हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि 2003 से 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन (ईवेपो-ट्रांस्पिरेशन) की दर में 10 फीसदी की वृद्धि हुई है| इसके लिए वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर तापमान में हो रही वृद्धि को जिम्मेवार मान रहे हैं| इसका सीधा असर पृथ्वी के जल चक्र पर पड़ रहा है, क्योंकि वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन इसके प्रमुख घटकों में से एक है| यह शोध कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किया गया है, जोकि 26 मई 2021 को अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है|
नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी और इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता मेडेलीन पास्कोलिनी-कैंपबेल ने जानकारी दी है कि 2003 के बाद से वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन में लगभग 10 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो पहले के अनुमान से कहीं अधिक है, और इसके पीछे की वजह धरती का बढ़ता तापमान है। उन्होंने आशा जताई है कि जल चक्र के बारे में यह जानकारी जलवायु मॉडल के विकास और पुष्टि में मदद कर सकती है|
क्या होता है वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन?
पौधे और भूमि की सतह हवा में वाष्पोत्सर्जन और वाष्पीकरण के माध्यम से नमी छोड़ते हैं, इन प्रक्रियाओं को संयुक्त रूप से वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन (ईवेपो-ट्रांस्पिरेशन) कहा जाता है| गौरतलब है कि जब मृदा, भूमि और जल की सतह से नमी वाष्प में बदलती है तो उसे वाष्पीकरण (ईवेपोरेशन) कहते हैं| वहीं पौधों द्वारा अनावश्यक जल को वाष्प के रूप में बाहर निकालने की क्रिया को वाष्पोत्सर्जन (ट्रांस्पिरेशन) कहा जाता है|
पिछले कई वर्षों से वैज्ञानिक इस बात की भविष्यवाणी कर रहे हैं कि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि के चलते हमारा ग्रह और गर्म हो रहा है, जिसका असर पृथ्वी के जल चक्र पर भी पड़ रहा है और वो अधिक मात्रा में ऊर्जा को ग्रहण कर रहा है| लेकिन इसे साबित करना आसान नहीं है, क्योंकि वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन का मापने का अब तक कोई विश्वसनीय तरीका नहीं है|
हाल ही में किए गए इस शोध में वैज्ञानिकों ने ग्रेस (ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट) और ग्रेस फो उपग्रहों के अवलोकनों और आंकड़ों का उपयोग करके वृद्धि की गणना की है| महासागरों और महाद्वीपों के बीच पानी के बड़े पैमाने पर परिवर्तन का आकलन करके शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि ईवेपो-ट्रांस्पिरेशन में होने वाली वृद्धि की यह दर पिछले अनुमानों की तुलना में दो गुना अधिक है।
बदल रहा है पृथ्वी का जल चक्र
चूंकि पानी में द्रव्यमान होता है इसलिए वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण संकेतों में योगदान देता है| ग्रेस उपग्रह दुनिया भर में पानी की गति के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, जिस वजह से यह बर्फ की चादरों में हो रहे परिवर्तन से लेकर भूमि पर संग्रहीत पानी और समुद्र के द्रव्यमान में आ रहे बदलावों को भी माप लेते हैं|
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता जेटी रीगर ने बताया कि, "जब गुरुत्वाकर्षण संकेत कम हो जाता है, तो इसका मतलब है कि भूमि पानी खो रही है। उसमें से कुछ नुकसान पानी का नदियों के माध्यम से वापस महासागरों में बहने के कारण होता है, लेकिन बाकी बचा हिस्सा वाष्पीकरण के रूप में वायुमंडल में चला जाता है।
इस आधार पर गणना करके वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जहां 2003 में वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन 405 मिलीमीटर (करीब 16 इंच) था वो 2019 में बढ़कर 444 मिलीमीटर (करीब 17.5 इंच) हो गया था| जिसका मतलब है कि वो हर वर्ष 2.3 मिलीमीटर (करीब 0.1 इंच) की दर से बढ़ रहा है, जोकि कुल मिलकर 10 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है|
रीगर ने बताया कि, "वर्षों से, हम वैश्विक जल चक्र में होने वाले कुल परिवर्तनों को मापने का एक तरीका ढूंढ रहे थे और आखिरकार हमने इसे पा लिया है वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन की वृद्धि ने हमें वास्तव में आश्चर्यचकित कर दिया है, यह एक बड़ा संकेत है जो दर्शाता है कि हमारे ग्रह का जल चक्र बदल रहा है।"