प्रकार उनकी पत्तियां तापमान को कम करने में मदद करती हैं। यह एक एयर कंडीशनिंग प्रणाली के समान लगता है। देर से विकसित होने वाली प्रजातियां अपने छिद्रों को ज्यादा नहीं खोलती हैं और इसलिए उनके लिए ठंडा रहना अधिक कठिन होता है।
सूखे के प्रति अधिक संवेदनशील
अध्ययनकर्ता मारिया विटमैन ने बताया कि हमें अपनी माप में पत्तियों के तापमान में बड़े अंतर मिले। देर से आने वाली प्रजातियों और एक ही स्थान पर उगने वाली शुरुआती प्रजातियों के बीच 10 डिग्री सेल्सियस का अंतर हो सकता है। देर से विकसित होने वाली प्रजातियों को असामान्य रूप से अधिक तापमान का सामना करने में अधिक कठिनाई होती है तथा इन पेड़ों की मृत्यु दर अधिक देखी गई।
हालांकि, शुरुआती क्रमिक प्रजातियों के पत्तों के माध्यम से प्रचुर मात्रा में वाष्पोत्सर्जन के लिए भी बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है। सूखे की अवधि के दौरान, शोधकर्ताओं ने गौर किया कि शुरुआती प्रजातियां गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील हो गईं और उनकी पत्तियां गिर गईं थी। पानी की उनकी कम खपत का मतलब था कि देर से आने वाली प्रजातियां सूखे के प्रति अधिक प्रतिरोधी थीं।
विटमैन कहती हैं कि हमारे नतीजे बताते हैं कि वर्षावन के पेड़ों में प्रकाश संश्लेषण की दर गिरती है, जब उनके पत्तों में तापमान बढ़ जाता है, जो मुख्य रूप से देर से विकसित होने वाली प्रजातियों में होता है। उनकी पत्तियों में प्रोटीन और झिल्ली, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक होते हैं, नष्ट हो जाते हैं और अंततः पेड़ मर जाते हैं। क्योंकि वे हवा से पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं। यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।
शोध से पता चलता है कि अमेजन में स्थिति सबसे खराब है। यह अनुमान है कि यह कार्बन सिंक 2035 तक कार्बन स्रोत में बदल जाएगा। अफ्रीकी वर्षावन अभी जलवायु परिवर्तन से उतने प्रभावित नहीं हैं।यह शोध ट्री फिजियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।