वैज्ञानिकों ने बनाया नया डेटाबेस, बताता है दुनिया की 12 हजार झीलों की गुणवत्ता का हाल

यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक नया डेटाबेस बनाया है जिसकी मदद से दुनिया की 12 हजार से ज्यादा मीठे पानी की झीलों की गुणवत्ता को जाना जा सकता है
वैज्ञानिकों ने बनाया नया डेटाबेस, बताता है दुनिया की 12 हजार झीलों की गुणवत्ता का हाल
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यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक नया डेटाबेस बनाया है जिसकी मदद से दुनिया की 12 हजार से ज्यादा मीठे पानी की झीलों की गुणवत्ता को जाना जा सकता है। यह झीलें दुनिया के करीब आधे मीठे पानी की जरूरतों को पूरी करती हैं। ऐसे में इनकी गुणवत्ता को जानना बहुत मायने रखता है। यह डेटाबेस इन झीलों के स्वास्थ्य की निगरानी और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

यदि दुनिया भर में उपलब्ध मीठे पानी की बात करें तो वो उपलब्ध जल के 1 फीसदी से भी कम है। जोकि इंसान की कृषि और पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करता है। ऐसे में इसकी गुणवत्ता बहुत मायने रखती है।

यह झीलें अमेरिका से लेकर अंटार्कटिका तक 72 देशों में स्थित हैं। इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एलेसेंड्रो फिलाज़ोला के अनुसार इस डेटाबेस की मदद से वैज्ञानिक यह जान सकते हैं कि किन क्षेत्रों में झीलों की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है और यह बदलाव कैसे आ रहा है। साथ ही पानी की गुणवत्ता में आ रहे बदलावों के लिए कौन से करक जिम्मेवार हैं। इससे जुड़ा शोध साइंटिफिक जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है।

इस डेटाबेस को बनाने के लिए 1950 के बाद से छपी करीब 3,322 शोधों का विश्लेषण किया है। इसके साथ ही उन्होंने ऑनलाइन डेटा रिपॉजिटरी की मदद से क्लोरोफिल के स्तर का डेटा भी एकत्र किया है। गौरतलब है कि दुनिया भर में झीलों और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का निर्धारण करने के लिए क्लोरोफिल को उसके मार्कर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गौरतलब है कि क्लोरोफिल झीलों में वनस्पति और शैवाल की मात्रा का एक पूर्वसूचक है, जिसे प्राथमिक उत्पादन के रूप में जाना जाता है।

जलवायु परिवर्तन भी डाल रहा है झीलों की गुणवत्ता पर असर

फिलाजोला ने बताया कि जहां एक ओर इंसानी गतिविधियों, ग्लोबल वार्मिंग, शहरों से उत्पन्न हो रहे वेस्ट, कृषि और भूमि उपयोग से उत्पन्न हो रहा फास्फोरस, सभी झीलों में क्लोरोफिल के स्तर को बढ़ा सकता है। झील में प्राथमिक उत्पादन कितना होगा वो क्लोरोफिल की मात्रा पर निर्भर करता है। जोकि फाइटोप्लांकटन पर व्यापक प्रभाव डालता है। इन फाइटोप्लांकटन का उपभोग शैवाल और मछलियां करती हैं। ऐसे में यदि झील में क्लोरोफिल बहुत कम है, तो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। जबकि यदि इसकी मात्रा बहुत ज्यादा है तो उससे शैवाल की बहुत अधिक मात्रा में वृद्धि हो सकती है, जो हमेशा अच्छा नहीं होता है।"

इस शोध से जुड़ी एसोसिएट प्रोफेसर सपना शर्मा के अनुसार गर्मीं में बढ़ते तापमान, सौर विकिरण में होती वृद्धि और उत्तरी गोलार्ध में घने बादल क्लोरोफिल की मात्रा को बढ़ा देते हैं। वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले तूफानों के चलते पानी की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। इसके साथ ही कृषि और शहरी क्षेत्र से निकला वेस्ट वाटर भी झील के जल की गुणवत्ता पर असर डालता है।

यही वजह है कि इसकी गुणवत्ता को समझने के लिए शोधकर्तांओं ने फॉस्फोरस और नाइट्रोजन के स्तर का भी डेटा इकट्ठा किया है। साथ ही उन्होंने प्रत्येक झील में क्लोरोफिल की मात्रा, वहां की जलवायु और भूमि उपयोग सम्बन्धी आंकड़ों को भी इकठ्ठा किया है।

शोधकर्ताओं के अनुसार मीठे पानी की झीलें विशेष रूप से पोषक तत्वों के स्तर, जलवायु, भूमि उपयोग और प्रदूषण से प्रभावित होती हैं, ऐसे में उन्हें भी समझना जरुरी है। यह झीलें ने केवल इंसानी जरूरतों को पूरा करती है साथ ही यह कीड़ों, जानवरों और पौधों की लाखों प्रजातियों को भी आवास प्रदान करती हैं। यह झीलें अपने आप में इन जीवों का एक पूरा संसार होती हैं। ऐसे में इनको बचाना अत्यंत जरुरी है। जिस काम में यह डेटाबेस मदद कर सकता है।

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