बढ़ते तापमान के कारण लद्दाख की जांस्कर घाटी में पीछे हट रहे हैं ग्लेशियर

अध्ययन से पता चलता है कि हवा के तापमान में निरंतर वृद्धि के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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लद्दाख के जांस्कर में स्थित पेन्सिलुंगपा ग्लेशियर (पीजी) पीछे हट रहा है और हाल के एक अध्ययन ने सर्दियों के दौरान तापमान में वृद्धि और वर्षा में कमी को पीछे हटने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। 2015 से, देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान, ग्लेशियोलॉजी, यानी ग्लेशियर के स्वास्थ्य (मास बैलेंस) निगरानी, डायनेमिक्स पर विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहा है।  

पिछली जलवायु की परिस्थितियों, भविष्य के जलवायु परिवर्तन की अटकलें और इस क्षेत्र में ग्लेशियरों पर इसके प्रभाव को लेकर अध्ययन जारी है। वैज्ञानिकों की एक टीम ने हिमालय के कम खोजे गए क्षेत्र, यानी लद्दाख के जांस्कर का अध्ययन किया है।

2016-2019 के बाद से ग्लेशियर की सतह पर स्टेक नेटवर्किंग के माध्यम से इनके बारे में पता लगाया गया हैं। स्टेक नेटवर्किंग - बांस से बना एक खूंटा है जिसे ग्लेशियर की सतह पर गाड़ दिया जाता है, ताकि इसको मापा जा सके। इस तरह ग्लेशियरों से संबंधित आंकड़ों को एकत्र किया गया है। इसमें ग्लेशियरों के द्रव्यमान संतुलन के लिए क्षेत्र के आधार पर, उन्होंने इसके प्रभाव का आकलन किया।

जलवायु परिवर्तन के चलते पेनसिलुंगपा ग्लेशियर (पीजी), हिमालय, लद्दाख के जांस्कर  के अतीत और वर्तमान में आए अंतर को दिखाता है। पिछले 4 वर्षों यानी 2015 से 2019 के बीच इस क्षेत्र के अवलोकन से पता चला है कि ग्लेशियर अब 6.7 ± 3 मीटर ए−1 की औसत दर से पीछे हट रहा है। जर्नल रीजनल एनवायर्नमेंटल चेंज में प्रकाशित अध्ययन में, टीम ने पेन्सिलंगपा ग्लेशियर के देखे गए पीछे हटने के रुझान के लिए तापमान में वृद्धि और सर्दियों के दौरान वर्षा में कमी को जिम्मेदार ठहराया।

अध्ययन विशेष रूप से गर्मियों में ग्लेशियर के द्रव्यमान संतुलन और पीछे हटने पर मलबे के आवरण के महत्वपूर्ण प्रभाव की ओर इशारा करता है। इसके अलावा, पिछले 3 वर्षों, 2016 से 2019 के बीच के आंकड़ों से पता चलता है कि यह लगातार पीछे हट रहा है।

अध्ययन से यह भी पता चलता है कि वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप हवा के तापमान में निरंतर वृद्धि के कारण, ग्लेशियर के पिघलने में वृद्धि होगी। यह भी आसार हैं कि अधिक ऊंचाई पर गर्मी के चलते बारिश बर्फ में न बदलकर पानी में बदल जाएगी और यह गर्मी और सर्दी के पैटर्न को प्रभावित कर सकती है।

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