जलवायु परिवर्तन की मार झेलते घास के मैदान

अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर में घास के मैदानों और उनमे उगने वाले पौधों की प्रजातियों में परिवर्तन आ रहा है
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‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ जर्नल में छपे नए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते घास के मैदान और उनमें उगने वाली पौधों की प्रजातियों में परिवर्तन आ रहा है । जिसके चलते इन  घास के मैदान की पहचान बदल रही है | गौरतलब है कि अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में अलग-अलग घास के मैदानों पर 105 बार परीक्षण किये।  पौधों की प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन के पड़ रहे प्रभाव के अध्ययन से उन्हें पता चला कि इन घास के मैदानों में जलवायु परिवर्तन के चलते पौधों की प्रजातियों में भारी बदलाव आ रहा है ।

अध्ययन के अनुसार घास के मैदानों में आ रहे बदलावों के लिए जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पर्यावरण में आ रहे परिवर्तन मूल रूप से जिम्मेदार पाए गए, जिनमें मुख्यतः कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर, तापमान में हो रही बढ़ोतरी, अतिरिक्त पोषक तत्व से हो रहा प्रदूषण और सूखा आदि कारक मुख्य रूप से जिम्मेदार थे, शोधकर्ताओं ने देखा कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े कारकों में से किसी भी एक के संपर्क में आने के 10 साल के बाद, इन घास के मैदान में उगने वाली पौधों की प्रजातियों में परिवर्तन आना शुरू हो गया।

बड़े पैमाने पर आ रहा है इन घास के मैदानों में बदलाव 

शोधकर्ताओं के अनुसार घास के यह मैदान एक सीमा तक आश्चर्यजनक रूप से कठोर हैं, जिससे इनमे आ रहे बदलावों का पता लगाने में समय लग सकता है । सामान्यतः घास के यह मैदान, शुरुआती 10 वर्षों तक जलवायु में आ रहे परिवर्तनों को झेल लेते हैं, लेकिन लगातार एक दशक से भी अधिक समय तक जलवायु परिवर्तन को झेलने के बाद इनमें पायी जाने वाली पौधों की प्रजातियों में बदलाव आना शुरू हो गया। 10 वर्षों या उससे अधिक समय तक चलने वाले प्रयोगों में से आधे में पौधों की प्रजातियों की कुल संख्या में बदलाव पाया गया और लगभग तीन-चौथाई प्रजातियों की नस्ल में परिवर्तन देखा गया। इसके विपरीत, 10 वर्षों से कम चलने वाले प्रयोगों में से केवल 20 फीसदी में ही किसी भी प्रकार का परिवर्तन पाया गया । वहीं वैश्विक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार तीन या उससे अधिक कारकों से प्रभावित घास के मैदानों में आ रहा परिवर्तन अधिक देखा गया।

इन मैदानों में पौधों की पुरानी नस्लों की जगह पर, पूरी तरह नयी प्रजातियां ने अपना वर्चस्व बना लिया था। वहीं वैज्ञानिकों को यह जानकर हैरानी हुई कि घास की प्रजातियां अपनी संख्या में किसी भी प्रकार के परिवर्तन के बिना भी बदल सकती हैं । अध्ययन किये गए आधे भूखंडों में जहां अलग-अलग पौधों की प्रजातियां थी, उनमें परिवर्तन देखा गया जबकि प्रजातियों की संख्या पहले जैसी बनी रही । जबकि कुछ भूखंडों में लगभग सभी प्रजातियां बदल गई। अध्ययन से इस बात के भी सबूत मिले है कि हम मनुष्यों की बढ़ती गतिविधियों का, पौधों की प्रजातियों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ रहा है । जो की समय के साथ और प्रबल हो रहा है, जबकि उन क्षेत्रों में यह और अधिक गंभीर हो सकता है जहां इन घास के मैदानों को एक साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़े कई कारकों का सामना करना पड़ रहा हैं।

शोधकर्ताओं ने माना कि परीक्षणों के अनुसार अधिकांश घास के मैदान कम से कम एक दशक तक जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण कि मार झेल सकते हैं । या ये कहें कि शायद यह घास के यह मैदान धीरे-धीरे बदल रहे हैं । यह आशा के संकेत है और हमारे लिए एक मौका भी, यदि हम आज चेत जाते हैं तो भविष्य में इनके विनाश को रोक सकते हैं और एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र को बचा पाने में सफल हो सकते हैं, जिसपर हमारा भी भविष्य निर्भर है।

आखिर क्यों जरुरी है यह मैदान

दुनिया भर में घास के मैदानों को कई नामों से जाना जाता है। उत्तरी अमेरिका में जहां इन्हें अक्सर प्रेरीज कहा जाता है। वहीं दक्षिणी अमेरिका में पम्पास के नाम से जाना जाता है । मध्य यूरेशियन घास के मैदानों को स्टेपी कहा जाता है, ऑस्ट्रेलिया में डाउन्स, यूरेशिया (मुख्य रूप से रूस) में टैगा, अमेज़न घाटी में सेल्वास, जबकि अफ्रीकी घास के मैदानों को सवाना कहते हैं । और इन सभी में जो एक बात समान है वो है इनमे पायी जाने वाली घास, जो कि इनकी स्वाभाविक रूप से प्रमुख वनस्पति है। मूलतः यह घास के मैदान वहां पाए जाते हैं जहां जंगल की वृद्धि के लिए पर्याप्त और नियमित वर्षा नहीं होती। हां, लेकिन बारिश इतनी कम भी नहीं होती कि जमीन रेगिस्तान में बदल जाए। वास्तव में, अक्सर यह घास के मैदान जंगलों और रेगिस्तानों के बीच स्थित होते हैं। इस दृष्टिकोण से यह मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए भी अहम् होते हैं| हम इन्हे कैसे परिभाषित करते हैं, इसके आधार पर, यह घास के मैदान दुनिया के 20 से 40 प्रतिशत भूमि पर पाए जाते हैं। जो कि आम तौर पर खुले और सपाट होते हैं, और प्रायः अंटार्कटिका को छोड़कर दुनिया के हर महाद्वीप पर मौजूद हैं।

यह मनुष्यों और हजारों अन्य प्रजातियों के जीवन का आधार हैं। मवेशियों के लिए भोजन उपलब्ध कराने के अलावा, यह घास के मैदान अनेकों ऐसे जीवों का घर हैं जो इनको छोड़कर अन्य किसी और स्थान पर प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते, जैसे कि उत्तरी अमेरिका के प्रेरीज में पाए जाने वाले बिसन और अफ्रीकी के सवाना में पाए जाने वाले जेबरा और जिराफ । इसके साथ ही यह घास के मैदान एक और विशिष्ट कारण से भी महत्वपूर्ण है, यह दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन के 30 फीसदी हिस्से को अवशोषित कर सकते हैं, जिसके कारण यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी अहम भूमिका निभा सकते है।

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