जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सुस्ती चिंताजनक!
हाल में जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2025 में शीर्ष तीन स्थान का खाली रह जाना यह बोध कराता है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में कोई भी देश संतोषजनक प्रदर्शन नहीं कर रहा है।
यह चिंताजनक है कि सूचकांक की सभी श्रेणियों में किसी भी देश का प्रदर्शन इतना प्रभावी नहीं रहा कि उसे समग्र रूप से 'बहुत उच्च' रेटिंग दी जा सके।इस सूचकांक में डेनमार्क ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है,लेकिन उसे चौथा स्थान हासिल हुआ है।
किसी प्रतियोगिता में कोई भी प्रतिभागी प्रथम,द्वितीय अथवा तृतीय स्थान प्राप्त नहीं करता है,तो यह स्पष्ट संकेत है कि या तो प्रतिस्पर्धा के मानक बहुत ऊंचे हैं या प्रतिभागियों का प्रदर्शन बेहद कमजोर है।
यह सूचकांक वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में असंतोषजनक प्रगति और गैर-जिम्मेदाराना रवैये को उजागर करता है। यह स्थिति दुनिया के देशों को अपनी नीतियों और प्रयासों पर पुनर्विचार करने और अधिक गंभीरता से कार्य करने के लिए प्रेरित भी करती है।
इस सूचकांक को पहली बार 2005 में मॉन्ट्रियल में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की 11वीं बैठक में प्रस्तुत किया गया था। यह सूचकांक पेरिस समझौते (2015) और 2030 तक लक्षित जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्यों की प्रगति की दिशा में मूल्यांकन करता है।
यह सूचकांक राष्ट्रीय संसदों और सरकारों में बहस को गति देता है। साथ ही, दुनिया के देशों को जलवायु परिवर्तन की दिशा में कार्रवाई के प्रति प्रतिस्पर्धी बनाती है। यह सूचकांक दुनिया के लिए जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रगति का आईना है।
यह वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 90 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार 63 देशों और यूरोपीय संघ के देशों के जलवायु परिवर्तन के संबंध में किए जा रहे प्रयासों पर आधारित है।
सूचकांक के मूल्यांकन के लिए चार आधारों का उपयोग किया जाता है,जिसमें प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन,नवीकरणीय ऊर्जा की प्रगति,प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग और जलवायु नीति शामिल है।
इस वैश्विक सूचकांक का मुख्य उद्देश्य विभिन्न देशों द्वारा जलवायु संकट के न्यूनीकरण की दिशा में उठाए जाने वाले प्रयासों का आकलन करना है। हालांकि,सूचकांक के इस 20वें संस्करण से बोध होता है कि किसी भी देश ने जलवायु परिवर्तन संबंधी इस दिशा में पर्याप्त और उत्कृष्ट कार्य नहीं किया है।
जाहिर है,विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खतरे से भलीभांति परिचित होने के बावजूद इस गंभीर मुद्दे को लेकर प्रतिबद्धता और प्रयासों में भारी कमी है।
सूचकांक में डेनमार्क,नीदरलैंड और यूनाइटेड किंगडम इस वर्ष अग्रणी रहे हैं.दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक देशों जैसे चीन और अमेरिका का प्रदर्शन बहुत निम्न श्रेणी में रखा गया है।
हालांकि इस सूचकांक में भारत का प्रदर्शन संतोषजनक रहा है।इसमें भारत 10वें स्थान पर है, जो सर्वोच्च प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक है। पिछले वर्ष भारत सातवें स्थान पर था।
भारत को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और ऊर्जा उपयोग श्रेणियों में उच्च रैंकिंग, जलवायु नीति में मध्यम और नवीकरणीय ऊर्जा में निम्न रैंकिंग प्राप्त हुई है।
यूनाइटेड किंगडम (छठे) और भारत (10वां) सीसीपीआई 2025 में उच्च प्रदर्शन करने वालों में से केवल दो जी-20 देश हैं। चार देश ईरान (67वें स्थान पर), सऊदी अरब (66वें), संयुक्त अरब अमीरात (65वें) और रूस 64वें स्थान पर है।
सूचकांक रिपोर्ट में जहां केंद्र सरकार की अक्षय ऊर्जा नीति की प्रशंसा की गई है,वहीं कोयले पर निरंतर निर्भरता की आलोचना भी की गई है।गौरतलब है कि भारत अक्षय ऊर्जा की दिशा में नित नई ऊंचाई हासिल कर रहा है,जिससे सूचकांक में भारत मजबूत स्थिति में है।
गौरतलब है कि जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता घटाने के लिए भारत कई मोर्चो पर आगे बढ़ रहा है। केंद्र सरकार ने सीओपी-26 सम्मेलन में घोषित 'पंचामृत' पहल के तहत 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक ले जाने,अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने, कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करने, अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम करने तथा 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रतिबद्धता से जुटी है।
सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश में नवीकरणीय (अक्षय) ऊर्जा के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। भारत की भौगोलिक दशाएं भी नवीकरणीय ऊर्जा के लिए वृहत संभावना का द्वार खोलती हैं। प्राकृतिक रूप से भारत अक्षय ऊर्जा के मामले में अत्यंत धनी देश रहा है।
उष्णकटिबंधीय जलवायु होने के कारण भारत में सौर ऊर्जा और विशाल समुद्री तटीय क्षेत्र होने के कारण पवन और ज्वारीय तरंगों की प्रबलता के कारण ज्वारीय ऊर्जा तथा कृषि एवं पशुपालन का लंबा इतिहास होने के कारण बायोगैस जैसे अक्षय ऊर्जा के विविध स्वरूपों के विकास की अपार संभावनाएं हैं।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार,देश की कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता 10 अक्टूबर,2024 तक 200 गीगावाट (गीगावाट) के आंकड़े को पार कर गई है।यह उपलब्धि इसलिए भी खास है कि भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 452.69 गीगावाट है,जिसमें लगभग आधी हिस्सेदारी अक्षय ऊर्जा स्रोतों की हो गई है।
अक्षय ऊर्जा के मामले में सौर ऊर्जा देश में पहले स्थान पर है।देश में सौर ऊर्जा का उत्पादन 90.76 गीगावाट तक हो रहा है।भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं।सौर ऊर्जा पृथ्वी पर सबसे प्रचूर मात्रा में उपलब्ध स्वच्छ और सुलभ ऊर्जा संसाधन है।
देश में साल के लगभग तीन सौ दिन अच्छी धूप पड़ती है।ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी की सतह पर एक से डेढ़ घंटे के दौरान पड़ने वाली सूरज की रोशनी को अगर ऊर्जा में तब्दील कर दिया जाए,तो इससे दुनियाभर में एक साल में खपत होने वाली ऊर्जा मांग की पूर्ति हो सकती है।
आज भारत 'अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन' का सफल नेतृत्व कर रहा है।सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में आज भारत दुनिया में पांचवें स्थान पर है।
सौर ऊर्जा के बाद नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सर्वाधिक विकास पवन ऊर्जा का हुआ है।देश में इसकी स्थापित क्षमता 47.36 गीगावाट है। भारत की लंबी तटरेखा और उष्ण उष्णकटिबंधीय जलवायु इसे प्राकृतिक पवन ऊर्जा क्षमता का दोहन करने के लिए उपयुक्त बनाती है।
देश के सात तटवर्ती राज्यों-गुजरात,कर्नाटक,राजस्थान,तमिलनाडु,मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में इसके विकास की सर्वाधिक संभावनाएं हैं। आज पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता के मामले में भारत चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर है।
वहीं देश में जलविद्युत ऊर्जा का भी संतोषजनक विकास हुआ है।इसकी स्थापित क्षमता 52 गीगावाट पहुंच चुकी है.समस्त अक्षय ऊर्जा में जलविद्युत ऊर्जा की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत है। भारत में इसके विकास की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि देश में अनेक पर्वतीय क्षेत्रों, नदियों और जलधाराओं का व्यापक नेटवर्क मौजूद है।
अक्षय ऊर्जा के विकास से जुड़े ये आंकड़े भारत के ऊर्जा परिदृश्य में बड़े बदलाव को दर्शाते हैं,जो देश की स्वच्छ,गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता को परिलक्षित करती है।ऊर्जा के ये स्रोत स्वच्छ, प्रदूषण रहित, किफायती और पर्यावरण के लिए अनुकूल हैं।
परंपरागत ऊर्जा (गैर-नवीकरणीय) स्रोतों के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों और निकट भविष्य में इसके समाप्त होने के भय का समाधान अक्षय ऊर्जा में ही निहित है।
हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा में सकारात्मक प्रगति के बावजूद भारत का कोयले पर निर्भरता नेट जीरो के लक्ष्य में बाधक बन सकती है।भारत में कोयला के विशाल भंडार हैं, लिहाजा ऊर्जा के प्रमुख परंपरागत स्रोत के रूप कोयला की मांग अधिक है। लेकिन कोयला के पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को देखते हुए जब कई देश कोयले से दूरी बना रहे हैं, तो भारत को भी इस दिशा में कदम बढ़ाना होगा। बहरहाल जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में भारत का प्रदर्शन संतोषजनक है।