पेड़ों की अधिक प्रजातियां, उनके उगने के लिए उचित जगह, पेड़ों की संख्या में वृद्धि कर सकती हैं, इस तरह यह कार्बन को स्टोर करने के लिए जंगलों की क्षमता को बढ़ाती हैं। उष्णकटिबंधीय, समशीतोष्ण और उत्तरी क्षेत्र (बोरियल) में पेड़ों की विविधता और उनके द्वारा कार्बन स्टोर करने संबंधी सेवाओं के बीच घनिष्ठ संबंध है।
हाल ही में किए गए एक अन्य अध्ययन के मुताबिक बड़े आकार के पेड़ छोटे पेड़ों की तुलना में अधिक मात्रा में कार्बन स्टोर करते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि बड़े पेड़ों ने 42 फीसदी तक कार्बन स्टोर किया। अब वैज्ञानिक यह जानना चाहते है कि पृथ्वी पर किस क्षेत्र के कौन से पेड़ तथा उनकी प्रजातियां अधिक कार्बन स्टोर करने में सक्षम हैं, इसी को लेकर एक अध्ययन किया गया है।
जिनेवा विश्वविद्यालय (यूएनआईजीई) के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अध्ययन किया है कि किस प्रकार के वन सबसे अधिक कार्बन स्टोर करते हैं। पांच महाद्वीपों के प्राकृतिक जंगलों के इन्वेंटरी डेटा से पता चलता है कि प्रजातीय विविधता भूमध्यरेखीय और उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में सबसे अधिक है। ठंडे या सूखे क्षेत्रों में मौजूद जंगलों में, जहां पेड़ों की संख्या अधिक होती है चाहे उनमें विविधता न हो फिर भी वे सीओ 2 को दुबारा स्टोर कर सकते हैं। इस अध्ययन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्राकृतिक रणनीतियों के बारे में बताया गया है।
पांच महाद्वीपों के जंगल जहां का इन्वेंटरी डेटा उपयोग किया गया
अध्ययनकर्ताओं ने पृथ्वी के पांच वनों से ढके महाद्वीपों में कुल 23 वन क्षेत्र चुने हैं। 23 क्षेत्रों में पांच उत्तरी अमेरिका में स्थित हैं, एक मध्य अमेरिका (कोस्टा रिका) में, छह दक्षिण अमेरिका (इक्वाडोर (2), ब्राजील, बोलीविया, पेरु और चिली) में से एक, अफ्रीका (युगांडा) में एक, ओशिनिया (ऑस्ट्रेलिया) में, एशिया में तीन (पूर्वी रूस, भूटान और म्यांमार) और यूरोप में छह (स्वीडन, स्विटज़रलैंड, फ्रांस (2) और स्पेन (2) शामिल हैं।
ग्लोबल वार्मिंग बहुत अधिक औसत वार्षिक तापमान, लंबे समय तक चलने वाले सूखे और अधिक लगातार और चरम मौसम की घटनाओं के माध्यम से जंगलों पर दबाव बना रहा है। वन जो लकड़ी का उत्पादन करते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) को स्टोर कर सकते हैं, इसलिए वन जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेड़ और जंगल वायुमंडल में फैली कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर प्रकाश संश्लेषण के दौरान इसकी मदद से भोजन बनाते हैं, जिसे वे फिर लकड़ी और वनस्पति के रूप में संग्रहीत करते हैं। यह एक प्रक्रिया है जिसे कार्बन अनुक्रम के रूप में जाना जाता है। हालांकि सभी जंगलों में पेड़ो के कार्बन को स्टोर करने की क्षमता समान नहीं है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है।
कार्बन स्टोर करने संबंधी अलग-अलत धारणाएं
हाल के दशकों में, शोधकर्ताओं ने सुझाव दिए है कि प्रजातियों की विविधता, एक जंगल के भीतर पेड़ों की संख्या को बढ़ावा देती है और पेड़ों की यह संख्या जंगल में कार्बन स्टोर करने की क्षमता को बढ़ाती है। लेकिन एक और परिकल्पना बताती है कि यह विविधता नहीं है जो पेड़ को की संख्या को बढ़ावा देता है बल्कि जमीन में खाद के रूप में उपलब्ध ऊर्जा है। उच्च ऊर्जा सामग्री वाले क्षेत्र प्रति इकाई अधिक पेड़ों को पनपने की अनुमति देते हैं और इस प्रकार ये पेड़ कार्बन के स्टोर को दुबारा बढ़ाते हैं। हालांकि ये दोनों परिकल्पनाएं विविधता और अधिकता के बीच संबंधों पर वैज्ञानिक समुदाय पर सवाल उठाती हैं, लेकिन इसका जवाब जानने के लिए व्यावहारिक रूप से सीओ2 उत्सर्जन के खिलाफ लड़ाई को देखा जा सकता है।
यूएनआईजीई की एक अंतरराष्ट्रीय टीम और वैज्ञानिकों ने पता लगाया की कि इनमें से किस परिकल्पना के अधिक नजदीक होने की संभावना है, जिसके तहत जलवायु परिस्थितियों में एक दूसरे की तुलना की जा सके। पांच महाद्वीपों से प्राकृतिक वनों के इन्वेंट्री डेटा का उपयोग करते हुए प्रश्न को हल किया गया।
पांच महाद्वीपों के वन और उनकी कार्बन स्टोर करने की क्षमता
डॉ. मैड्रिगल-गोंजालेज कहते हैं हमेशा अधिक प्रजातियां होने से ही जंगलों में अधिक कार्बन स्टोर (भंडारण) करने का लक्ष्य हासिल नहीं होता है। इसके बजाय यह पृथ्वी में सबसे अधिक वनों के उगने वाले क्षेत्रों में है, जो मूल रूप से भूमध्यरेखीय और उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों तक ही सीमित हैं। इनमें कुछ समशीतोष्ण वन भी शामिल है, जहां वनों की कटाई और लोगों द्वारा वनों में लगाई गई आग ने प्राचीन वातावरण को उजाड़ दिया है। इसके विपरीत, पृथ्वी पर सबसे ठंडे या सूखे क्षेत्रों में स्थित जंगलों मेंयहां वनों की उत्पादकता बढ़ी है, जो विविधता को निर्धारित करता है। यहां प्रजातियों की संख्या में वृद्धि का मतलब यह नहीं है कि यहां पेड़ों की संख्या भी अधिक होगी इसलिए इस जगह का कार्बन स्टोर (भंडारण) में बड़ा योगदान नहीं होगा।
अध्ययनकर्ताओं ने कहा इस अध्ययन के निष्कर्ष व्यावहारिक और प्रासंगिक हैं क्योंकि वे नीति निर्माताओं को प्रकृति आधारित जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियों की पहचान करने में मदद करेंगे और पेरिस समझौते में परिभाषित जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए जंगलों और उनके कार्बन अनुक्रम का सफलतापूर्वक उपयोग करेंगे।