तपता हिमालय: कागजी कसरतों से बदलेंगे हालात?

जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए राज्यों ने एक्शन प्लान तैयार किए थे। यही काम हिमालयी राज्यों ने भी किया, लेकिन अब तक ये प्लान सिरे नहीं चढ़ पाए हैं
नागालैंड के वोखा जिले के रुचान गांव में गर्मी और बारिश न होने की वजह से फसलों में कीड़े लग गए
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जलवायु परिवर्तन को थामने के लिए सरकारें केवल कागजी कसरतें कर रही हैं स्थानीय लोगों के अनुभव, वैज्ञानिकों के शोध और मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि हिमालय का मौसम तेजी से बदल रहा है। बेशक पिछले कुछ सालों में इसका असर आम लोगों पर पड़ने लगा है, लेकिन वैज्ञानिक कई दशक से इस बारे में आगाह करते रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या इस दिशा में कुछ काम हो रहा है।

दरअसल, जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए भारत में कागजी कसरत 2008 में शुरू हो गई थी। इस साल नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज तैयार किया गया। साथ ही, राज्यों को भी स्टेट एक्शन प्लान तैयार करने को कहा गया। इसके बाद राज्य सरकारों ने भी कागजी कसरत शुरू की। कहने को सभी हिमालयी राज्यों ने अपने-अपने राज्यों के एक्शन प्लान तैयार कर लिए।

इन एक्शन प्लान का सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने 2018 में कॉपिंग विद क्लाइमेट चेंज नाम से एक विश्लेषण किया था। इनमें कई खामियां सामने आईं। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड जैसे राज्य जहां जलवायु परिवर्तन का असर अधिक दिख रहा है, वहां जलवायु असर का सही से आकलन नहीं किया गया। 2014 में उत्तराखंड ने प्लान तैयार कर लिया था। उस समय पांच साल का लक्ष्य रखा गया था और 8,833 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तावित किया गया था।

लेकिन सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि हैरानी की बात है कि कुल प्रस्तावित बजट का 70 फीसदी सड़क परियोजनाओं पर खर्च करने का प्रस्ताव था। जल संरक्षण पर एक फीसदी, वन संरक्षण पर 11 फीसदी, आपदा प्रबंधन पर 4 फीसदी, मानव स्वास्थ्य पर एक फीसदी और कृषि को केवल 0.9 फीसदी राशि आवंटित की गई थी।

दिलचस्प बात यह है कि तय लक्ष्य के मुताबिक यह एक्शन प्लान पांच साल यानी 2020 तक पूरा हो जाना चाहिए था, लेकिन उत्तराखंड सरकार अब इस प्लान में संशोधन की दिशा में काम कर रही है। राज्य में पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन निदेशक एसपी सुबुद्धि ने बताया कि कुछ कमियों की वजह से एक्शन प्लान में संशोधन कर नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। इस बार व्यापक शोध की भी बात कही जा रही है।

सीएसई की इस रिपोर्ट में पूर्वी हिमालयी राज्य मिजोरम के स्टेट एक्शन प्लान की भी समीक्षा की गई है। मिजोरम ने जलवायु परिवर्तन का असर कम करने के लिए 3,675 करोड़ रुपए प्रस्तावित किए। रिपोर्ट बताती है कि मिजोरम में 91.27 फीसदी क्षेत्र में जंगल है, जो पूरे देश में सबसे अधिक है, जबकि यहां पिछले कई सालों से लगातार जंगल कट रहे हैं। बावजूद इसके स्टेट एक्शन प्लान के बजट में ग्रीन इंडिया मिशन के नाम पर 8 फीसदी खर्च करने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा सतत हिमालयन मिशन पर केवल 4 फीसदी, पानी पर 13 फीसदी, ऊर्जा संरक्षण पर 16 फीसदी राशि आवंटित की गई है।

इस रिपोर्ट के लेखक विनीत कुमार कहते हैं, ज्यादातर राज्यों ने एक्शन प्लान बनाते वक्त केवल खानापूर्ति की है। एक्शन प्लान का वैज्ञानिक आधार तक नहीं है। यही हाल जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से सबसे संवेदनशील हिमालयी राज्यों का रहा। अव्वल तो एक्शन प्लान में ही खामियां हैं और जो बन भी गए हैं, उन्हें ढंग से लागू नहीं किया जा रहा।

इंडियन नेशनल साइंस अकेडमी के सीनियर साइंटिस्ट एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति एसपी सिंह कहते हैं कि हमें यह समझना होगा कि हिमालय को बचाने की जिम्मेवारी अकेले हिमालयी राज्यों की नहीं है। हिमालय के लिए एक व्यापक कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए, जिसमें भारत के सभी राज्यों के अलावा हिमालय से जुड़े दूसरे देशों को अपनी भूमिका निभानी होगी। क्योंकि भारत सहित इन देशों के अस्तित्व के लिए हिमालय का मूल चरित्र का बचा रहना बहुत जरूरी है।

वहीं, एसपी सती कहते हैं कि हिमालय की चिंता केवल बढ़ती गर्मी ही नहीं है, बल्कि बेमौसमी घटनाओं का बढ़ना भी है। जैसे इस बार बुरांश बेशक जनवरी में खिला है, लेकिन पिछले साल अप्रैल के मध्य में खिला था। दिक्कत यह है कि बारिश के मौसम में बारिश नहीं होती, लेकिन बेमौसम बारिश होने लगती है। इसलिए केवल एक दिशा में काम करने की बजाय सभी पहलुओं पर विचार करना होगा।

पर्यावरणविद अनिल जोशी कहते हैं कि पिछले एक दशक में हिमालय के बदलते मौसम से सबक नहीं लिया गया और रणनीतिक तैयारियां नहीं की गईं। हिमालय के लिए सबसे जरूरी है कि पानी और जंगल। खासकर बािरश के पानी को जगह-जगह रोकना, ताकि जमीन की नमी बरकरार रहे। एक-एक बूंद को संरक्षित करके हम हिमालय की गर्मी को कम कर सकते हैं। अब समय आ गया है कि हिमालय के मूल चरित्र को बचाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास शुरू कर देने चाहिए। वर्ना देरी बहुत महंगी पड़ सकती है।

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