ग्राउंड रिपोर्ट: तबाही की चपेट में आया किश्तवाड़ का चिशोती

पश्चिमी हिमालय में स्थित केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर भी त्रासदी के शोकगीत लिख रहा है
जम्मू कश्मीर के जिले किश्तवाड़ में अतिवृष्टि की वजह से आई आकस्मिक बाढ़ ने चिशोती गांव में जमकर तबाही मचाई
जम्मू कश्मीर के जिले किश्तवाड़ में अतिवृष्टि की वजह से आई आकस्मिक बाढ़ ने चिशोती गांव में जमकर तबाही मचाई फोटो: आसिफ इकबाल नायक
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अगस्त 14, 2025, दोपहर के ठीक 12 बजकर 20 मिनट। पश्चिमी हिमालय के तीसरे राज्य जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के पाडर सब डिवीजन स्थित दूरस्थ गांव चिशोती में अचानक आसमान फटा और जमीन बह गई। बादलों से निकली जलप्रलय ने पूरे इलाके को मलबे में बदल डाला। देखते ही देखते मचैल माता यात्रा का लंगर स्थल, पार्किंग एरिया और आसपास के घर नाले की गर्जना में समा गए।

आंखों देखा हाल सुनाते हुए भद्रवाह के निवासी प्रदीप कुमार बताते हैं, “अचानक धुएं जैसी गेंद उठी, जिसमें मिट्टी, पत्थर और पानी था। पूरा इलाका मलबे में बदल गया। सैकड़ों लोग लंगर में बैठे थे, कई पुल पार कर रहे थे, तो कुछ मजदूर काम कर रहे थे। सब बह गए।” सरकारी मशीनरी लगातार मलबा हटाने और लापता लोगों की तलाश में जुटी है, लेकिन लगातार बारिश और मौसम विभाग की चेतावनी राहत कार्य में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। इससे परिजनों में गुस्सा और बेबसी दोनों है।

जिला विकास परिषद की चेयरपर्सन पूजा ठाकुर कहती हैं, “यह त्रासदी अभूतपूर्व है। 60 से अधिक मौतें हो चुकी हैं और सैकड़ों घायल अस्पतालों में हैं। गुमशुदा लोगों की सही संख्या बताना अभी मुश्किल है, लेकिन आंकड़ा सैकड़ों तक पहुंच सकता है।”

भक्ति और आस्था से भरा जो क्षेत्र कुछ घंटे पहले तक श्रद्धालुओं से गुलजार था, अब मौत और विनाश की खामोश गवाही दे रहा है। किश्तवाड़ की यह काली दोपहर जम्मू-कश्मीर की त्रासदियों के इतिहास में हमेशा याद रखी जाएगी।

नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ), स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स (एसडीआरएफ), सेना, जीआरईएफ तथा जम्मू-कश्मीर पुलिस हर संभव बचाव व राहत कार्य में जुट गए। मचैल माता भवन में फंसे 15,000 से अधिक श्रद्धालुओं को सुरक्षित बाहर निकाला गया।

जिस दिन यह हादसा हुआ, उस समय करीब 18,000 यात्री यात्रा पर थे, जबकि अगले दिन यात्रा के लिए 24,000 श्रद्धालुओं ने पंजीकरण कराया था। पाडर के एसडीएम अमित कुमार बघाट ने बताया कि मृतकों की पहचान की प्रक्रिया जारी है और जिनकी पहचान हो चुकी है, उनके शव परिजनों को सौंपे जा रहे हैं। कुछ शव अब भी अज्ञात हैं। मृतकों में सीआईएसएफ के जवान भी शामिल हैं, जबकि उनके कुछ साथी अभी भी लापता हैं।

आपदा क्षेत्र में पहुंचे राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री ने दुःख और संवेदना व्यक्त करते हुए मुआवजे का ऐलान किया। इनमें मृतकों के परिजनों को 2 लाख रुपए, गंभीर रूप से घायलों को 1 लाख रुपए, सामान्य रूप से घायल को 50 हजार रुपए शामिल हैं।

पूरी तरह क्षतिग्रस्त मकानों के लिए 1 लाख रुपए, आंशिक क्षतिग्रस्त मकानों के लिए 50 हजार रुपए और मामूली क्षति वाले मकानों के लिए 25 हजार रुपए की घोषणा की गई। मुख्यमंत्री की इस घोषणा के जवाब में पाडर के विधायक सुनील शर्मा ने कहा कि उपराज्यपाल ने प्रत्येक प्रभावित परिवार को मकान उपलब्ध कराने का वादा किया है। उन्होंने जोड़ा कि हरसंभव प्रयास किया जाएगा ताकि यह गांव फिर से जीवन से भर सके।

बादल फटा या ग्लेशियर झील

उत्तराखंड के धराली की तरह चिशोती में भी यही सवाल उठा कि आखिर आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) क्यों आई? मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 14 अगस्त 2025 को किश्तवाड़ जिले में केवल 5 मिलीमीटर बारिश हुई। मौसम विज्ञान केंद्र, श्रीनगर के निदेशक मुख्तियार अहमद के हवाले से छपी कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चिशोती में कोई वेदर मॉनिटरिंग स्टेशन नहीं है, लेकिन सैटेलाइट और डॉप्लर राडार से यहां भारी बारिश का पता चला है, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि चिशोती का ऊपरी इलाका जंस्कार बेल्ट से जुड़ा हुआ है तो हो सकता है कि ऊपर कोई ग्लेशियर या ग्लेशियर से बनी झील टूटी हो, जिसने बाढ़ का रूप ले लिया हो।

हालांकि स्थानीय लोगों ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से रुक-रुक कर बारिश हो रही थी, परंतु घटना के वक्त मौसम साफ था और यात्रा लगातार जारी थी। मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि किश्तवाड़ सहित राज्य के पांच जिलों में भारी बारिश संबंधी चेतावनी जारी की गई थी, लेकिन लोगों का कहना है कि क्षेत्र विशेष को लेकर कोई चेतावनी नहीं दी गई थी और ना ही प्रशासन की ओर से चेतावनी संबंधी जानकारी यात्रियों को दी गई थी।

क्या रहा नुकसान का कारण

पिछले कुछ सालों से इस सीजन में माता चंडी का पवित्र धाम मचैल के दर्शन के लिए जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है। यह धाम विश्वप्रसिद्ध नीलम खदानों (सच्चम गांव, जो मचैल के बाद का अंतिम गांव है) के निकट है। वार्षिक मचैल माता यात्रा 2025 में आधिकारिक तौर पर 25 जुलाई से शुरू हुई थी, जो 5 सितंबर तक चलेगी।

फिलहाल इसे स्थगित कर दिया गया है। पिछले साल लगभग 3 लाख तीर्थयात्रियों ने यहां दर्शन किए थे। इस साल संभावना जताई जा रही थी कि श्रद्धालुओं की संख्या 5 लाख तक पहुंच जाएगी। समुद्र तल से लगभग 13,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मचैल माता मंदिर तक पहुंचने के लिए कुछ साल पहले तक यह यात्रा पैदल होती थी, लेकिन अब चिशौती तक सड़क बन गई है।

लोग यहां तक अपनी गाड़ियों से आते हैं, उससे आगे पैदल जाते हैं। चिशौती में एक नाला पार करके जाया जाता है। पिछले कुछ सालों नाले के आसपास निर्माण बढ़ गए हैं। इसे भी नुकसान बढ़ने का एक कारण माना जा रहा है। जिन 13 घरों के बह जाने की सूचना है, वे भी नाले के करीब ही बने हुए थे।

क्या नजर आती हैं वजह?

मॉनसून में नाले का जलस्तर अकसर बढ़ जाता है, लेकिन इस तरह की आकस्मिक बाढ़ पहले नहीं आई। स्वयंसेवी संगठन अबाबील के प्रमुख बुरहान मीर ने बताया, “जैसे ही हमें बादल फटने और तबाही की खबर मिली, हम यहां पहुंचे तो यहां स्थिति हमारी कल्पना से परे थी।” दरअसल किश्तवाड़ जिला भी दूसरे हिमालयी क्षेत्रों की तरह विकास परियोजनाओं का दंश झेल रहा है। जिले में इस समय चार बड़े पावर प्रोजेक्ट बन रहे हैं।

इनमें 850 मेगावाट का रटल, 540 मेगावाट का क्वार, 624 मेगावाट का केरु और 1000 मेगावाट का पकल-डूल पावर प्रोजेक्ट शामिल हैं। इनमें से तीन परियोजनाएं मौजूदा आपदा-ग्रस्त स्थान से हवाई दूरी के हिसाब से केवल 10 से 15 किलोमीटर के दायरे में हैं। क्षेत्र में सड़कों का जाल बढ़ा है और पहले से बनी सड़कें चौड़ी की जा रही हैं।

हिलाल हेल्थ केयर सोसाइटी नामक एनजीओ के अध्यक्ष फिरदौस बगवान कहते हैं कि परियोजनाओं का निर्माण करने वाली कंपनियों द्वारा पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन के कई वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आते रहे हैं, लेकिन चूंकि इन्हें “राष्ट्रीय परियोजना” का दर्जा दिया गया है, इसलिए इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।

क्षेत्र के प्रमुख स्वयंसेवी संगठन तारिक मेमोरियल ट्रस्ट से जुड़े ताहिर डार कहते हैं, “इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, समय आ गया है कि बड़े पावर प्रोजेक्ट्स के लिए जितने भी पर्यावरणीय उल्लंघन हो रहे हैं, इसके मद्देनजर इन पर तुरंत रोक लगाई जाए।”

उनके मुताबिक चिनाब घाटी में पिछले कुछ सालों में विकास की बड़ी परियोजनाएं शुरू हुई हैं, जिसकी वजह से क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का अच्छा खासा असर देखा जा रहा है। डार ने कहा, “विकास के चश्मे से ही इस मुद्दे को देखने का मतलब केवल विनाश की ओर बढ़ना है और अब किसी को कदम उठाना ही होगा।”

किश्तवाड़ का पाडर इलाका अपनी अनोखी पहचान रखता है। यह इलाका नीलम (सैफायर) की खदानों के लिए प्रसिद्ध है। पाडर (गुलाबगढ़) चिनाब नदी के तट पर बसा है, जो अपने मनमोहक प्राकृतिक दृश्य के लिए जाना जाता है, लेकिन इन दिनों मौत की घाटी बना हुआ है।

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