तेजी से गर्म होने वाली जगहों से गायब हो रहे हैं ग्लेशियर, स्वालबार्ड में 91 फीसदी ग्लेशियर सिकुड़े: शोध

शोध से पता चलता है कि आर्कटिक क्षेत्र में स्वालबार्ड के अधिकतर, यानी 91 फीसदी ग्लेशियर काफी हद तक सिकुड़ रहे हैं।
ग्लेशियरों के पीछे हटने में सबसे बड़ी वृद्धि 2016 में देखी गई थी, जब चरम तापमान वृद्धि की घटनाओं के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर 2010 और 2015 के बीच औसत से दोगुनी थी।
ग्लेशियरों के पीछे हटने में सबसे बड़ी वृद्धि 2016 में देखी गई थी, जब चरम तापमान वृद्धि की घटनाओं के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर 2010 और 2015 के बीच औसत से दोगुनी थी।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, गुंटर सेगेबेइंग
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एक नए अध्ययन से पता चला है कि पिछले 40 सालों में सबसे अधिक तापमान वाली जगहों में ग्लेशियर गायब हो रहे हैं, सबसे ज्यादा गायब होने की घटनाएं हाल ही के वर्षों में देखी गई हैं। ब्रिस्टल विश्वविद्यालय द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि आर्कटिक क्षेत्र में स्वालबार्ड के अधिकतर, यानी 91 फीसदी ग्लेशियर काफी हद तक सिकुड़ रहे हैं।

शोध के निष्कर्ष बताते है कि 1985 के बाद से इस नॉर्वेजियन द्वीप समूह में ग्लेशियर के किनारों पर 800 वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके का नुकसान हुआ है।

शोध में यह भी पाया गया कि आधे से अधिक ग्लेशियर, यानी 62 फीसदी ग्लेशियर टूटने के मौसमी चक्र से गुजरते हैं, यह तब और अधिक बढ़ जाता है जब महासागर और हवा के बढ़ते तापमान के कारण बर्फ के बड़े टुकड़े टूट जाते हैं।

शोध पत्र में विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजी सेंटर के शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों में ग्लेशियरों के पीछे हटने का पैमाना तेजी से बढ़ा है, जो लगभग पूरे स्वालबार्ड को कवर करता है। यह ग्लेशियरों की जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को सामने लाता है, विशेष रूप से स्वालबार्ड में, जो वैश्विक औसत से सात गुना अधिक तेजी से गर्म हो रहा है।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शोध टीम ने बड़े इलाकों में ग्लेशियर पैटर्न को जल्दी से पहचानने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल किया है।

एक नए एआई मॉडल का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने पूरे स्वालबार्ड में ग्लेशियरों की अंतिम स्थिति को रिकॉर्ड करने वाली लाखों उपग्रह छवियों का विश्लेषण किया। निष्कर्ष इस क्षेत्र में ग्लेशियर के नुकसान के पैमाने और प्रकृति के बारे में अभूतपूर्व स्तर का विवरण देते हैं।

ग्लेशियरों के पीछे हटने में सबसे बड़ी वृद्धि 2016 में देखी गई थी, जब चरम तापमान वृद्धि की घटनाओं के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर 2010 और 2015 के बीच औसत से दोगुनी थी। शोध के मुताबिक, यह हो सकता है वायुमंडलीय अवरोध नामक बड़े पैमाने पर मौसम के पैटर्न के कारण हुआ था जो वायुमंडलीय दबाव को प्रभावित कर सकता है।

वायुमंडलीय अवरोध की बढ़ती आवृत्ति और क्षेत्रीय आधार पर बढ़ते तापमान के साथ, भविष्य में ग्लेशियरों के पीछे हटने के आसार बढ़ जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर के द्रव्यमान में अधिक कमी आएगी। इससे आर्कटिक में समुद्री प्रसार और समुद्री जीवन के वातावरण में बदलाव आएगा।

स्वालबार्ड पृथ्वी पर सबसे तेजी से गर्म होने वाले स्थानों में से एक है। द्वीपसमूह के बर्फ के मैदानों की कम ऊंचाई और ऊंचे उत्तरी अटलांटिक में भौगोलिक स्थिति इसे जलवायु परिवर्तन के लिए विशेष रूप से संवेदनशील बनाती है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि ग्लेशियर का टूटना एक गलत ढंग से तैयार की गई और समझी गई प्रक्रिया है, जो ग्लेशियर के स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभाती है। यह अध्ययन इस बारे में अहम जानकारी प्रदान करता है कि ग्लेशियर के टूटने को कौन नियंत्रित करता है और यह वैश्विक तापमान वृद्धि के अग्रिम मोर्चे पर स्थित क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करता है।

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